Faridabad News, 12 Feb 2019 : हरियाणवी संस्कृति का प्रचार एवं प्रसार करने के लिए 33वां अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेला एक मील का पत्थर साबित हो रहा है। हर कोई व्यक्ति जो मेला देखने के लिए सूरजकुंड मेला परिसर स्थित अपना घर में पहुंचता है तो अपनी पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं क्योंकि यहां पर अलग-अलग स्टॉलों में हरियाणवी संस्कृति से जुडी प्रत्येक वस्तु एवं सामान को बड़ी सहजता के साथ सजाया और संवारा गया है। मेला परिसर में आने वाले मुख्य अतिथियों का आतिथ्य सत्कार हरियाणवी पगड़ी बांधकर किया जाता है। यहां पर एक बड़ा हुक्का भी रखा गया है, जिसके कश लेते हुए मुख्य अतिथि सहित अन्य गणमान्य नागरिक भी फोटो खिचवाते हैं। यहां पर चारा/छानी काटने के लिए पुराने जमाने का गंडासा भी लगाया गया है। पुराने जमाने में खेश और दरियां कैसे बनाई जाती थी उसकी जानकारी भी दर्शकों को दी जा रही है।
हरियाणवी संस्कृति का प्रचार एवं प्रसार करने के लिए स्कूलों के विद्यार्थी भी पीछे नहीं हैं। मंगलवार को मुख्य चौपाल में डिवाइन स्कूल के विद्यार्थियों ने एक से बढकर एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रस्तुत किया। इन कार्यक्रमों में संस्कृति की झलक स्पष्टï तौर पर नजर आ रही थी। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की कड़ी में मंगलवार को विभिन्न राज्यों और विदेशों के कलाकारों ने अपने कार्यक्रमों में अपने देश की संस्कृति का बेहतर प्रदर्शन कर उपस्थित लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।
अपना घर में हरियाणवीं संस्कृति से जुडी फुलझड़ी, ईंढी, बीजना, बोइया, पीढा, ठाठिया, पलंग सहित अनेक प्रकार का सामान स्टॉलों में रखा गया है। सोनीपत जिला की कौशल्या ने बताया कि फुलझड़ी पुराने जमाने में लडक़ी के विवाह में शगुन के तौर पर दी जाती थी। इसके अतिरिक्त नया मकान बनाने पर दरवाजे/शाल में छत पर फुलझड़ी को लगाया जाता था। भाई के नए मकान बनाने पर बुलावे के बाद बहन बढिया विभिन्न रंगों की फुलझड़ी अपने भाई के मकान में लगाकर आती थी, जिसके बाद भाई खुशी के साथ अपनी बहन को इच्छानुसार उपहार देता था।