Faridabad News, 26 March 2019 : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा सेक्टर-3 रामलीला ग्राउंड में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन मंगलवार को विदुषी सुश्री आस्था भारती ने विदुर-सुलभा गाथा व नन्हें भक्त धु्रव की संकल्प यात्रा को बड़े ही मार्मिक ढंग से कह सुनाया। साध्वी ने बताया कि भक्त धु्रव की संकल्प यात्रा प्रतीक है आत्मा और परमात्मा के मिलन की। यह यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती, जब तक मध्य सद्गुरु रुपी सेतु न हो। यही सृष्टि का अटल और शाश्वत नियम है। धु्रव ने यदि प्रभु की गोद को प्राप्त किया तो देवर्षि नारद के द्वारा। अर्जुन ने यदि प्रभु के विराट स्वरुप का साक्षात्कार किया तो जगद्गुरु भगवान कृष्ण की महती कृपा से। राजा जनक जीवन की सत्यता को समझ पाए, लेकिन गुरु अष्टावक्र के माध्यम से। कथा के अंतिम क्षणों में कथाव्यास ने कहा कि ‘अंधकार को क्यों धिक्कारें, अच्छा हो एक दीप जलाएं’ अंधकार कितना ही पुराना क्यों न हो, लेकिन एक छोटा सा दीपक जलाते ही क्षण भर में खत्म हो जाता है। इसी प्रकार कोई कितना भी पापी क्यों न हो, ज्ञान का दीपक जलते ही जन्म-जन्मांतरों के कर्माे का तिमिर छट जाता है। साध्वी ने कहा कि गुरुदेव का कहना है कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। भारत की जेलों में कार्यरत बंदी सुधार एवं पुनर्वास कार्यक्रम-अंतरक्रांति प्रकल्प इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। वे कैदी जिनके मुख अपब्शदों के अंगारे उगलते थे, आज शांत भाव से प्रभु के भजन का गुनगुना रहे हैं। अब उनके हाथ जुर्म की कालिख से सने नहीं बल्कि स्व-रोजगार एवं स्वावलंबन की महक से सुगंधित हैं। तिहाड़ जेल के कैदियों ने अपने जवीन में श्रमनिष्ठा, संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठित किया है। भागवत कथा के दूसरे दिन बल्लभगढ़ सहित आसपास क्षेत्र से अनेकों महिला-पुरुष कथा सुनने पहुंचे और ध्यानपूर्वक कथा के रसपान का आनंद लिया।