फरीदाबाद,26 जून। नशा मुक्ति केंद्र सेक्टर-14 में जिला रेडक्रॉस सोसायटी के द्वारा जागरूकता अभियान चलाया गया। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि रेडक्रॉस सचिव विकास कुमार ने सभी से नशा मुक्ति अभियान को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि नशे से जन और धन दोनों की हानि होती है।
सचिव विकास कुमार ने बताया कि नशा मुक्ति केंद्र में 14 लोगों उपचार आरंभ है। जल्दी है सभी स्वस्थ होकर अपने परिवार में सम्मिलित हो जाएंगे ।नशा एक ऐसी बुराई है जो हमारे समूल जीवन को नष्ट कर देती है। नशे की लत से पीड़ित व्यक्ति परिवार के साथ समाज पर बोझ बन जाता है। युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा नशे की लत से पीड़ित है। सरकार इन पीड़ितों को नशे के चुंगल से छुड़ाने के लिए नशा मुक्ति अभियान चलाती है, शराब और गुटखे पर रोक लगाने के प्रयास करती है। नशे के रूप में लोग शराब, गाँजा, जर्दा, ब्राउन शुगर, कोकीन, स्मैक आदि मादक पदार्थों का प्रयोग करते हैं, जो स्वास्थ्य के साथ सामाजिक और आर्थिक दोनों लिहाज से ठीक नहीं है। नशे का आदी व्यक्ति समाज की दृष्टी से हेय हो जाता है और उसकी सामाजिक क्रियाशीलता शून्य हो जाती है, फिर भी वह व्यसन को नहीं छोड़ता है। ध्रूमपान से फेफड़े में कैंसर होता हैं, वहीं कोकीन, चरस, अफीम लोगों में उत्तेजना बढ़ाने का काम करती हैं, विशिष्ट अतिथि विमल खंडेलवाल ने बताया कि तम्बाकू के सेवन से तपेदकि, निमोनिया और साँस की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इसके सेवन से जन और धन दोनों की हानि होती है।
हिंसा, बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है। शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए एक्सीडेंट करना, शादीशुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी से मारपीट करना आम बात है। मुँह, गले व फेफड़ों का कैंसर, ब्लड प्रैशर, अल्सर, यकृत रोग, अवसाद एवं अन्य अनेक रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा है। भारत में केवल एक दिन में 11 करोड़ सिगरेट फूंके जाते हैं, इस तरह देखा जाय तो एक वर्ष में 50 अरब का धुआँ उड़ाया जाता है। आज के दौर में नशा फैशन बन गया है। प्रति वर्ष लोगों को नशे से छुटकारा दिलवाने के लिए 30 जनवरी को नशा मुक्ति संकल्प और शपथ दिवस, 31 मई को अंतरराष्ट्रीय ध्रूमपान निषेध दिवस, 26 जून को अंतरराष्ट्रीय नशा निवारण दिवस और 2 से 8 अक्टूबर तक भारत में मद्य निषेध दिवस मनाया जाता है।
विशिष्ट अतिथि पुरुषोत्तम सैनी ने बताया किकहा जा रहा है कि नशे का प्रचलन केवल आधुनिक समाज की देन नहीं है अपितु प्राचीनकाल में भी इसका सेवन होता था। नशे के पक्षधर लोग रामायण और महाभारत काल के अनेक उदाहरण देते हैं। वहीं इसके विरोधियों का मानना है कि प्राचीन काल में मदिरा का सेवन आसुरी प्रवृत्ति के लोग ही करते थे और इससे समाज में उस समय भी असुरक्षा, भय और घृणा का वातावरण उत्पन्न होता था। ऐसी आसुरी प्रवृत्ति के लोग मदिरा का सेवन करने के बाद खुले आम बुरे कार्यों को अंजाम देते थे।
कार्यक्रम में उपस्थित प्रोजेक्ट डायरेक्टर ज्योति शर्मा,डॉक्टर सीबी यादव ,पूजा त्यागी ,जनक राज कालिया, धर्मेंद्र एवं अन्य सदस्यगण उपस्थित थे।