वैष्णो देवी मंदिर में हुई स्कंदमाता की पूजा

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Faridabad News, 10 April 2019 : नवरात्रोंं के चौथे दिन सिद्धपीठ मां वेष्णोदेवी मंदिर में मां स्कंदमाता की भव्य पूजा की गई। इस अवसर पर मंदिर में सुबह से ही भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया। मंदिर में आज पूर्व मंत्री महेंद्र प्रताप भी स्कंदमाता के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचे। उन्होंने पूजा अर्चना में हिस्सा लिया और माता से मन की मुराद भी मांगी।

इस अवसर पर मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने उनका स्वागत किया। इस मौके पर उद्योगपति केसी लखानी, राकेश कोहली, सुधीर शर्मा, राजीव शर्मा, आनंद मल्होत्रा, गोविंद, गिर्राजदत गौड, फकीरचंद कथूरिया, अनिल ग्रोवर, प्रीतम धमीजा एवं रजशीन वर्मा मुख्य रूप से उपस्थित थे। इस अवसर पर मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने बताया कि चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता भगवान कार्त‍िकेय यानि स्‍कंद जी की मां हैं इसलिये इनको यह नाम दिया गया है। स्कंदमाता को पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वाली कहा जाता है।

माना जाता है कि सच्‍चे मन से अगर इनकी पूजा की जाए तो फलस्‍वरूप अज्ञानी भी ज्ञानी हो जाता है। स्‍कंदमाता के स्‍वरूप की बात करें तो इस देवी मां की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र यानी सफेद है। यही वजह है क‍ि उपसाना अक्‍सर सफेद वस्‍त्र धारण कर की जाती है। स्‍कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। वहीं यह सिंह की सवारी करती हैं।

देवी स्कंदमाता की दिशा उत्तर है। दुर्गा सप्तशती में इन्हें चेतान्सी कहा है। स्कंदमाता विद्वानों व सेवकों की जननी है। स्कंदमाता की पूजा का श्रेष्ठ समय है दिन का दूसरा प्रहर। इन्हें चंपा के फूल, कांच की हरी चूडियां व मूंग से बने मिष्ठान प्रिय है। देवी स्कंदमाता की साधना उन लोगों के लिए सर्वश्रेष्ठ है, जिनकी आजीविका का संबंध मैनेजमेंट, वाणिज्य, बैंकिंग अथवा व्यापार से है।मां की सच्चे मन एवं पूर्ण विधि विधान से पूजा कर जो भी मुराद मांगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है।

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