फोर्टिस हॉस्पिटल वसंत कुंज में 3डी प्रिंटिंग टैक्नोलॉजी की मदद से टिटेनियम जबड़े को तैयार किया गया

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Faridabad News, 19 Feb 2020 : फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल अस्पयताल वसंत कुंज के डॉक्टबरों ने अपनी किस्म2 की अनूठी और पहली प्रक्रिया को अंजाम देते हुए 3डी प्रिंटिंग टैक्नो लॉजी की मदद से हाल में एक मरीज़ के जबड़े को रीकंस्ट्र क्टक किया है। इस अनूठी टैक्नोालॉजी की मदद से टिटेनियम जबड़े को तैयार किया गया था और इसे फरीदाबाद के एक 30 वर्षीय पुरुष को लगाया गया। इस नए जबड़े की मदद से अब उसका अपने मुंह पर पूरा नियंत्रण वापस आ गया है और सात साल में यह पहला मौका है जबकि वह अपना भोजन सही तरीके से चबाकर खाने में समर्थ हुआ है। कैंसर ग्रस्ता होने की वजह से डॉक्टसरों को पूर्व में इस व्यरक्ति का जबड़ा निकालना पड़ा था। नए जबड़े के साथ ही, अब इस व्यडक्ति का आत्मूविश्वायस भी लौट आया है और वह अपने बाहरी लुक को लेकर पहले से ज्यानदा विश्वसस्त है। इस अनूठी प्रक्रिया को फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल अस्प ताल वसंत कुंज के डॉ मंदीप सिंह मलहोत्रा, हैड ऑफ डिपार्टमेंट, हैड, नैक एंड ब्रैस्ट ओंकोलॉजी तथा उनकी टीम ने अंजाम दिया।

श्री प्रभात (नाम बदला हुआ), जो कि फरीदाबाद के निवासी हैं और कॉर्पोरेट एग्ज़ी क्युरटिव हैं, सात साल पहले कैंसर की वजह से अपने जबड़े की हड्डी के दायें आधे भाग को गंवा चुके थे। उन्हेंो कैंसर मुक्तं करने के लिए डॉक्टहरों को उनके टैंपोरोमैंडीब्यू।लर (टीएम) ज्वावइंट के साथही इसे भी हटाना पड़ा था। टीएम ज्वालइंट ही जबड़े की मोबिलिटी को नियंत्रित करता है। पिछले वर्षों में, बाकी बचे रह गए मैंडिबल के सरकने की वजह से उनके जबड़े के निचले और ऊपरी भाग आपस में जुड़ नहीं पा रहे थे। इसके परिणामस्ववरूप उनके जीवन की गुणवत्तार प्रभावित हो रही थी क्यो

कि वे खाना चबाने में असमर्थ थे और सिर्फ दलिया या खिचड़ी जैसा पतलाया नरम भोजन ही ले सकते थे। इसके अलावा, इसकी वजह से उनके गाल में बार-बार बाइट अल्स र भी रहने लगा था जो दर्द का कारण तो था ही, साथ ही कैंसर के दोबारा पनपने की आशंका भी बढ़ गई थी। मरीज़ को एसएलई (सिस्टेथमेटिक ल्यु पस एरिथेमेटॉसिस) के रूप में क्रोनिक रोग भी था।

