Faridabad News : श्रीराम कथा के आठवें दिन मोरारी बापू को सुनने 17 हजार से ज्यादा राम भक्त पहुंचे। बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अनिल जैन, ऑल इंडिया एंटी टेररिस्ट फ्रंट के चेयरमैन एमएस बिट्टा, फरीदाबाद जिला बीजेपी अध्यक्ष गोपाल शर्मा, पूर्व सांसद अवतार सिंह भड़ाना, पूर्व मंत्री एसी चौधरी, पूर्व विधायक आनंद कौशिक, (रिटायर्ड) हरियाणा डीजीपी एसएन वशिष्ठ, पालमपुर महाराज, योग गुरू ओम जी समेत कई अतिथियों ने श्रीराम कथा सुनीं।
बापू ने कहा अगर सत्य को धर्म कहे, तो दुनिया का कोई धर्म उसे गलत नहीं कह सकता। बापू ने कथा के दौरान अलग-अलग धर्मों के ग्रंथों में सत्य की महिमा का व्याख्यान किया। उन्होंने कहा, जिस प्रकार दुनिया का कोई मजहब सत्य से इंकार नहीं कर सकता उसी प्रकार प्रेम से, करूणा से इंकार नहीं कर सकता। हमारे जीवन और इस विश्व में जितनी मात्रा में सत्य है, वह सतयुग है।
वह सभा नहीं जिसमें वृद्ध नहीं
वह वृद्ध नहीं जिसमें धर्म नहीं
वह धर्म नहीं जिसमें सत्य नहीं
वह सत्य नहीं जिसमें निर्भयता से बोला न जाए
हमारे जीवन में प्रेम है तो हम त्रेता युग में हैं। जहां हमारे ह्रद्य में करूणा का भाव है, वहां हम द्वापर युग में हैं क्योंकि करूणा द्वापरीय है। बापू ने कहा, जहां न सत्य हो, न करूणा हो वहां कलयुग है।
बापू ने पुष्प वाटिका और अशोक वाटिका का वर्णन किया। उन्होंने बताया, जिसमें पुष्प ही पुष्प हैं, कोई फल नहीं, न ही किसी को फल की इच्छा, विभिन्न प्रकार के पक्षी हैं वह पुष्प वाटिका है। जहां फल ही फल हैं, खुशबू की अनुभूति नहीं है, फल का भोग है और जहां कोई पक्षी नहीं है, वह अशोक वाटिका है। बापू ने कहा आज की समस्या है चिंता। पति-पत्नी का युगधर्म जिससे छोटे घर में अपने आप को सतयुग का अनुभव हो। पहला धर्म है, पति-पत्नी एक दूसरे को स्वतंत्रता दें, यह युगधर्म है। दूसरा धर्म है, श्रवण करने से मन में संदेह होता है। एक दूसरे पर संदेह न करें। शंका की दृष्टि से एक दूसरे को न देखें, वहम न करें। तीसरा धर्म है, पति-पत्नी दोनों एक दूसरे का फोन चेक न करें, एक दूसरे से कुछ न छुपाएं। चौथा धर्म है, स्वीकारिता रखो पत्नी कैसे भी स्वभाव की है, पति कैसे भी स्वभाव का हो उसे स्वीकार करें। पांचवां, पति-पत्नी में कोई मतभेद हो जाए तो रात्रिकाल में सोने से पहले सारे मनमुटाव भुला देना चाहिए। छठा, पति-पत्नी को एक संतान की प्राप्ति के बाद मैत्रीभाव से रहना चाहिए।
बापू ने आज की कथा में श्रीराम और सीता माता के विवाह का उल्लेख किया। उन्होंने बताया, किस तरह सीता माता ने सर्वप्रथम श्रीराम के दर्शन किए थे। बापू ने कहा, राम दर्शन कराने वाला गुरु होता है। फिर चाहे वो किसी भी रूप में आए। ऐसे गुरु को अपने आगे रखना चाहिए, गुरु सरल होता है, उसे जहां रखे रह जाता है। बापू ने बताया, पैर के पायल- सदाचरण का प्रतीक है, करधनि- संयम का प्रतीक है, कंगन- समर्पण का प्रतीक, दान का प्रतीक है, ये तीन आभूषण प्रभु को अपनी तरफ आकर्षिक करते हैं।