Faridabad News, 10 Aug 2020 : आधुनिक समय में पर्यावरण एवं वन्य जीव संरक्षण को लेकर सरकार निरंतर नए-नए प्रयास करने में संलग्न है| सरकार द्वारा किए गए इन्हीं प्रयासों में से एक है इआए ( एनवायरमेंटल इंपैक्ट एसेसमेंट) 1984 में बने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के साथ-साथ 1994 में नोटिफिकेशन जारी किया गया जो कि एक ऐसा दस्तावेज है जिसके माध्यम से किसी भी निर्माण अथवा विकास कार्य से पूर्व पर्यावरनिये सुरक्षा से जुड़े मानदंडों पर खरा उतरने की स्वीकृति प्रदान की जाती है| कोविड 19 के दौर में पर्यावरण की धारणीय वृद्धि को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इआए 2020 के रूप में एक संशोधित दस्तावेज जारी किया गया है
जिसमें वर्तमान काल में पर्यावरण एवं वन्य जीव संरक्षण से जुड़ी विभिन्न समस्याओं का निदान करने के लिए कई नीतियां एवं योजनाएं बनाई गई है|
इस विषय को लेकर डीएवी शताब्दी कॉलेज फरीदाबाद में राष्ट्रीय स्तर की परिचर्चा का आयोजन किया गया| डीएवीसीएमसी नई दिल्ली के प्रेसिडेंट पदम् श्री डॉ पूनम सूरी जी इस परिचर्चा के मुख्य संरक्षक थे| इस वेबिनार में परिचर्चा करने के लिए बतौर पैनलिस्ट “यमुना जिए” अभियान के संयोजक सेवानिवृत आई ऍफ़ एस मनोज मिश्रा, जीजीएस इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय नई दिल्ली के स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के फैकेल्टी डॉ सुमित डूकिया, केंद्रीय विश्वविद्यालय पटना, बिहार के पर्यावरण विज्ञान विभाग के फैकल्टी डॉ प्रशांत झा, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी (यूके) की एलुमिनी और वन्य जीव संरक्षिका प्रेरणा सिंह बिंद्रा, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय यूके की एलुमिनी और प्रिंट मीडिया में अग्रणी लेखिका वैशाली रावत और इग्नू रीजनल सेंटर दिल्ली की असिस्टेंट रीजनल डायरेक्टर डॉ रीटा चौहान उपस्थित रहे|
कॉलेज की कार्यकारी प्राचार्या डॉ सविता भगत ने सर्वप्रथम सभी गणमान्य पैनलिस्ट का हार्दिक अभिनंदन किया और भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में पर्यावरण और वन्यजीवों की सुरक्षा में सरकार द्वारा उठाए गए मुद्दों से जुड़ी घटनाओं पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालने का आग्रह सभी वक्ताओं से किया| कॉलेज के पर्यावरण क्लब के इंचार्ज असिस्टेंट प्रोफेसर और कार्यक्रम के संयोजक डॉ नीरज सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय वेबीनार में लगभग 600 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया| ये प्रतिभागी भारत के लगभग सभी राज्यों एवं संघो में स्थापित विश्वविद्यालय, महाविद्यालय एवं निजी शिक्षण संस्थानों से जुड़े अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ, प्राध्यापकगण एवं छात्र-छात्राएं थे| कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से लेकर सिक्किम तक देश का कोई कोना ऐसा नहीं था जहां से रजिस्ट्रेशन नहीं किया गया हो| इस परिचर्चा का संचालन सीकर राजस्थान के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर और यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ टैक्सास यूएसए के विजिटिंग स्कॉलर डॉ जितेंद्र सोनी ने किया|
