स्कंदमात की सच्ची पूजा से भक्त को मोक्ष प्राप्त होता है: भाटिया

Faridabad News : नवरात्रों के पांचवे दिन सिद्धपीठ महारानी श्री वैष्णोदेवी मंदिर में भगवती दुर्गा के पांचवे स्वरुप स्कंदमाता की भव्य पूजा की गई। मंदिर संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया ने प्रातकालीन पूजा का शुभारंभ करवाया। श्री भाटिया ने भक्तों को बताया कि दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है। इनकी उपासना करने से भक्त की सर्व इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं. भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
स्कंदमाता का स्वरूप
श्री भाटिया ने श्रद्धालुओं को बताया कि स्कंद का अर्थ है कुमार कार्तिकेय अर्थात माता पार्वती और भगवान शिव के जेष्ठ पुत्र कार्तिकय। जो भगवान स्कंद कुमार की माता है वही है मां स्कंदमाता। शास्त्र अनुसार देवी स्कंदमाता ने अपनी दाई तरफ की ऊपर वाली भुजा से बाल स्वरुप में भगवान कार्तिकेय को गोद में लिया हुआ है।
स्कंदमाता स्वरुपिणी देवी की चार भुजाएं हैं. ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं. बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं।
श्री भाटिया के अनुसार कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है. सिंह इनका वाहन है। शेर पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप स्कंदमाता के रुप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं. इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है। देवी स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा इनकी मनोहर छवि पूरे ब्रह्मांड में प्रकाशमान होती है।
सिंह पर सवार रहने वाली और अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करने वाली यशस्विनी स्कंदमाता हमारे लिए शुभदायी है। पूजा अर्चना के अवसर पर मंदिर में इंकम टैक्स अधिकारी आशीष बसंल,प्रताप भाटिया, रमेश सहगल, आर के जैन, गिर्राजदत्त गौड़, अनिल कुमार, फकीर चंद कथूरिया, एसपी भाटिया, सुरेंद्र गेरा एवं सुरेंद्र झाम विशेष तौर पर उपस्थित थे।