Surajkund News/ Sunny Dutta : चरखे से काता जाने वाला और हरियाणवी संस्कृति से करीबन 1980 के दशक में विलुप्ती के कगार पर पहुंचने वाला रेजा सूरजकुंड मेला में अपनी खुशबू और दमक को बखूबी बिखेर रहा है। चरखे से काता जाने वाला और हरियाणवी संस्कृति से करीबन 1980 के दशक में विलुप्ती के कगार पर पहुंचने वाला रेजा सूरजकुंड मेला में अपनी खुशबू और दमक को बखूबी बिखेर रहा है। रोहतक से पधारी फैशन डिजाईनर ललिता चौधरी जो कि केवल रेजा को ही प्रमोट करने का मन बना चुकी हैं, ने बताया कि पुराने जमाने में हमारी बुजुर्ग महिलाएं चरखे से कातकर रेजे के कपडे और रजाईयां तक बनाती थीं। आधुनिकीकरण की होड में रेजा और इससे बने कपडे कहीं गुम हो चुके हैं।
उन्होंने बताया कि उन्होंने इसका प्रयोग घर पर ही शुुरू किया। इसके बाद रोहतक की जेल में कैदियों से उन्होंने रेजे के कपडे बनवाने शुरू किए। इन पर कढाई का काम झज्जर की जेल में करवाया जाता है, जिसके बदले में इन कैदियों को मेहनताना दिया जाता है। आज के समय में कपडों से लेकर फुटवियर तक रेजा के बनाए जाते हैं।
पिछले वर्ष कला श्री अवार्ड से नवाजी जा चुकी ललिता चैधरी अपने पति रविंद्र के साथ मिलकर इस कार्य को आगे बढा रही हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने इसके लिए कडी मेहनत की और न्यूयाॅर्क फैशन वीक में हमारे इस कार्य को बहुत पसंद किया गया। यही नहीं मशहूर खिलाडियों और अभिनेता और अभिनेत्रियों ने रेजा के कपडों को पहनकर रेंप वाॅक भी किया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने बडी मेहनत के साथ घरों में पुरानी रजाईयों को निकलवाकर उनका रेजा निकलवाया तो प्राकृतिक रूप से रेजा कई अलग-अलग रंगों का निकला जो कि वर्तमान समय में विलुप्त हो चुका है। उन्होंने रेजा से बनाई हुई जैकेट राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सौलंकी व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ-साथ केन्द्र के टैक्सटाईल सचिव को भी भेंट की हैं। वे इसको आगे बढाने के लिए प्रयासरत हैं।