जय भवानी, जय शिवाजी के जयघोष के साथ महाराष्ट्र मित्र मंडल ने मनाई छत्रपति शिवाजी जयंती

0
306
Spread the love
Spread the love

फरीदाबाद,19 फरवरी. महाराष्ट्र मित्र मंडल द्वारा 19 फरवरी को गाँधी कॉलोनी स्थित कार्यलय में छत्रपति शिवाजी जयंती का कार्यक्रम आयोजित किया गया . कार्यक्रम जय भवानी जय शिवाजी के जयघोष के साथ शुरू हुआ . मंडल के संरक्षक सुधाकर पांचाल ने शिवाजी की प्रतिमा पर फूलो से बना हार अर्पित किया एवं कार्यक्रम में आए सभी कार्यकर्ताओ को शिवाजी के जीवन से प्रेरणा लेने की सिख दी.उन्होंने छत्रपति शिवाजी के बारे में बताते हुए कहा की छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1627 को मराठा परिवार में शिवनेरी (महाराष्ट्र) में हुआ था। शिवाजी के पिता का नाम शाहजी एवं माता का नाम जीजाबाई था . शिवाजी महाराज एक भारतीय शासक थे , जिन्होंने मराठा साम्राज्य खड़ा किया था . वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे बहादुर, बुद्धिमानी, शौर्यवीर और दयालु शासक थे . इसीलिए उन्हें एक अग्रगण्य वीर एवं अमर स्वतंत्रता-सेनानी स्वीकार किया जाता है . माता जीजाबाई धार्मिक स्वभाव वाली होते हुए भी गुण-स्वभाव और व्यवहार में वीरंगना नारी थीं। इसी कारण उन्होंने बालक शिवा का पालन-पोषण रामायण , महाभारत तथा अन्य भारतीय वीरात्माओं की उज्ज्वल कहानियां सुना और शिक्षा देकर किया था . दादा कोणदेव के संरक्षण में उन्हें सभी तरह की सामयिक युद्ध आदि विधाओं में भी निपुण बनाया था . धर्म, संस्कृति और राजनीति की भी उचित शिक्षा दिलवाई थी . उस युग में परम संत रामदेव के संपर्क में आने से शिवाजी पूर्णतया राष्ट्रप्रेमी , कर्त्तव्यपरायण एवं कर्मठ योद्धा बन गए . बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे . युवावस्था में आते ही उनका खेल वास्तविक कर्म शत्रु बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे . जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया , वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई , यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची . अत्याचारी किस्म के यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही डर के मारे बगलें झांकने लगे थे . शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया और यह बात पता चलने पर शिवाजी आग बबूला हो गए , उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया . तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनख का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया . इससे उसकी सेना अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं . उनकी इस वीरता के कारण ही उन्हें एक आदर्श एवं महान राष्ट्रपुरुष के रूप में स्वीकारा जाता है . इसी तरह शिवाजी महाराज अपने जीवन काल में एक से एक युद्ध जीते और मराठा साम्राज्य स्थापित करते गए . परन्तु छत्रपति शिवाजी महाराज का 3 अप्रैल 1680 ई. में तीन सप्ताह की बीमारी के बाद रायगढ़ में स्वर्गवास हो गया और मराठा साम्राज्य में अपना महाराज खो दिया परन्तु उनकी स्वराज्य की भावना आगे मराठा शासको में एक प्रेरणा बनी .

मंडल के अध्यक्ष राजेन्द्र पांचाल ने छत्रपति शिवाजी को पुष्प अर्पित किए . उन्होंने मंडल के संरक्षक सुधाकर पांचाल एवं लक्ष्मण पांचाल को भगवा रंग का फेटा पहना कर समान्नित भी किया.

कार्यक्रम में सुरेश मेसत्री , राजेन्द्र पांचाल , सुधाकर पांचाल , लक्ष्मण पांचाल , विलास पांचाल , रविन्द्र पांचाल , रोहित , तेजस , गायत्री , निशा , तनवी एवं मंडल के सभी कार्यकर्ता उपस्थित रहे .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here