जल्दी जांच हो जाए तो लंग और सर्वाइकल कैंसर का इलाज संभव : आरजीसीआईआरसी
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Faridabad News, 15 Nov 2019 : लंग और सर्वाइकल कैंसर भारत में सबसे ज्यादा होने वाले कैंसर में शुमार हैं। हालांकि अगर समय पर जांच हो जाए और उचित इलाज मिले तो इनका पूरी तरह उपचार संभव है। दक्षिणी दिल्ली के नीति बाग स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर (आरजीसीआईआरसी) के विशेषज्ञों डॉ. मनीष शर्मा और डॉ. लीना डडवाल ने यह बात कही। दोनों विशेषज्ञ नेशनल इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (एनआईएमए) फरीदाबाद के सहयोग से फरीदाबाद में स्थानीय चिकित्सकों के लिए आयोजित कंटीन्यूइंग मेडिकल एजुकेशन (सीएमई) प्रोग्राम में संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता एनआईएमए फरीदाबाद के प्रेसिडेंट डॉ. सुरेश पासी और महासचिव डॉ. अतुल अग्रवाल ने की।
आरजीसीआईआरसी के मेडिकल ओंकोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. मनीष शर्मा ने कहा कि हाल के वर्षों में लंग (फेफड़े) के कैंसर के इलाज की दिशा में टेक्नोलॉजी बहुत उन्नत हुई है। शुरुआती स्टेज पर इसके सफल इलाज की दर बहुत ऊंची है। यहां तक कि लंग कैंसर के बाद के स्टेज में भी मरीज के हिसाब से तय की गई दवाओं (पर्सनलाइज्ड मेडिसिन) के जरिये ज्यादा समय जीवित रहना और जीवन की गुणवत्ता को सुधारना संभव हुआ है।
आरजीसीआईआरसी में सर्जिकल ओंकोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. लीना डडवाल ने सर्वाइकल कैंसर की जल्दी जांच की पैरवी की। साधारण से पैप स्मियर टेस्ट के जरिये इसकी जांच संभव है। यहां तक कि प्री-कैंसरस (कैंसर होने से पहले की स्थिति) स्टेज में भी इसकी जांच संभव है। इस स्टेज में जांच से कैंसर को बढ़ने से रोका जा सकता है। ग्रामीण महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर सबसे आम है, लेकिन साथ ही यह कैंसर का ऐसा प्रकार भी है, जिससे बचना संभव है। विकसित देशों में इस कैंसर को लगभग खत्म करने में सफलता मिल चुकी है। इसके बारे में पर्याप्त जागरूकता लाने की जरूरत है।
लंग कैंसर के इलाज में पर्सनलाइज्ड मेडिसिन के नए ट्रेंड पर डॉ. मनीष शर्मा ने कहा, “लंग कैंसर अलग तरह का कैंसर है और यह जेनेटिक म्यूटेशन के हिसाब से बदलता है। किसी व्यक्ति के अपने जीन के हिसाब से तय की गई विशेष दवाएं कम से कम साइड इफेक्ट के साथ ज्यादा से ज्यादा बेहतर नतीजे देने में सक्षम होती हैं। इन दवाओं को ओरल टेबलेट और इम्यूनोथेरेपी के जरिये दिया जाता है।“
लगातार खांसी आना, वजन कम होना, कभी-कभी बुखार आना और थूक में खून आना लंग कैंसर के शुरुआती स्टेज के लक्षणों में शामिल हैं। डॉ. शर्मा ने कहा कि धूम्रपान करना लंग कैंसर का सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है। सही जांच की जरूरत पर जोर देते हुए डॉ. शर्मा ने कहा, “कई बार लंग कैंसर के लक्षण टीबी से मिलते-जुलते होते हैं और मरीज को टीबी की दवा या निमोनिया की दवा दी जाने लगती है; इसकी वजह से उसे सही इलाज मिलने में देरी होती है। यह एक भ्रम है कि कैंसर जांच के लिए की जाने वाली बायोप्सी से कैंसर तेजी से बढ़ने लगता है।“
सर्वाइकल कैंसर के इलाज के संबंध में डॉ. लीना डडवाल ने कहा, “80 प्रतिशत मामले में सर्वाइकल कैंसर एचपीवी वायरस इंफेक्शन के कारण होता है, जिसका टीका उपलब्ध है। 9 से 14 साल की उम्र में दो इंजेक्शन के रूप में टीका दिया जा सकता है और 14 से 26 साल की उम्र में तीन इंजेक्शन दिया जाता है।“
डॉ. डडवाल ने आगे कहा कि शारीरिक संबंध बनाने की शुरुआत के तीन साल बाद से पैप स्मियर टेस्ट कराना चाहिए और हर तीन साल में जांच कराते रहना चाहिए। मासिक स्राव बढ़ जाना, मासिक के बीच में रक्तस्राव होना, गंदा स्राव होना सर्वाइकल कैंसर के कुछ सामान्य लक्षण हैं।