Health Updates : बच्चों का वो लड़कपन अब न रहा, दोस्तों के साथ वो नादानी अब न रही, समझदारी खा रही बचपन, मासूमियत के वो ठहाके अब न रहे। इसी पंक्तियों से कुछ मेल खाता है यूनिवर्सिटी ऑफ लीवरपूल और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन का नया रिसर्च।
इस नए रिसर्च में कम उम्र में बच्चों के तनावग्रस्त होने की बात कही गई है। सन् 2000-01 में पैदा हुए दस हजार बच्चों पर रिसर्च किया गया और पाया कि उन बच्चों में से 24 प्रतिशत लड़कियां और नौ प्रतिशत लड़के 14 की उम्र तक आते-आते तनावग्रस्त हो जाते हैं।
स्टडी के दौरान बच्चों के तीन, पांच, सात, ग्यारह और चौदह तक होने तक मां-बाप को बच्चे की मानसिक स्थिति की एक रिपोर्ट रिसर्चर्स को देनी थी। शुरुआती सालों में तो नहीं, लेकिन जैसे ही बच्चे 14 की उम्र के करीब आने लगे वे मानसिक रूप से परेशान होने लगे। जिनमें लड़कियों की संख्या ज्यादा थी।
रिसर्च में पाया गया कि जो बच्चे अमीर परिवार से थे वो गरीब परिवार के बच्चों के मुकाबले ज्यादा तनाव में पाए गए। मां-बाप की रिपोर्ट जो बच्चे की मानसिक हालातों का जायजा देती थी, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता था सात साल तक लड़के और लड़की दोनों की मानसिक स्थिति समान रूप से प्रभावित थी। लेकिन जैसे ही वे किशोरावस्था में कदम रखते हैं बच्चों की सोच भी बदल जाती है। जहां लड़कों की मानसिकता में ज्यादा फर्क नहीं आता वहीं लड़कियां डिप्रेस होना शुरू हो जाती हैं।
वहीं जब बच्चों को खुद की मानसिक स्थिति पर आधारित एक रिपोर्ट तैयार करने को दी गई तो उनके विचार उनके मां- बाप से काफी अलग पाए गए। इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि मां-बाप के रूप में हम बच्चों को समझने की पूरी दावेदारी पेश करते हैं लेकिन अंदर ही अंदर उनके मन में क्या तूफान चल रहा है इसका हमें अंदाजा तक नहीं होता। शायद यही वजह है हर चार में से एक लड़की आज डिप्रेशन की शिकार है।