Faridabad News, 16 Oct 2018 : नवरात्रों के सातवें दिन सिद्धपीठ मां वैष्णोदेवी मंदिर में मां कालरात्रि की भव्य पूजा की गई। पूजा का शुभारंभ मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने करवाया। इस अवसर पर हजारों भक्तों ने मां के जयकारों के बीच पूजा अर्चना में हिस्सा लिया। प्रातकालीन आरती में मां के भजनों के बीच हवन यज्ञ में श्रद्धालुओं ने अपनी आहूति डाली।
इस अवसर पर भक्तों के बीच प्रसाद का वितरण भी किया गया। मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने आए हुए भक्तों का स्वागत किया। पूजा अर्चना में पूर्व विधायक चंदर भाटिया, पूर्व पार्षद राजेश भाटिया, उद्योगपति आर के जैन, गुलशन भाटिया, हनुमान मंदिर के प्रधान राजेश भाटिया, उद्योगपति आर. के बत्तरा, सुरेंद्र गेरा एडवोकेट, कांशीराम, अनिल ग्रोवर, नरेश, रोहित, बलजीत भाटिया, अशोक नासवा, प्रीतम धमीजा, सागर कुमार, गिर्राजदत्त गौड़, फकीरचंद कथूरिया नेतराम एवं राजीव शर्मा प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
पूजा अर्चना के उपरांत जगदीश भाटिया ने कहा कि नवरात्रि के सातवें दिन महा सप्तमी होती है। इस दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि की पूजा का विधान है। शक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है। मां कालरात्रि ही वह देवी हैं जिन्होंने मधु कैटभ जैसे असुर का वध किया था। मान्यता है कि महासप्तमी के दिन पूरे विधि-विधान से कालरात्रि की पूजा करने पर मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं । ऐसा भी कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों को किसी भूत, प्रेत या बुरी शक्ति का भय नहीं सताता।
शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयंकर है। देवी कालरात्रि का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए ह। मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं, इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। देवी कालरात्रि का रंग काजल के समान काले रंग का है जो अमावस की रात्रि से भी अधिक काला है। इनका वर्ण अंधकार की भांति कालिमा लिए हुए है. देवी कालरात्रि का रंग काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है।
भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है मां का ये रूप
शास्त्रों में देवी कालरात्रि को त्रिनेत्री कहा गया है। इनके तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल हैं, जिनमें से बिजली की तरह किरणें प्रज्वलित हो रही हैं। इनके बाल खुले और बिखरे हुए हैं जो कि हवा में लहरा रहे हैं। गले में विद्युत की चमक वाली माला है, इनकी नाक से आग की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं, दाईं ओर की ऊपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। बाईं भुजा में मां ने तलवार और खड्ग धारण की है।
श्रीर भाटिया ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि गधे पर विराजमान हैं । सप्तमी की पूजा अन्य दिनों की तरह ही होती है लेकिन रात में पूजा का विशेष विधान है, सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात भी कही जाती है। दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है । इस दिन तंत्र साधना करने वाले साधक आधी रात में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं. इस दिन मां की आंखें खुलती हैं. कुंडलिनी जागरण के लिए जो साधक साधना में लगे होते हैं महा सप्तमी के दिन सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं। देवी की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी जरूर करनी चाहिए।