महिलाओं के विरुद्ध हो रही हिंसात्मक घटनाये आखिर कब थमेंगी : के के बृजवासी

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Faridabad News, 01 Dec 2019 : ना,,,,, “आना इस देश मेरी लाडो”
केवल 6 बरस ही तो बीते हैं, जब निर्भया कांड से पूरा देश गुस्से में था। अब तेलंगाना में एक ओर निर्भया कांड बन गया है। जिस तरह एक अकेली लड़की हवस का शिकार हो गयी दोनों मामलों में पीड़िता सूनी जगहों पर मरणासन्न हालत में मिलीं।

दिल्ली और तेलंगाना में दोनों घटनाओं के तीनों आरोपी 20 से 25 साल के आवारा तथा नशे की लत के शिकार नौजवान हैं। यकीनन ये समाज से अलग-थलग होंगे, इस कारण भी भयमुक्त होंगे। सोशल थैरेपी की कमी भी डिप्रेशन या कुंठित मानसिकता के शिकार ऐसे अपराधियों को बढ़ावा देती है जिससे कई बार गंभीरता को समझते और जानते हुए भी, तो कई बार लचर कानून और सजा का भय न होना भी ऐसी घटनाओं का कारण बनते हैं।

भयानक दिन था जिसनें हमारे समाज को झंझोड़कर कर रख दिया था। इसने हमारी असंवेदनशीलता की नींद को न सिर्फ तोड़ा बल्कि हमें कुछ कर गुज़ारने के लिए मजबूर भी किया। इस हादसे के पाँच साल गुज़र जाने के बाद आज भी कुछ सवाल हमारे सामने हैं। क्या निर्भया मामले के बाद हुए आन्दोलन ने ज़मीन पर कुछ बदला ? क्या उसके बाद आये कानूनी बदलावों से कुछ असर हुआ ?

इस पूरी वस्तुस्थिति को पढ़ने के बाद भी अंतिम सवाल तो यही है कि क्या मर्द कभी उस डर को समझ पाएंगे जो ऐसी घटनाएं औरतो के मन में घर बनाकर चली जाती है। क्या एक समाज ऐसी घटनाओं के लिए कभी सामूहिक तौर से शर्मिंदा होते हुए औरतो से माफ़ी मांगते हुए अपने भीतर कुछ सुधारने की कोशिश करेगा।

फिलहाल इसका जवाब ‘न’ है। सन् 2012 में एक ही वारदात देश की राजधानी दिल्ली में सामने आई थी। तब एक 23 साल की फिजियोथैरेपिस्ट जिसे निर्भया नाम दिया गया, के साथ एक चलती बस में ऐसी ही अमानवियता की गई। उससे पहले और उसके बाद भी देशभर में न जाने कितनी लड़कियों, बच्चियों, महिलाओं को इस अपराध से गुजरना पड़ा। लेकिन न हमारे समाज पर कोई फर्क पड़ रहा है, न कानून-व्यवस्था का दावा करने वाली सरकारों पर और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा, उनका उत्पीड़न-शोषण बदस्तूर जारी है।

ऐसे अपराधों को रोकने के लिए फंड तो है लेकिन बेहद कठोर कानून, फास्ट ट्रैक अदालतें उससे जरूरी हैं ताकि यौन तथा बाल अपराधियों पर लगाम लग सके, अपराधियों में खौफ पैदा हो, वरना यह सवाल बना ही रहेगा और कितनी निर्भया…?

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