आरटीआई एक्ट की धज्जियां उड़ा रहे हैं तहसीलदार : एल.एन. पाराशर

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Faridabad News : पिछले दिनों न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के अध्यक्ष एवं बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एडवोकेट एल.एन. पाराशर ने तहसीलों में व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में आवाज उठाई थी। अब इस मामले में उन्होंने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ लगाई गई आरटीआई का जवाब ना मिलने पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल को सवालों के कटघरे में खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि एक तरफ रेडक्रास द्वारा कोर्ट परिसर में स्कूलों के बच्चों के हाथ में तख्तियां देकर आरटीआई के द्वारा बदलाव की बात की जाती है वहीं दूसरी तरफ उन बच्चों को यह हकीकत नहीं बताई जाती कि भ्रष्टाचार के मामले उजागर होने की स्थिति में जिला प्रशासन द्वारा आरटीआई एक्ट के तहत लोगों के सवालों का जवाब भी नहीं दिया जाता।

जिला प्रशासन की भ्रष्ट व्यवस्था पर तंज कसते हुए एडवोकेट एल.एन. पाराशर ने कहा कि उन्होंने 26 अगस्त को तहसीलदार कार्यालय में सूचना के अधिकार के तहत कुछ जानकारियां मांगी थी, जिसमें कहा गया था कि फरीदाबाद तहसील में सन 2014 से लेकर 2017 तक कौन-कौन से तहसीलदार व नायाब तहसीलदार कार्यरत रहे हैं। उनके नाम, पद व कार्यकाल के बारे में लिखित रूप से बताया जाए। दूसरे सवाल में उन्होंने तहसील कार्यालय से पूछा है कि 2014 से अब तक कितनी रजिस्ट्री की गई हैं और उन में से कितनी रजिस्ट्रियां गैर मान्यता प्राप्त क्षेत्र व कृषि जमीन की की गई है। उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा सरकार द्वारा कृषि योग्य भूमि की रजिस्ट्री टुकड़ों में ना करने के आदेश की नकल दी जाए।

श्री पाराशर ने बताया कि 26 अगस्त से लेकर आज तक उन्हें अपने सवालों के जवाब तहसील कार्यालय से आज तक नहीं मिले हैं। इससे पहले भी उन्होंने सबूतों सहित फरीदाबाद तहसील में मोटी रिश्वत लेकर अवैध रूप से रजिस्ट्री करने के एक मामले का पर्दाफाश किया था। जिस में उन्होंने आरोप लगाया कि जीआरएन नं. 29610292 की रजिस्ट्री 11-9-2017 को नायब तहसीलदार द्वारा मोटी रिश्वत लेकर की गई है। यह जमीन अगवानपुर में है जहां की रजिस्ट्री तहसीलदार ने टुकड़ों में की है। इस बात की शिकायत एसडीएम से करने पर भी पता चला कि प्रशासनिक अधिकारी आपसी मिलीभगत से इस गोरखधंधे को अंजाम दे रहे हैं। जिसके चलते उच्च अधिकारियों ने तहसीलदारों को लूट की खुली छूट दे रखी है।

श्री पाराशर ने कहा कि तहसीलों में भ्रष्टाचार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक फ्लैट की रजिस्ट्री के लिए दो से तीन लाख रुपए रिश्वत वसूली जा रही है जबकि अवैध कालोनियों में प्लाट की रजिस्ट्री करने के नाम पर 30 से 40 हजार रुपए रिश्वत ली जा रही है। बढख़ल, तिगांव, बल्लबगढ़ एवं फरीदाबाद तहसील में तहसीलदारों के दलाल खुलेआम घूम रहे हैं जो कि काम कराने का ठेका लेते हैं। एक मामले में एक व्यक्ति कोर्ट में वकील के पास पहुंचा और उस से कहा कि अवैध कालोनी में प्लाट की रजिस्ट्री करवा दो। तो वकील ने कहा कि अभी रजिस्ट्री बन्द हैं जब खुलेगी तब करवा दूंगा। बाद में पता चला कि उस व्यक्ति के कई जानकारों की उसी एरिए में रजिस्ट्री हो गई जबकि उस व्यक्ति की रजिस्ट्री इसलिए नहीं हो पाई क्योंकि उसके वकील ने रिश्वत देकर रजिस्ट्री कराने से मना कर दिया था।

तहसीलों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण रजिस्ट्री के सही मामलों में भी सुविधा शुल्क वसूला जाता है। इसी भ्रष्टाचार के चलते कोर्टों में तकसीम के दावे लंबित पड़े रहते हैं क्योंकि तहसीलदार ऑफिस के लोग काम करने की जगह केवल रिश्वत लेने में जुटे रहते हैं। तहसीलदार ऑफिस के लेट-लतीफ कर्मचारियों के कारण कोर्ट चाहकर भी लोगों को न्याय नहीं दे पा रहा। अगर सीबीआई जांच हो जाए तो यह साबित हो जाएगा कि अवैध कालोनियों में रजिस्ट्री की रोक होने के बावजूद भी रजिस्ट्री कराने का काम धड़ल्ले से चल रहा है। वहीं आरटीआई एक्ट के तहत सूचना देने के आदेशों की भी धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।

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