Faridabad News, 06 Oct 2019 : वैष्णोदेवी मंदिर में अष्टमी पर हुई महागौरी की भव्य पूजा, कंजक भी पूजी गईं फरीदाबाद। सिद्धपीठ महारानी वैष्णोदेवी मंदिर में अष्टमी पर्व पर महागौरी की भव्य पूजा अर्चना की गई। इस अवसर पर मंदिर में कंजक पूजन किया गया। मंदिर के प्रधान जगदीश भाटिया ने कंजक पूजन की और महागौरी की भव्य पूजा का शुभारंभ करवाया । इस अवसर पर मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा। मंदिर में पहुंचे भक्तों ने भी कंजक पूजन में शामिल होकर हवन यज्ञ में हिस्सा लिया । मंदिर के प्रधान जगदीश भाटिया ने कहा कि माता की पूजा करने से सौभागय की प्राप्ति होती है। पूजन के अवसर पर श्री भाटिया ने कहा कि नवरात्रि के आठवें दिन यानी कि महा अष्टमी को कन्या पूजन से पहले महागौरी की पूजा का विधान है. महागौरी की पूजा अत्यंत कल्याणकारी और मंगलकारी है । मान्यता है कि सच्चे मन से अगर महागौरी को पूजा जाए तो सभी संचित पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्त को अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं।
कौन हैं महागौरी?
महागौरी को लेकर दो पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं । एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी। जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है. देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान उन्हें स्वीकार करते हैं और उनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं. ऐसा करने से देवी अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं. तभी से उनका नाम गौरी पड़ गया।
एक दूसरी कथा के मुताबिक एक सिंह काफी भूखा था. वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी ऊमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, लेकिन वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया. देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आ गई. मां ने उसे अपना वाहन बना लिया क्योंकि एक तरह से उसने भी तपस्या की थी।
महागौरी का स्वरूप
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महागौरी का वर्ण एकदम सफेद है. इनकी आयु आठ साल मानी गई है. महागौरी के सभी आभूषण और वस्त्र सफेद रंग के हैं इसलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है । इनकी चार भुजाएं हैं. उनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। मां ने ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू धारण किया हुआ है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा है. मां का वाहन वृषभ है इसीलिए उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है. मां सिंह की सवारी भी करती हैं।