‘रंगशाला: जीवन की पाठशाला’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन

0
652
Spread the love
Spread the love

Faridabad News, 08 May 2022 : डी.ए.वी. शताब्दी महाविद्यालय में ‘रंगशाला: जीवन की पाठशाला’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन हुआ | कार्यक्रम में मुख्य अतिथि व् वक्ता के रूप में महाविद्यालय के पूर्व छात्र एवं वर्तमान में एन. एस. डी., वाराणसी के डायरेक्टर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पुरस्कार से सम्मानित, श्री रामजी बाली ने शिरकत की | रामजी बाली ना केवल एक कुशल रंगमंच कर्मी रहे हैं, बल्कि भारतीय सिनेमा की कुछ अद्वितीय फिल्मों जैसे पान सिंह तोमर, कमांडो आदि में यादगार सह-कलाकार की भूमिका निभा चुके हैं | एलुमिनी सीरीज के तहत आयोजित इस सेमिनार का उद्देश्य छात्रों को एक रंगमंच कर्मी के नजरिये से जीवन का किस तरह अवलोकन करना चाहिए, बताना रहा |

महाविद्यालय के मंच पर आते ही रामजी बाली भावुक हो गए और उन्होंने कहा कि मायका क्या होता है, एक पुरुष होने के नाते,आज मुझे महाविद्यालय आने पर समझ में आया | उन्होंने महाविद्यालय में शिक्षण के दौरान हुए व् रंगमंच अभ्यास से जुड़े अनुभवों को छात्रों से सांझा किया। उन्होंने कहा कि ये कला ही है जो हमें जानवर से अलग करती है, सभी प्राणियों की मुख्य क्रियाएं एक जैसी ही होती हैं, परन्तु मनुष्य विचार करता है और विचार से ही कला का जन्म होता है | उत्तर भारतीय छात्रों को कला के बारे में कम ही ज्ञान होता है जबकि दक्षिण व् उत्तर पूर्वी भारतीय छात्र चाहे कोई भी व्यावसायिक शिक्षण ले रहे हों, परन्तु उनको अपनी कला की सम्पूर्ण जानकारी होती है | इसका कारण दक्षिण व् उत्तर पूर्वी परिवारों व् शिक्षण संस्थानों द्वारा कला को संजो कर रखा जाना रहा है, जहाँ बचपन से ही छात्रों को विभिन्न कलाओं को अभिन्न अनुसाशनिक क्रिया के रूप में सिखाया जाता है | जो भी कला आप सीखते हैं उसका असर आप के सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है और ये सब मुझे भारत भ्रमण के लम्बे प्रवासों के दौरान पता चला है | उन लोगों के लिए ये केवल एक सांस्कृतिक कला ही नहीं है बल्कि जीवन का एक अहम् हिस्सा है, अध्यात्म का एक रूप है | नाटक जीवन का ही एक प्रतिबिम्ब है, कोई भी ऐसी कला नहीं है जो नाटक मैं नहीं है | कलाएं कहीं से आई नहीं हैं, जीवन है तो कला है | जीवन है तो लोक व्यवहार है और लोक व्यवहार से कला उत्पन्न होती है | ये कला हमारे जीवन का हिस्सा बनती है, हमें सीखाने के लिए | अगर किसी भी विषय को समझना है तो उसका गहन अवलोकन बहुत जरूरी है, जो आज के समय में हम लोग नहीं करते | एक छोटी सी इंटरएक्टिव एक्सरसाइज के माध्यम से उन्होंने अपनी बात को छात्रों व् शिक्षकों को समझाया | उन्होंने रश्मिवती पुस्तिका के एक काव्य जिसमें श्री कृष्ण के शांतिदूत बनकर जाने व् दुर्योधन द्वारा उन्हें बंदी बनाने के प्रयास का प्रसंग वर्णित है, का वाचन करके अपने संबोधन को पूर्ण किया | रंगमंच को लेकर उपस्थित छात्रों के सवालों का सही जवाब देकर भी राम जी बाली उनकी उत्कण्ठा को शांत किया |

महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. सविता भगत ने कहा कि ये अभूतपूर्व क्षण है जब महाविद्यालय का एक पूर्व छात्र जो आज एन. एस. डी., वाराणसी के डायरेक्टर के पद पर सुशोभित है, हमारे बीच जीवन के परिपक्वता से भरे अनुभवों को साँझा कर रहा है | डॉ. भगत ने कहा कि रामजी बाली ने ये बात बिलकुल सही कही कि घटनाओं का गहन अवलोकन बहुत जरूरी है| हम लोग आँखें होते हुए देखते नहीं, कान होते हुए सुनते नहीं, एक शिक्षक के रूप में हम लोग रोजाना छात्रों को यही बातें समझाते हैं, परन्तु छात्र चीजों को समझने के लिए उनका गहन अवलोकन नहीं करते क्योंकि मोबाइल की वजह से हम डिसओरिएन्टेड रहते हैं | रामजी बाली ने ये बात भी बिलकुल सही बताई है कि हम उत्तर भारतीय अपनी कलाओं की सांस्कृतिक विरासत को बचा नहीं पाए जबकि दक्षिण व् उत्तर पूर्व राज्य के लोगों ने कलाओं को जीवन में अंगीकार करके एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सफलतापूर्वक हस्तांतरित किया है | ये कलाएं ही हैं जो जीवन को ख़ूबसूरती देती हैं, मतलब देती हैं और सबसे जरूरी अवयव परमात्मा से जुड़ने का | कलाएं हमें अध्यात्म का जरिया बनकर आत्मिक तौर पर परमेश्वर से जोड़ती हैं | जब आप किसी महान लेखक जैसे दिनकर, निराला आदि की कोई साहित्यिक कृति पढ़ेंगे और आपको उसमें रस आएगा, वो आपके ह्रदय को स्पर्श करेगी तब आपकी स्प्रिचुएलिटी निकलकर आगे आएगी |

आयोजन का कुशल संचालन मैडम शश्वेता वर्मा ने किया | अंत में मुख्य अतिथि, शिक्षकों व् उपस्थित छात्रों का धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम आयोजक सचिव मैडम रचना कसाना ने किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here