मकर संक्रांति: जानिए इस पर्व का आध्यात्मिक महत्व : आशुतोष महाराज

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New Delhi News, 12 Jan 2022: जनवरी माह की14 तारीख को मकर संक्रांति का उत्सव पूरेभारतवर्ष में हर्षोल्लास से मनाया जाता है।अधिकांश लोग यूँ तो इस पर्व को सिर्फ फसल-कटाई केत्योहार के तौर पर ही समझते और मनाते हैं। पर क्या आपजानते हैं? दक्षिण भारत में इस दिवस का माहात्म्य अत्यंतपावन और आध्यात्मिक है। खास कर केरल प्रदेश में यहदिन भगवान ‘अय्यप्पा’को समर्पित है। इस दिन विश्व-भरसे करोड़ों भक्त भगवान अय्यप्पा के दर्शन करने के लिएसबरीमाला मंदिर तक की यात्रा तय करते हैं।भगवान अय्यप्पा के धाम तक पहुँचने की यात्रा कईपड़ावों से होकर गुज़रती है। एक पथिक उन्हें बहुत ही धैर्यऔर प्रतिबद्धता से पार करता है। तभी वह अंततः अपनेअय्यप्पा स्वामी के दर्शन प्राप्त कर पाता है। शबरीमला यात्राके पड़ाव कुछ इस प्रकार हैं-

शबरीमला यात्रा का पहला पड़ाव है- ‘मालाधारणम्‌’।इस रीति के अंतर्गत ‘गुरुस्वामी’यात्रा में शामिल पथिकोंको रुद्राक्ष या तुलसी की माला पहनाते हैं। ‘यात्री’उन्हीं केमार्गदर्शन और संरक्षण के छत्र तले शबरीमलाकी यात्रा को पूर्ण करते हैं।आध्यात्मिक संदर्भ-यहाँ‘गुरुस्वमी का माला पहनाना’सतगुरु द्वारा शिष्य का चयन और उसे स्वीकार करना इंगितकरता है।

मण्डल-व्रतम्- मालाधारणम्‌ के पश्चात्‌ यात्रा के दूसरेपड़ाव पर यात्री 41 दिन का उपवासधारण करता है।आध्यात्मिक संदर्भ- गुरु द्वारा अपनाए जाने के पश्चात्‌शिष्य मण्डल-व्रतम्‌ याने उपवास के पड़ाव से गुज़रताहै। इसका गूढ़ अर्थहुआ कि शिष्य गुरु के समीप बैठकर उनसे सत्संग-प्रवचनोंऔर सदगुणों को ग्रहण करता है।

इरुमुड़ि-कट्‌टु- इसमें यात्री ‘इरुमुड़ि-कट्टु’को लादकर अपनी यात्रामें आगे बढ़ता है। ‘इरुमुड़ि-कट्टु’- 3 शब्दों के मेल सेबना है- ‘इरु’, ‘मुड़ि’और ‘कट्टु’। इनका क्रमानुसार अर्थहुआ- ‘दो’, ‘थैली’ (वाला), ‘बस्ता’। इस बस्ते में दोथैलियाँ या भाग होते हैं। पहले भाग में घी से भरा तीनआँख वाला नारियल और पूजा की अन्य सामग्री होती है।दूसरे भाग में यात्री अपनी निजी ज़रूरतों के सामान कोरखता है, जिसे वह यात्रा के दौरान इस्तेमाल करता है।आध्यात्मिक संदर्भ- इस मोड़ परसद्गुरु शिष्य के तृतीय नेत्र का ‘ब्रह्मज्ञान’ द्वारा उन्मूलनकरते हैं। यात्री द्वारा‘त्रय-नेत्री नारियल’को बस्ते में धारण करना तीसरी आँखके खुलने का ही द्योतक है। यहाँ ‘घी’ जागृत आत्मा कोसंबोधित करता है।

शबरी-पर्वत- अपना बस्ता तैयार करके, गुरुस्वामी के सान्निध्य में, ‘यात्री’शबरी-पर्वत के शिखर की ओर यात्रा करना आरंभ करता है।इस पूरे सफर के दौरान वह ‘स्वामी शरणम्‌ अय्यप्पा’ का सततसुमिरन करता रहता है। आध्यात्मिक संदर्भ- जब सद्गुरु ब्रह्मज्ञान द्वारा शिष्यका तृतीय नेत्र खोलते हैं, तब वे उसके अंतर्जगत में प्रभु काआदि-नाम भी प्रकट कर देते हैं।

गर्भ-गृह- यात्रा के इस अंतिम पड़ाव पर ‘यात्री’गर्भ-गृह में भगवानअय्यप्पाकी मूर्ति के समक्ष पहुँचता है। प्रथा-स्वरूप वहयहाँ पर ‘घी-पूरित नारियल’की तीसरी आँख द्वारा अय्यप्पास्वामी की मूर्ति पर घी अर्पित करता है। फलस्वरूप भगवानअय्यप्पा का आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी यात्रा को सफलबनाता है।आध्यात्मिक संदर्भ- शिष्य की चेतना जब अपनी आंतरिक यात्रा पूरी करकेब्रह्मरंध्र तक पहुँचती है, तो यूँ कहें कि जब एक जीवात्मापरमात्मा के निवास-स्थान तक पहुँचती है- तब वह स्वयंको परमात्मा को अर्पित कर उनसे पूर्ण मिलन प्राप्त करती है।

अंततः आप समझ सकते हैं कि स्थूल दृष्टि सेमात्र बाहरी प्रथाओं का त्योहार- ‘मकर-संक्रांति’आध्यात्मिकसार से ओत-प्रोत है। एक जीवात्मा को अपने लक्ष्य ‘परमात्मा’ तक ले जाने का गूढ़ संदेश ‘शबरीमला-यात्रा’द्वारा संप्रेषितकरता है। तो आइए, भगवान अय्यप्पा को तत्त्व से जाननेहेतु- ‘मकर-संक्रांति पर करें अंतयात्रा’!आपकी यात्रा मंगलमय हो!

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