समय पर जांच और इलाज ने रोगी को मल्टी-आॅर्गेन फेल्यर (कई अंगों के बेकार होने) से बचाया

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Faridabad News : 30 वर्शीय अकबरी को पेट में जब बहुत तेज दर्द हुआ तो उन्हें फोर्टिस हाॅस्पिटल, फरीदाबाद लाया गया और इस दौरान उन्हें बीच-बीच में उल्टी भी हो रही थी। अकबरी का इमरजेंसी अल्ट्रासाउंड कराया गया, जिसमें सामने आया कि वह गंभीर पैन्क्रियाटाइटिस से पीड़ित हैं। एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड क्लोएंजियोपैन्क्रियाटोग्राफी (बाइल और पैन्क्रियाटिक डक्ट्स का एक्स-रे) के बाद पता चला कि उनका बाइल डक्ट 15 सेंटीमीटर लंबे राउंड वर्म (कीड़ा) से संक्रमित है। यह पता लगने के बाद फोर्टिस एस्काॅट्र्स हाॅस्पिटल, फरीदाबाद के गैस्ट्रोएंटेरोलाॅजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डाॅ. अमित मिगलानी ने रोगी का जीवन बचाने वाली सर्जरी की।

अकबरी के मामले में कई सारी जटिलताएं थी क्योंकि कीड़ा पूरी तरह से काॅमन बाइल डक्ट में फंसा हुआ था और इस वजह से उसे वहां से निकालना बेहद मुष्किल काम था। डाॅक्टरों ने विषेशीकृत उपकरणों के साथ और सामान्य एनेस्थिसिया देकर एंडोस्कोपिक तरीका अपनाने का फैसला किया। यह तरीका पारंपरिक तरीके से बिलकुल अलग था, जिसमें रोगी की लंबे समय तक चलने वाली सर्जरी की जाती। अगर यह सर्जरी करने में जरा भी देर हो जाती तो पैन्क्रियाटाइटिस की स्थिति बिगड़ सकती थी और रोगी के कई अंग खराब होने का खतरा बढ़ जाता। यह सर्जरी सफल रही और दूसरे ही दिन रोगी को हाॅस्पिटल से डिस्चार्ज भी कर दिया गया।

डाॅ. अमित मिगलानी ने कहा, ’’टेक्नोलाॅजी के एडवांस होने के साथ ही नए एंडोस्कोप और बेहद आधुनिक एंडोस्कोपिक उपकरण आए हैं, जिनकी मदद से अब कई प्रक्रियाओं को बड़ी आसानी से पूरा किया जा रहा है। कम से कम इन्वेसिव ये प्रक्रियाएं हाॅस्पिटल में रहने की रोगी की अवधि को कम करती हैं और इसके साथ ही इनमें आॅपरेषन के बाद होने वाले संक्रमणों व जटिलताओं की आषंका भी कम रहती है।

रोगी अकबरी ने कहा, ’’मैं इतनी कमजोर व नाजुक हो गई थी और मेरी भूख बिलकुल मर गई थी। मुझे बहुत दर्द होता था। मैं बता नहीं सकती कि मेरी क्या हालत थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मेरे साथ हुआ क्या है। मुझे सिर्फ इतना पता था कि यह दर्द बेहद खतरनाक

होता था और मुझे कुछ सुधबुध नहीं रहती थी। अब इलाज के बाद मुझे बहुत बेहतर लग रहा है और मुझे खान-पान में सफाई और स्वस्थ भोजन करने का महत्व समझ में आ गया है।’’

डाॅ मिगलानी ने कहा, ’’ऐसे मामले कमजोर आर्थिक-सामाजिक वर्ग में आम होते हैं क्योंकि उनके यहां उपयुक्त साफ-सफाई का अभाव होता है। हालांकि अधिकांष मामलों में ये कृमि छोटी आंतड़ियों में विकसित होते हैं और डि-वर्मिंग करने की दवाई देकर उन्हें षरीर से बाहर निकाला जा सकता है फिर चाहे बात बच्चों की हो या वयस्कों की। जिन मामलों में सर्जरी करने की जरूरत होती है उनमें हमारे डाॅक्टर नवीनतम टेक्नोलाॅजी का इस्तेमाल करने में बेहद आरामदायक और सहज महसूस करते हैं इसलिए रोगियों को कम से कम असहजता महसूस होती है।’’

हरदीप सिंह , फैसिलिटी डायरेक्टर, फोर्टिस अस्पताल, फरीदाबाद ने बताया कि फोर्टिस एस्काॅर्ट के पास नवीनतम टैक्नोलाॅजी और श्रेश्ठ क्लीनिकल विषेशज्ञता हासिल है। हमने पूर्व में भी ऐसी कई क्लीनिकल चुनौतियों को स्वीकार किया है। मैं इस उपलब्धि के लिए डाॅ मिगलानी की टीम को बधाई देता हूं।

राउंड वम्र्स, हुक वम्र्स और व्हिप वम्र्स ऐसे पराजीवी होते हैं जो मिट्टी के जरिए मनुश्यों के षरीर में प्रवेष करते हैं। ये आंतरिक रक्त स्राव कर (जिससे षरीर में आयरन की कमी हो सकती है और परिणामस्वरूप एनीमिया हो सकता है), आंतड़ियों में सूजन और अवरोध पैदा करते हैं, डायरिया, पोशक तत्वों के सेवन, पाचन और षरीर में सोखे जाने की क्षमता घटाकर षरीर के पोशण स्तर को घटाते है। अच्छी साफ-सफाई, स्वच्छता और कुछ आर्थरोपाॅड कीटों (उदाहरण के लिए ब्लैक फ्लाइज) के काटने से बचकर राउंड वर्म के संक्रमणों को रोका जा सकता है।

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