Faridabad News, 07 July 2020 : मेट्रो अस्पताल के वरिष्ठ किडनी विशेषज्ञ डा. निमिष गुप्ता का कहना है कि हेमो डायलिसिस एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा किडनी के मरीजों में खून के गंदे पदार्थाे को साफ किया जाता है, हमारे शरीर में किडनी के कई काम है, जैसे पानी की सही मात्रा, कई तरह के पदार्थ जैसे सोडियम, पेटोशियम, कैल्शियम आदि खाने पीने से बनने वाले एसिड एवं यूरिया को सही मात्रा में बनाकर रखना। जब किडनी खराब होने के उपरोक्त तत्वों की मात्रा जानलेवा स्तर पर आ जाती है तब डायलिसिस एक कृत्रिम (आर्टिफिशल) किडनी का काम करती है। डा. गुप्ता ने बताया कि किडनी खराब होने पर दो तरह से खून साफ किया जा सकता है, पहला हेमोडायलिसिस जिससे एक मशीन द्वारा रात करीबन 4 से 6 घण्टे में खून साफ होता है, दूसरा पेरिटोनियल डायलिसिस, जिसमें पेट में पानी के द्वारा शरीर के गंदे पदार्थाे को साफ किया जाता है। हेमो डायलिसिस को लेकर बहुत भ्रांति प्रचलित है जैसे कि एक बार डायलिसिस शुरू हो तो वह बंद नहीं हो पाती। डा. निमिष गुप्ता का कहना है कि अगर गुर्दे का रोग पुराना है और किडनी धीरे-धीरे कई वर्षाे में खराब हो रही होती है, तभी डायलिसिस हमेशा करनी पड़ती है, अन्यथा किडनी अचानक ही खराब हुई हो या ऐसे बीमारी हो, जिसमें गुर्दे ठीक हो जाते है, उसमें डायलिसिस बंद हो जाती है। दूसरी गलत भ्रांति यह है कि डायलिसिस के मरीज ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पाते, सत्य यह है कि कई बार डायलिसिस के मरीजों में किडनी के सिवा कई और अंग जैसे हार्ट, लीवर, मस्तिष्क भी खराब होते है, जिससे मरीज ज्यादा लम्बा नहीं जी पाते। इससे डायलिसिस का कुछ लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि जिन मरीजों को डायलिसिस की जरूरत है, वह इससे लाभ ही पाते है, नुकसान नहीं, जो मरीज सही डाक्टरी सलाह, सही खान-पान, नियमित रूप से दवाईयां लेते है, ऐसे लोग कई वर्षाे तक डायलिसिस पर अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते है।