सातवें नवरात्रे पर वैष्णो देवी मंदिर में की गई मां कालरात्रि की पूजा

0
2409
Spread the love
Spread the love

Faridabad News, 31 March 2020 : मां वैष्णोदेवी मंदिर में सातवें नवरात्रे पर आज मां कालरात्रि की पूजा अर्चना की गई। प्रातकालीन पूजा अर्चना में मंदिर के पुजारी एवं संस्थान के प्रधान जगदीश भाटिया व अन्य पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। इस शुभ अवसर पर सभी ने मां कालरात्रि की पूजा की तथा उन्हें प्रसाद का भोग लगाया।

इस अवसर पर मंदिर के प्रधान जगदीश भाटिया ने मां कालरात्रि की महिमा का बखान करते हुए कहा कि नवरात्र के सातवें दिन मां दुर्गा के कालरात्रि रूप की पूजा की जाती है. शास्‍त्रों के अनुसार बुरी शक्तियों से पृथ्‍वी को बचाने और पाप को फैलने से रोकने के लिए मां ने अपने तेज से इस रूप को उत्‍पन्‍न किया था. दुर्गा जी का सातवां स्वरूप मां कालरात्रि है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा गया और असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था. इनकी पूजा शुभ फलदायी होने के कारण इन्हें ‘शुभंकारी’ भी कहते हैं।

उन्होंने कहा कि मान्यता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है. माता कालरात्रि पराशक्तियों (काला जादू) की साधना करने वाले जातकों के बीच बेहद प्रसिद्ध हैं. मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं। देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है इनके बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में विधुत की माला है। इनके चार हाथ हैं जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है। इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है। कालरात्रि का वाहन गर्दभ(गधा) है।

मां कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा
कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था. इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए. शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा. शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया. परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए. इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया. इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया। मां को गुड़ का भोग प्रिय है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here