Faridabad News, 16 Dec 2018 : 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में महा दरिंदगी हुई थी और उसके बाद देश सड़क पर उतर आया था। निर्भया गैंगरेप केस ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था लेकिन आज तक उस मामले के दोषी जिन्दा हैं जिसे लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं कि उन्हें फांसी पर कब लटकाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों को पिछले साल 5 मई को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसके बाद तीन दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल की थी। इसे खारिज किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2017 को चारों मुजरिमों पवन, अक्षय, विनय और मुकेश की फांसी की सजा को बरकरार रखा था। इस मामले को लेकर फरीदाबाद बार एसोशिएशन के पूर्व प्रधान एवं न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के अध्यक्ष एडवोकेट एल एन पाराशर का कहना है कि अब तक इन चारों को फांसी पर चढ़ा दिया गया होता तो देश में इस तरह की दरिंदगी के मामले कम हो जाते। वकील पाराशर का कहना है कि अब भी देश में ऐसी बारदातें हो रहीं है। मासूम बच्चियों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि देश के कुछ दरिंदों को फांसी पर लटकाने के बाद ऐसे अपराध कम हो जायेंगे और बहन बेटियों को आँख दिखाने से पहले लोग 100 बार सोंचेंगे।
वकील पाराशर ने कहा कि देश में जनसँख्या बहुत है इन चारों या अन्य कुछ दरिंदों को फांसी पर लटका देने से देश की जनसँख्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि 2012 में जिस परिवार की बेटी के साथ दरिंदगी हुई उसका दर्द वही जानते होंगे और उसके बाद जिन बेटियों के साथ ऐसी बारदातें हुए उस दर्द को उनका परिवार ही जानता होगा और ऐसे लोगों के दर्द को कम करने के लिए दरिंदगी करने वालों को बड़ा दर्द देना बहुत जरूरी है ताकि देश में गैंगरेप जैसी बारदातें रोकी जा सकें। उन्होंने कहा कि निर्भया केस को लगभग 6 साल हो गए और तब से अब तक ऐसी सैकड़ों बारदातें हो चुकी हैं और कई बड़ी बारदातो में आरोपियों को फांसी की सजा भी सुनाई जा चुकी है लेकिन अभी तक किसी को फांसी पर लटकाया नहीं गया जिस कारण दरिंदों के हौसले बुलंद हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को जीने का कोई हक़ नहीं है और इन्हे जल्द से जल्द फांसी पर लटका देना चाहिए। वकील पाराशर ने कहा कि आज भी लोग अपनी बेटियों को घर से बाहर नहीं भेजना चाहते और भेजते हैं तो जब तक बेटी घर नहीं पहुँचती तब तक वो चिंतित रहते हैं। वकील पाराशर ने कहा कि ऐसे दरिंदगी करने वाले इंसान नहीं राक्षस हैं और इन राक्षसों को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं है। वकील पराशर ने कहा कि इस मामले को लेकर मैं देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख रहा हूँ और मांग कर रहा हूँ कि ऐसे मामलों में डे टू डे सुनवाई हो, और पांच महीने के अंदर आरोपियों सजा दी जाये।