इस मामले की क्लीसनिकल चुनौतियों के बारे में डॉ मंदीप एस मलहोत्रा ने कहा, ‘’एसएलई रोग और टीएम ज्वाकइंट के रीकंस्ट्रोक्शेन के चलते हम इस मामले में पारंपरिक प्रक्रिया नहीं अपनाना चाहते थे जिसमें जबड़े की हड्डी रीकंस्ट्र क्टे करने के लिए पैर के निचले भाग से फिब्यु ला का इस्ते माल किया जाता है। एसएलई के चलते फिब्यु‍ला हड्डी तक रक्ति प्रवाह नहीं हो पा रहा था, साथ ही, इस प्रक्रिया में पैर की एक हड्डी भी गंवानी पड़ सकती थी जिसकी भरपाई नहीं हो सकती थी। टीएम ज्वाकइंट रीकंस्ट्र क्शहन सिर्फ प्रोस्थेीटिक ज्वानइंट तैयार कर उसे उपयुक्तत स्थाहन पर लगाकर ही मुमकिन थो। लिहाज़़ा, हमने 3डी प्रिंटिंग टैक्नोथलॉजी की मदद से प्रोस्थे टिक जॉ तैयार करने पर विचार किया जिसके लिए टिटेनियम का इस्तेडमाल किया गया जो कि सर्वाधिक बायोकॉम्पे टिबल और लाइट मैटल है। प्रोस्थेसटिक जॉ बोन के ऊपरी हिस्से् के इर्द-गिर्द आवरण की तरह जो हिस्सा है, जिसे कॉन्डाेइल कहा जाता है, का निर्माण अल्ट्रा हाइ मॉलीक्यूणलर वेट पॉलीथिलिन से किया गया।”

मरीज़ के चेहरे का एक सीटी स्कै न कराया गया जिसके लिए सीटी-डेटा मॉडलों की मदद ली गई। बचे हुए बाएं मैंडिबल का इस्तेैमाल कर उसकी मिरर इमेज की मदद से एक स्क ल मॉडल बनाया गया जिसमें पूरा मैंडिबल भी थ। हमने प्रोस्थेरटिक स्केल मॉडल का विस्तृोत रूप से अध्यहयन किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऊपरी और निचला जबड़ा पूरी तरह से अपने स्थासन पर रहे। इसके बाद, वास्त विक इंप्लां ट का एक प्रोस्थेेटिक मॉडल भी विकसित किया गया जिससे हम कार्यप्रणाली और एस्थेाटिक्सप जैसे पक्षों का अध्यरयन कर सके। हमने स्ककल मॉडलों पर इंप्लां ट तथा नए टीएम ज्वा इंट दोनों ही लगाने की योजना तैयार की। यह प्रक्रिया 9 महीने से अधिक अवधि तक जारी थी। प्रभात और डॉ नेहा ने सही एलाइनमेंट प्राप्तह करने के लिए काफी प्रयास किए। प्रोस्थेीटिक मैंडिबल के मॉडलों को कई बार बदला भी गया। डॉक्टेरों का प्रयास यह था कि नया जबड़ा सामान्य से भी बेहतर हो। आखिरकर, कई बार जांच और परीक्षणों के बाद हमने 3डी टैक्नो लॉजी की मदद से इंप्लां ट को वास्तकविक बायोकॉम्पेकटिबल टिटेनियम में बदलने में सफलता हासिल की।

रीकंस्ट्रेक्श न सर्जरी के बारे में डॉ मलहोत्रा ने आगे जानकारी देते हुए बताया, ”इधर हम अपनी योजनाओं पर काम कर रहे थे और साथ ही मरीज़ को स्पिलंट्स दिए गए तथा उन्हें इंटेंसिव फिजियोथेरेपी भी करवायी गई। प्रोस्थेमटिक मैंडिबल के लिए ट्रायल मॉडलों को, जैसे-जैसे जॉ की एलाइनमेंट होती रही, अलग-अलग समय पर संशोधित किया जाता रहा। यह प्रक्रिया पूरे 9 महीनों तक चली। प्रभात और मेरी सहयोगी डॉ नेहा ने सही एलाइनमेंट हासिल करने के लिए भरपूर प्रयास जारी रखे। हमारी कोशिश थी कि नया जबड़ा सामान्यह से भी बेहतर हो।”

