लिंग्याज के ताज में जुड़ेगा एक और हीरा… दूसरे प्रदार्थ आधारित थिनफिल्म तकनीक का करेगा प्रयोग

0
720
Spread the love
Spread the love

Faridabad News, 7th April 2021 : लिंग्याज डीम्ड-टू-बी- यूनिवर्सिटी वैसे तो किसी पहचान का मोहताज नहीं है पर अपनी इसी पहचान में एक और कड़ी जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है। अब तक सोलर सेल में सिलिकॉन आधारित तकनीक का प्रयोग होता आया है, लेकिन अब इस तकनीक के अलावा लिंग्याज दूसरे प्रदार्थ पर आधारित थिनफिल्म तकनीक का प्रयोग करेगा। जिससे सोलर सेल को एक नए रूप में देखा जा सकेगा। इसके लिए लिंग्याज ने फ्रांस की 3डी- ऑक्साइड कंपनी के साथ टाइअप किया है। जिससे इस कार्य को अंजाम दिया जायेंगा। इतना ही नहीं यह कंपनी यूनिवर्सिटी के एक पीएचडी स्टूडेंट को फैलोशिप भी देगी व उनके द्वारा किए गए रिसर्च को भी प्रमोट करेगी।

3डी- ऑक्साइड कंपनी एबीसीडी तकनीक के द्वारा थीनफिन को बनाती है। जिसे सीबीई सिबला 150 इक्विपमेंटस से बनाया जायेंगा। जिससे इसकी क्षमता में भी व्रिधी होगी। इतना ही नहीं लिंग्याज के साथ बाकी और यूनिवर्सिटीज और कंपनिज भी अपना योगदान दे सकेंगी। इस सहकार्यता से दूसरी यूनिवर्सिटीज अपने रिसर्च के साथ-साथ विदेशी प्रोजेक्टस में भी शामिल हो सकेंगी। इससे लिंग्याज के साथ-साथ बाकी और यूनिवर्सिटीज को भी इसका लाभ मिल सकेगा। स्कूल ऑफ बेसिक एंड एपलाइड फिजिक्स के प्रोफेसर डॉ. राधेश्याम राय ने बताया कि मुझे इस कंपनी के साथ टाइअप करने के लिए कम से कम दो महीने लगे। इस टाइअप को करने का हमारा मकसद ही यही था कि हम यूनिवर्सिटी के लिए कुछ नया कर सके। इस कंपनी के साथ से हम सौर ऊर्जा को ओर कही ज्यादा डेवलप कर सकेंगे। वही लिंग्याज यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. ए.आर.दुबे का कहना है कि मुझे इस डिपारमेंट पर गर्व है। इस तकनीक से सोलर सेल के प्रदार्थ में जो बदलाव होगा। उससे लिंग्याज के साथ-साथ बाकी यूनिवर्सिटीज और कंमपनियों को भी फायदा होगा।

क्या है सोलर सेल
वे अर्धचालक युक्तियाँ (semiconductor device), जो सौर उर्जा को विधुत उर्जा में बदलती है, सोलर सेल्स कहलाती है। इन्हें सौर प्रकाश वोल्टीय सेलें (solar photo voltic cells) भी कहते है। सोलर सेल का प्रयोग करके सूर्य की उर्जा को विधुत उर्जा में बदला किया जाता है। सबसे पहले सोलर सेल को 1954 में बनाया गया था, जिनकी दक्षता (efficiency) केवल एक प्रतिशत ही थी, जोकि बहुत ही कम है। बाद में कृत्रिम उपग्रहों के लिए मांग बढ़ने के कारण इनकी दक्षता बढ़ाने के प्रयास लगातार होते रहे है। अब इनकी दक्षता पहले की तुलना में काफी बढ़ गयी है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here