Faridabad News : एशियन अस्पताल के डॉक्टरों ने थैलीसीमिया से ग्रस्त इराकी मरीज की सर्जरी कर जान बचाई। इराक निवासी अला अब्दुल्ला की पेट की तिल्ली का वज़न सामान्य से ज्यादा होने के कारण उसे कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। इसके अलावा वो लकवे का शिकार हो गया था। थैलीसीमिया ग्रस्त होने के कारण बार-बार उसे खून चढ़वाना पड़ता था।
थैलीसीमिया माता-पिता से बच्चों को मिलने वाला अनुवांशिक रक्त रोग है। इसमें लाल रक्त कणिकाओं का आकार छोटा और इनकी आयु भी कम होती है। इसमें हीमोग्लोबिन न बनने के कारण मरीज के शरीर में रक्त की कमी आ जाती है और मरीज को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है। थैलीसीमिया तीन प्रकार का होता है।
मेजर थैलीसीमिया : यह बीमारी उन बच्चों को होने की संभावना होती है जिनके माता-पिता दोनो ही थैलीसीमिया से ग्रसित होते हैं। यह गंभीर अवस्था होती है और इससे ग्रस्त रोगी को नियमित तौर पर खून चढ़वाने की जरूरत होती है।
माइनर थैलीसीमिया : यह रोग उन बच्चों को जिन्हें प्रभावित जीन अपने माता-पिता में से किसी एक से प्राप्त होता है। इसके लक्षण दिखाई नहीं देते । खून की जांच करने पर ही इसका पता चल पाता है।
इंटरमीडिया थैलीसीमिया : इंटरमीडिया से प्रभावित रोगी की अवस्था मेजर और मइनर थैलीसीमिया के बीच की होती है। इसके लक्षण 4 से 8 वर्ष की उम्र में दिखाई देते हैं।
थैलीसीमिया के लक्षण : लगातार बीमार रहना, सूखता चेहरा, बज़न न बढऩा, शरीर में पीलापन होना जैसे लक्षणों से मरीज के थैलीसीमिक होने का पता चलता है।
इराक निवासी 27वर्षीय अला अब्दुल्ला थैलीसीमिया इंटरमीडिएट नामक बीमारी से ग्रस्त था। थैलीसीमिया इसके कारण उसका समय-समय पर ब्लड ट्रांसफ्यूज़न होता था। बीमारी के कारण अला अब्दुल्ला का हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट निरंतर घटती रहती थी।
एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज अस्पताल के सर्जन डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि शुरूआत में जब अला अब्दुल्ला को एशियन अस्पताल में लाया गया तो थैलीसीमिया से ग्रस्त होने के कारण अस्पताल के मेडिकल ऑनकोलॉजी और हीमेटोलॉजी टीम के डॉ. प्रशांत मेहता और डॉ. राहुल अरोड़ा के तहत भर्ती कराया गया। डॉ. प्रशांत मेहता ने बताया कि मरीज एक्सट्रैडम्यलरी हेमटोपोइजिस से पीडि़त था। इसमें बोन मैरो में बनने वाला रक्त विशुद्ध हो जाता है। बोन मैरो के अलावा अन्य जगहो पर रक्त बनना शुरू हो जाता है, जो गांठ बन जाती है। हमारे शरीर में मौजूद तिल्ली आमतौर पर हमें महसूस नहीं होती, लेकिन रक्त के गांठ में परिवर्तित होने के कारण तिल्ली का आकार नाभि तक बढ़ जाता है।
डॉ. राहुल ने बताया कि मरीज पिछले दो महीनों से शरीर के निचले अंगों में कमजोरी की शिकायत और लकवे के साथ अस्पताल पहुंचा। मरीज अपनी दैनिक गतिविधियों के लिए दूसरों पर निर्भर था। रोगी की प्रारंभिक जंाच की गई। रोगी की बायोप्सी कराई गई। डॉ. प्रशांत ने मरीज को ब्लड ट्रांसफ्यूज़न, चेल्सन थेरेपी और अन्य चिकित्सकीय उपायों के जरिए संरक्षित रखा गया। इसके बाद मरीज की हेपोटोसप्लेनोमेगाली पर विचार-विमर्श करते हुए सीटी स्कैन किया गया, जिसमें पाया गया कि मरीज की स्लीन जोकि 7 से 14 सेंटीमीटर की माप की होती है, इसका आकार 34 सेंटीमीटर तक बढ़ गया। और लिवर दोनों का आकार अत्याधिक बढ़ गया है। डॉ. प्रशांत मेहता और उनकी टीम ने सर्जरी टीम के डॉक्टरों से मरीज की सर्जरी उसके जोखिम और जटिलताओं के बारे में विचार विमर्श कर सर्जरी की योजना बनाई।
एशियन अस्पताल के सर्जन डॉ. वेद प्रकाश ने मरीज की स्थिति को देखते हुए परिजनों को मरीज की सर्जरी कराने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि प्लेटलेट कम होने की स्थिति में सर्जरी करना खतरनाक लेकिन बेहद जरूरी था। परिजनों की सहमति के बाद अला अब्दुल्ला की सर्जरी की गई। इस सर्जरी के जरिए अला अब्दुल्ला की विशाल तिल्ली को बाहर निकाला गया। डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि आमतौर पर तिल्ली का वजन 150 ग्राम होता है, लेकिन मरीज की तिल्ली का वज़न 3 किलोग्राम था। इसके बाद अला के हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स में इजाफा हुआ। सर्जरी के बाद मरीज को आईसीयू में और बाद में वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। मरीज की स्थिति अब स्थिर है। इसके बाद न्यूरोसर्जन डॉ. कमल वर्मा द्वारा रोगी की स्पाइन सर्जरी की गई, जिसके बाद रोगी की स्थिति में काफी सुधार आया और अपनी दैनिक गतिविधियां स्वयं पूरी करने में सक्षम है।