Faridabad News, 01 Oct 2019 : महारानी वैष्णोदेवी मंदिर में नवरात्रों की धूम आरंभ हो गई है। दूसरे नवरात्रे पर मंदिर में मां चंद्रघंटा के जयकारों के बीच भक्तों ने मां की पूजा अर्चना में हिस्सा लिया। मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने तीसरे नवरात्रे पर मंदिर में भव्य पूजा अर्चना का शुभारंभ करवाया। इस अवसर पर हजारों भक्तों ने मां के दरबार में हाजिरी लगाई। मंदिर में प्रातकालीन पूजा के अवसर पर प्रधान जगदीश भाटिया, केसी लखानी, आर के बत्तरा,गिर्राजदत्त गौड, फकीरचंद कथूरिया, तिलक कथूरिया,नीरज भाटिया, पूर्व एसीपी दर्शनलाल मलिक, भारत डागर, तरूण, महेंद्र, नवीन मुख्य रूप से उपस्थित थे।
इस शुभ अवसर पर मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने बताया कि नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा मां के चंद्रघंटा रूप की पूजा की जाती है. नौ दिनों तक चलने वाली नवरात्रि के दौरान मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है. मां का तीसरा रूप राक्षसों का वध करने के लिए जाना जाता है. मान्यता है कि वह अपने भक्तों के दुखों को दूर करती हैं इसीलिए उनके हाथों में तलवार, त्रिशूल, गदा और धनुष होता है. इनकी उत्पत्ति ही धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार मिटाने के लिए हुई. मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की उपासना साधक को आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्रदान करती है. नवरात्री के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की साधना कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले उपासक को संसार में यश, कीर्ति और सम्मान मिलता है. यहां जानिए मां दुर्गा के इस तीसरे रूप के बारे में सबकुछ.
मां चंद्रघंटा का रूप
मां चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण है. मां चंद्रघंटा और इनकी सवारी शेर दोनों का शरीर सोने की तरह चमकीला है. दसों हाथों में कमल और कमडंल के अलावा अस्त-शस्त्र हैं. माथे पर बना आधा चांद इनकी पहचान है. इस अर्ध चांद की वजह के इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. अपने वाहन सिंह पर सवार मां का यह स्वरुप युद्ध व दुष्टों का नाश करने के लिए तत्पर रहता है. चंद्रघंटा को स्वर की देवी भी कहा जाता है.