February 21, 2025

कूड़ा बीनने वाले बच्चों को दिखाई जीने की राह : पूनम सिनसिनवार

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Faridabad News : देश का बाल श्रम कानून, बाल विकास के नाम पर चलाई जा रही विभिन्न परियोजनाएं और बाल श्रम निरोधक अधिनियम बेशक बाल श्रमिकों की स्थिति सुधारने में कोई अहम भूमिका न निभा पा रहा हो, लेकिन यहां काम कर रहा एक गैर सरकारी संगठन इस दिशा में उल्लेखनीय योगदान दे रहा है। स्त्री शक्ति पहल समिति नामक यह संगठन यहां सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र सेक्टर-24 और 25 में चाय की दुकानों व ढाबों में काम करने वाले और सड़क से कूड़ा कचरा बीन कर अपनी रोजी रोटी चलाने वाले बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रहा है। संस्था का संचालन मुजेसर गांव में रहने वाली पूनम सिनसिनवार करती हैं। उन्होंने बताया कि उनकी संस्था द्वारा सेक्टर-24 गांव मुजेसर और सीही में भी इसी तरह के स्कूल चलाए जा रहे हैं।
सेक्टर- 24 में यह शिक्षा केन्द्र यहां स्थित चंद्रिका प्रसाद सामुदायिक केन्द्र में चलाया जा रहा है। इस स्कूल में आजाद नगर, रेलवे लाइन के पास स्थित झुग्गी बस्ती और औद्योगिक क्षेत्र में अनियमित रूप से काम करने वाले मजदूरों के बच्चों को शिक्षा प्रदान की जा रही है महिलाओं के लिए सिलाई कढ़ाई कंप्यूटर इंग्लिश स्पीकिंग डांसिंग ब्यूटी पार्लर प्रशिक्षण निशुल्क प्रदान किया जाता है। इस संस्था को सरकार की तरफ से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलती। आसपास स्थित कंपनियों के मालिक कभी कभार भले इसकी सहायता कर देते है। इसके अलावा जमनालाल बजाज फाउंडेशन द्वारा भी इस संगठन को मदद दी जाती है। संस्था की अध्यक्षा पूनम को साल 2005 में सीआईआई द्वारा बाल श्रमिकों को पढ़ाने के लिए आदर्श स्त्री पुरस्कार से नवाजा गया था। यह पुरस्कार उन्हें केन्द्रीय वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने प्रदान किया था। संगठन के सदस्य औद्योगिक क्षेत्र और आसपास के इलाके में घूमकर ऐसे बच्चों की तलाश करते हैं जो इन इलाकों से कूड़ा कचरा बीनते या चाय की दुकान व ढाबों में काम करते हैं। वे बच्चों की आंखों में आगे बढ़ने के सपने जगाते हैं। उनके समझाने का बच्चों पर सकारात्मक असर पड़ता है। इस तरह बच्चे पढ़ने के लिए उनके स्कूल में नियमित रहते हैं। स्कूल में तीन तरह की कक्षाएं लगाई जाती हैं। प्रथम कक्षा को बालवाड़ी कहा जाता है। इसमें में 1 से 6 साल के बच्चों को पढ़ाया जाता है। दूसरी कक्षा को अनौपचारिक शिक्षा की क्लॉस कहा जाता है। तीसरी कक्षा को ब्रिजकोर्स कहा जाता है। इस कक्षा में 10 से 15 साल तक के बच्चों को शिक्षा दी जाती है। इस स्कूल में फिलहाल 200 से ज्यादा बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे है। पांचवीं कक्षा पास करने वालों बच्चों का दाखिला यह संगठन सरकारी स्कूल में करवा देती है।
कहां रहते हैं बच्चे
इस स्कूल में पढ़ने के लिए आने वाले बच्चे यहां स्थित आजाद नगर, राजीव कॉलोनी, रेलवे लाइन और औद्योगिक क्षेत्र में बनी झुग्गी से आते है। इन सभी बच्चों के अभिभावक उन्हें पढ़ाने में असमर्थ थे। यहां तक वे लिए ठीक से रोटी तक का इंतजाम तक नहीं कर पा रहे थे।
क्या क्या सपने देख रहे हैं बच्चे
इस स्कूल में 10 साल का शोएब और 8 साल के राहुल पढ़ लिखकर डॉक्टर बनना चाहते हैं। सुशील, शिव कोइराला और रंजित का कहना है कि वे पढ़ लिखकर इंजीनियर बनना चाहते हैं। विक्की का सपना है कि वह बड़ा होकर एक उद्योगपति बने और अपने जैसे गरीब लोगों को रोजगार दे। 8 साल का सतबीर बड़ा होकर वकील बनना चाहता है। इसी तरह यहां अपनी एक साल की बहन को लेकर आने वाले सोनू और मोनू बड़े होकर ट्रांसपोर्टर बनना चाहते हैं क्योंकि उनके पिता ट्रक चलाने की नौकरी करते हैं। इसके अलावा और भी बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने अब कुछ बनने का सपना देखना शुरू कर दिया है।

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