नेहरू कॉलेज की NSUI इकाई के अध्य्क्ष व छात्रों ने मनाया शहीदी दिवस

0
1652
Spread the love
Spread the love

Faridabad News : नेहरू कॉलेज की NSUI इकाई के अध्य्क्ष सन्नी बादल के नेतृत्व में छात्रों ने मनाया गया शहीदी दिवस ओर शहीदभगत सिंह की प्रतिमा पर मालार्पण किया ओर साथ-साथ शहीद भगत सिंह की जीवन गाथा का वर्णन भी किया।

क्रान्तिवीर भगतसिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को ग्राम बंगा, (जिला लायलपुर, पंजाब) में हुआ था। उसके जन्म के कुछ समय पूर्व ही उसके पिता किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह जेल से छूटे थे। अतः उसे भागों वाला अर्थात भाग्यवान माना गया। घर में हर समय स्वाधीनता आन्दोलन की चर्चा होती रहती थी। इसका प्रभाव भगतसिंह के मन पर गहराई से पड़ा।

13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग, अमृतसर में क्रूर पुलिस अधिकारी डायर ने गोली चलाकर हजारों नागरिकों को मार डाला। यह सुनकर बालक भगतसिंह वहाँ गया और खून में सनी मिट्टी को एक बोतल में भर लाया। वह प्रतिदिन उसकी पूजा कर उसे माथे से लगाता था।

भगतसिंह का विचार था कि धूर्त अंग्रेज अहिंसक आन्दोलन से नहीं भागेंगे। अतः उन्होंने आयरलैण्ड, इटली, रूस आदि के क्रान्तिकारी आन्दोलनों का गहन अध्ययन किया। वे भारत में भी ऐसा ही संगठन खड़ा करना चाहते थे। विवाह का दबाव पड़ने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और कानपुर में स्वतन्त्रता सेनानी गणेशशंकर विद्यार्थी के समाचार पत्र ‘प्रताप’ में काम करने लगे। कुछ समय बाद वे लाहौर पहुँच गये और ‘नौजवान भारत सभा’ बनायी। भगतसिंह ने कई स्थानों का प्रवास भी किया। इसमें उनकी भेंट चन्द्रशेखर आजाद जैसे साथियों से हुई। उन्होंने कोलकाता जाकर बम बनाना भी सीखा।

1928 में ब्रिटेन से लार्ड साइमन के नेतृत्व में एक दल स्वतन्त्रता की स्थिति के अध्ययन के लिए भारत आया। लाहौर में लाला लाजपतराय के नेतृत्व में इसके विरुद्ध बड़ा प्रदर्शन हुआ। इससे बौखलाकर पुलिस अधिकारी स्काॅट तथा सांडर्स ने लाठीचार्ज करा दिया। वयोवृद्ध लाला जी के सिर पर इससे भारी चोट आयी और वे कुछ दिन बाद चल बसे। इस घटना से क्रान्तिवीरों का खून खौल उठा। उन्होंने कुछ दिन बाद सांडर्स को पुलिस कार्यालय के सामने ही गोलियों से भून दिया। पुलिस ने बहुत प्रयास किया; पर सब क्रान्तिकारी वेश बदलकर लाहौर से बाहर निकल गये। कुछ समय बाद दिल्ली में केन्द्रीय धारासभा का अधिवेशन होने वाला था। क्रान्तिवीरों ने वहाँ धमाका करने का निश्चय किया। इसके लिए भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त चुने गये।

निर्धारित दिन ये दोनों बम और पर्चे लेकर दर्शक दीर्घा में जा पहुँचे। भारत विरोधी प्रस्तावों पर चर्चा शुरू होते ही दोनों ने खड़े होकर सदन मे बम फेंक दिया। उन्होंने ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के नारे लगाते हुए पर्चे फेंके, जिन पर क्रान्तिकारी आन्दोलन का उद्देश्य लिखा था। पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया। न्यायालय में भगतसिंह ने जो बयान दिये, उससे सारे विश्व में उनकी प्रशंसा हुई। भगतसिंह पर सांडर्स की हत्या का भी आरोप था। उस काण्ड में कई अन्य क्रान्तिकारी भी शामिल थे; जिनमें से सुखदेव और राजगुरु को पुलिस पकड़ चुकी थी। इन तीनों को 24 मार्च, 1931 को फाँसी देने का आदेश जारी कर दिया गया।

भगतसिंह की फाँसी का देश भर में व्यापक विरोध हो रहा था। इससे डरकर धूर्त अंग्रेजों ने एक दिन पूर्व 23 मार्च की शाम को इन्हें फाँसी दे दी और इनके शवों को परिवारजनों की अनुपस्थिति में जला दिया; पर इस बलिदान ने देश में क्रान्ति की ज्वाला को और धधका दिया। उनका नारा ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ आज भी सभा-सम्मेलनों में ऊर्जा का संचार कर देता है। इस मौके पर योगेश गेहलोत नम्बरदार, गुलशन, केविन गोड्समित, गोविंद, रोहन झांगड़ा, राहुल आदि छात्र उपस्थित थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here