दम तोड़ती बौद्ध टंका कला को सूरजकुंड मेले में मिल रही है नई पहचान

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Faridabad News, 14 feb 2020 : 34वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेले में जहां देश-विदेश के शिल्पी और कलाकार अपने जलवे बिखेर रहे हैं वहीं मेले के स्टाल नंबर 220 पर बैठे दोरजी हजारों साल पुरानी बुद्ध परंपरा की एक निशानी को बचाने में जुड़े हैं। हिमाचल प्रदेश के मनाली से आए दोरजी जिस चित्रकला के संरक्षण में जुटे हैं उसका नाम है बुद्धिस्ट टंका पेंटिंग कला।

दोरजी बताते हैं कि रेशम के कपड़े पर बनाई जाने वाली यह पेंटिंग भगवान बुद्ध के जन्म से भी पहले की है। इस कला की शुरूआत तिब्बत से हुई और बाद में यह पूरी दुनिया में फैलती चली गई। एक समय था जब बौद्ध जीवनशैली में इस कला का बहुत मान और सम्मान था। लेकिन अब संरक्षण के अभाव में यह लोक चित्रकला समाप्त होती जा रही है। हिमाचल सरकार इसके संरक्षण के लिए कुछ योगदान देती है लेकिन इसके बावजूद इसे और अधिक संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है।

दोरजी ने बताया कि वह इस चित्रकला पद्धति को बचाने के लिए अब तक प्रगति मैदान दिल्ली, ललित कला अकादमी दिल्ली, हैदराबाद और शिमला में भी कई स्थानों पर अपने स्टाल लगा चुके हैं। वह पहली बार सूरजकुंड मेले में आए तो लोगों ने इस कला को पहचाना और इसकी कद्र भी की। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में अब इस चित्रकला के जानकार पांच प्रतिशत लोग भी नहीं बचे हैं। दोरजी ने बताया कि बौद्धिस्ट टंका पेंटिंग को हवा व पानी न लगे तो यह 300 साल तक भी खराब नहीं होती।

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