इस पैनल चर्चा में सर्वप्रथम मनोज मिश्रा ने स्वयं का उदाहरण एक पर्यावरणीय कार्यकर्त्ता के रूप में प्रस्तुत कर अत्यंत सहजता और सरलता से इआए नोटिफिकेशन की संपूर्ण प्रक्रिया से परिचय कराया| उन्होंने बताया कि किसी भी प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए सर्वप्रथम राज्य स्तर पर और फिर केंद्रीय स्तर पर पर्यावरण मंत्रालय से स्वीकृति प्रदान करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम का पालन करना| श्री मिश्रा ने बताया कि कागजी कार्रवाई तक तो यह प्रक्रिया सुचारू रूप से चलाई जाती है परंतु वास्तविकता में लागू करते समय इस प्रक्रिया को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है|
वन्य जीव संरक्षिका मिस प्रेरणा सिंह बिंद्रा ने अपने वक्तव्य में भारत को वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा वन्यजीव संरक्षक कहलाने पर गर्व की अनुभूति करते हुए कहा कि इस उपाधि की गरिमा को धूमिल ना करते हुए भारत को अब और अधिक प्रोजेक्ट शुरू करने चाहिए जिससे दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों के साथ-साथ वनों का भी संरक्षण किया जा सके| सांख्यिकी की सहायता से उन्होंने वन और वन्य जीव के विनाश की स्थिति से सभी को आगाह किया और कहा कि वर्तमान में मौसम और जलवायु परिवर्तन वन विनाश, वन्यजीवों से उत्पन्न रोग आदि अनेक मुश्किलों का मूल कारण लोगों द्वारा वन संरक्षण अधिनियम व सुरक्षा रिपोर्ट, वन्यजीवन सुरक्षा रिपोर्ट से जुड़ी बातों को अनदेखा करना है|
दिल्ली विश्वविद्यालय की फैकल्टी डॉ सुमित डूकिया ने “ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट” बनाम “ग्रेट इंडियन बस्टर्ड कंजर्वेशन इन राजस्थान” विषय पर किए शोध के निष्कर्षों से लोगों को सचेत किया कि राजस्थान में राजकीय पक्षी के संरक्षण में अनेक कमियां हैं तो अन्य प्रजाति के पक्षियों की सुरक्षा स्वयं ही खतरे में पड़ जाती है| उन्होंने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि इस अनदेखी के कारण ही प्रतिवर्ष 10000 से अधिक अन्य पक्षी मर रहे हैं|
इग्नू दिल्ली की असिस्टेंट रीजनल डायरेक्टर रीटा चौहान ने इआए की भूमिका पर आलोचनात्मक व्याख्या करते हुए छात्रों को बताया कि रणनीतियां प्रोजेक्ट विशेष ना होकर क्षेत्रीय होनी चाहिए और उसने स्थानीय लोगों की शत प्रतिशत भागीदारी अनिवार्य होनी चाहिए| उन्होंने जैव विवधिता को मुख्य रूप से उजागर करते हुए वृक्षारोपण और वन संरक्षण प्रणालियों में विभेद किया| उन्होंने पर्यावरण को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राज्य के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए इसकी कमियों को दूर करने के लिए आग्रह किया|
अंतिम पैनलिस्ट प्रशांत झा ने स्थानीय जनता की भागीदारी से जुड़े लाभों पर चर्चा करते हुए पब्लिक पार्टिसिपेशन फोरम की स्थापना पर जोर दिया जिसमे प्रत्येक व्यक्ति विशेष से सलाह लेते हुए पर्यावरण बचाव् की रणनीतियां तैयार की जा सके| परिचर्चा की युवा वक्ता व् प्रिंट मीडिया की अग्रणी लेखिका सुश्री वैशाली रावत ने 70 से भी अधिक विश्वविद्यालयो, छात्र संघ और क्लबों की ओर इंगित करते हुए युवा पीढ़ियों को विभिन्न संसाधनों एवं माध्यमों का सदुपयोग करते हुए अर्थविहीन अभियानों में जान डालने की अपील की| चर्चा के अंत में सभी ने दर्शकों के विभिन्न प्रश्नों का उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट किया| राष्ट्रीय वेबिनार में हुए परिचर्चा से निकले निष्कर्षों को निश्चित रूप से सरकार एवं पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संज्ञान में लाने का प्रयास किया जाएगा| वेबिनार के सफलतापूर्वक संचालन में कार्यकारी टीम ऋतू सचदेवा, दिनेश कुमार, प्रमोद कुमार, प्रिय कपूर, बिंदु रॉय और सरोज कुमार ने महत्वपूर्ण योगदान दिया |