पिछली रेडिएशन थेरेपी और सर्जरी की वजह सेजो फ्राइब्रोसिस पैदा हो गया था, सर्जरी के दौरान, उसे क्लीडनिकली डाइसेक्टी करना काफी मुश्किल था। एक और बड़ी समस्या यह भी कि चेहरे के स्नाकयु के क्षतिग्रस्तट होने की आशंका थी जो कि चेहरे की मांसपेशियों में गति और हाव-भाव की जिम्मेलदार होती है। इस स्नावयु को सावधानीपूर्वक अलग हटाया गया और ज्वाोइंट को सही स्था न पर स्थामपित किया गया। प्रोस्थे‍टिक टिटेनियम जॉ को सफलतापूर्वक लगाया गया। नए टीएम ज्वा इंट का निर्माण हुआ और निचले जबड़े में गतिशीलता की संपूर्ण जांच-पड़ताल की गई। यह सर्जरी करीब 8 घंटे तक चली और इसके लिए काफी कड़े प्रयासों को अंजाम दिया गया जिसमें प्रत्येआक स्नाऔयु शाखा की पहचान और हर स्क्रूज को पूर्व-नियोजित जगह पर लगाना शामिल था।

मेडिकल र्जनल्स की व्यारपक रूप से समीक्षा के बाद हम यह दावा करने की स्थिति में हैं कि यह अपनी तरह की पहली प्रक्रिया है। इसमें सेकंड्री सैटिंग्सा में जबड़े की हड्डी रीकंस्ट्रीक्ट की गई (मूल जबड़े को पहले ही निकाला जा चुका था और मरीज़ इसी विकलांगता तथा चेहरे में विकार के साथ जिंदगी बिता रहा था), ज्वाथइंट के साथ-साथ जॉब बोन को रीकंस्ट्र क्टक किया गया (कैंसर के बाद हमें ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं मिली थी कि ज्वा इंट को दोबारा प्राप्ति किया जा सका है) और साथ ही यह पूरी तरह से प्रोस्थेॉटिक जॉ रिप्लेोसमेंट था जिसके लिए मरीज़ के शरीर की किसी अन्यै हड्डी को कोई नुकसान हीं पहुंचाया गया है।”

श्री प्रभात का कहना है, ”शुरू में मैं इस पूरी प्रक्रिया को लेकर विश्वनस्तो नहीं था, लेकिन जब डॉ मंदीप ने मुझे इसकी पूरी जानकारी दी तो मुझे लगा कि ऐसा मुमकिन हो सकता है, और मैं इसके लिए राजी हो गया। सर्जरी के 7 दिनों के बाद मुझे अस्पोताल से छुट्टी मिली। मैं पहले 3 सप्तांह सिर्फ तरल या नरम खुराक पर रहा ताकि मेरा नया जबड़ा ठीक तरह से काम करने लायक हो जाए। फिजियोथेरेपी के बाद, मेरे जबड़े में गतिशीलता कायम हो गई है। आज मैं अपनी पसंद की कोई भी चीज़ का स्वाेद ले सकता हूं और हर तरह के भोजन को चबा भी सकता हूं। मैं डॉ मंदीप और उनकी टीम का आभारी हूं जिन्हों ने मेरे लिए इस नामुमकिन चुनौती को मुमकिन कर दिखाया है।”

इस क्ली निकल सफलता पर बधाई देते हुए डॉ राजीव नय्यर, फैसिलिटी डायरेक्टैर, एफएचवीके ने कहा, ”3डी प्रिंटिंक टैक्नोवलॉजी उन सभी लोगों के लिए उम्मीटद की नई किरण है जिन्होंेने ओरल कैंसर पर विजय हासिल कर ली है और अब उनका जीवन अधिकतम संभव तरीके से सामान्य हो सकता है। इससे अब ओरल कैंसर सर्जरी के दौरान हुई विकृति की आशंका भी घटी है। अब मरीज़ ओरल कैंसर के लिए समय पर सही विकल्पा चुन सकते हैं, यहां तक कि चेहरे का कोई भाग नष्ट होने पर उसे वापस भी पाया जा सकता है। यह ओरल कैंसर के खिलाफ लड़ाई को मज़बूती से टक्र्‍रल देता हैं और मूल्यहवान जीवन को बचाने में मदद करेगा। मुझे खुशी है कि हमारे अस्पूताल के काबिल और अनुभवी डॉक्टंर हर दिन नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं।”

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