New Delhi News, 04 Nov 2019 : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के दिल्ली स्थित दिव्य धाम आश्रममें शिष्यों को मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम द्वारा “आंतरिक जागृति से विश्व शांति” का दिव्य संदेश दिया गया। बड़ी संख्या में शिष्य अपने आध्यात्मिक विकास के लिए प्रेरणा प्राप्त करने हेतु इस विलक्षण आयोजन में शामिल हुए। संत समाज द्वारा भक्तिपूर्ण भजनों ने शिष्यों के हृदय में पवित्र भक्ति के बीज आरोपित किए।
विश्व के समक्ष परमाणु युद्ध का खतरा बना हुआ है। दुनिया में बढ़ते मुद्दों को देखते हुए, ऐसा प्रतीत होता है कि विश्व शांति और सुरक्षा से दूर जा रहा है। इस विकट स्थिति में मात्र आध्यात्मिकता ही मानव जाति को विनाश से बचा सकती है और “विश्व शांति” को पुनः स्थापित कर सकती है। ईश्वरीय ज्ञान से विभूषित प्रबुद्ध मानव ही दुनिया में आध्यात्मिक क्रांति स्थापित करने हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाने योग्य हैं। ब्रह्मज्ञान के शक्तिशाली माध्यम द्वारा निश्चित ही ऐसे समाज को पुनर्जीवित किया जा सकता है, जहाँ दुःख, विनाश, पाप, असत्य, अनाचार, अशांति और उदासी के लिए कोई स्थान न हो। विश्व शीघ्र ही एक उल्लेखनीय परिवर्तन का साक्षी होगा, जहाँ युग परिवर्तन और शांति को स्थापित किया जाएगा।
परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य व प्रचारकों ने धर्म व विज्ञानपर आधारित विचारों द्वारा समझाया कि साधक को जीवन में भक्ति, दृढ़ विश्वास और पूर्ण समर्पण की नितांत आवश्यकता है। यह गुण साधक में ईश्वरीय ज्ञान से आते हैं, जिसे साधक पूर्ण सतगुरु की कृपा से प्राप्त करता है। जैसे कंप्यूटर में एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर चुपचाप अपना काम करता है और कंप्यूटर सिस्टम को भीतर से साफ करता है व गैर-जरूरी चीजों को कंप्यूटर में दर्ज करने से रोकता है। इसी तरह भक्ति मन और आत्मा को भीतर से साफ करती है और अशुद्धियों को प्रवेश करने से रोकती है। नकरात्मक विचार बिना किसी प्रयास के हमारी बुद्धि और मन में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। परन्तु सकरात्मकता व श्रेष्ठ गुणों को धारण करने हेतु अधिक अभ्यास व श्रम की आवश्यकता होती है। हमें अपने भीतर आध्यात्मिक शक्ति विकसित करने की आवश्यकता है जो ध्यान व गुरु आज्ञाओं को जीवन में धारण करके आती है। हमारा अंतःकरण मलिन दर्पण के समान है जिसमें हम अपने आत्मिक स्वरुप को नहीं देख पाते। ध्यान द्वारा हम स्वयं स्वच्छ और शुद्ध बनते हुए अन्य लोगों के जीवन में एक दिव्यता का संदेश संचार करते हुए, विश्व में शांति की स्थापना कर सकते है।
सूरज के उगते ही पुष्प पल्वित हो जाते हैं। इसी प्रकारगुरु की मात्र उपस्थिति सेशिष्य की प्रगति होती है। जब शिष्य गुरु के श्री चरणों में पूर्ण रूपेण आत्मसमर्पण करता है तो गुरु उसे सब कर्म-संस्कारों से मुक्त कर देते हैं। एक शिष्य को इस कृपा का पूरा लाभ उठाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए। मात्र गुरु के प्रति विश्वास और धैर्य के माध्यम से शिष्य को सीखने, समझने और जीवन में शांति प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है।