Hisar News, 07 May 2019 : ”रिपोट्र्स के अनुसार, भारत में हर वर्ष औसतन 10,000* बच्चे जन्म के समय से ही थैलेसेमिया के शिकार होते हैं। यह आनुवांशिक बीमारी 25 प्रतिशत संतानों में चली जाती है, जब मां-बाप दोनों में म्युटेटेड जीन मौजूद हो। भ्रूण में इस असामान्यता का विकास गर्भधारण की अवस्था में ही हो जाता है, इसलिए, मां-बाप को पता नहीं होता है कि बच्चे को खतरा है या नहीं, क्योंकि इससे उन्हें स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या नहीं लगती है। थैलेसेमिया में जागरूकता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसके बारे में वर्तमान में अधिकांश कपल्स को जानकारी नहीं है। थैलेसेमिया के शिकार बच्चों को थैलेसेमिया मेजर कहा जाता है और उन्हें नियमित अंतरालों पर खून चढ़ाना पड़ता है और इस हिमोग्लोबिन संबंधी विकार को ठीक करने का एकमात्र तरीका है, उपयुक्त दाताओं से बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन।
आज, विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है और ऐसे में, जिन कपल्स को जन्मजात बीमारियों का खतरा हो, वो प्री-इंप्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (पीजीडी) टेस्टिंग करा सकते हैं, ताकि उनके बच्चे में खराब जीन जाने का खतरा कम हो जाये। पीजीडी टेस्टिंग, आईवीएफ प्रक्रियाओं के बाद होती है, और यह भ्रूण में विशिष्ट बीमारियों एवं असामान्यताओं का पता लगाने और उनसे बचने का प्रभावी तरीका है। असामान्य भ्रूण के चलते गर्भपात हो सकता है, गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की मृत्यु हो सकती है या फिर कभी-कभी मृत बच्चे का जन्म हो सकता है। आईवीएफ में गैमेटीज के फ्युजन के बाद, पीजीडी के जरिए भ्रूण के स्वास्थ्य की जांच की जाती है। प्री-इंप्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस, क्रोमोसोम के संतुलन के अध्ययन और गर्भ में भ्रूण के आरोपण के पहले इसमें किसी भी तरह की खराबी की पहचान करने की विधि है। इससे स्वस्थ गर्भधारण एवं स्वस्थ शिशु की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
ह्युमैन ल्युकोसाइट एंटीजेन (एचएलए) टाइपिंग (बोन मैरो डोनर्स की मैचिंग के लिए प्रयुक्त प्रणाली) के साथ-साथ पीजीडी से रोगमुक्त बच्चे के गर्भधारण में मदद मिलती है और इससे ट्रांसप्लांटेशन के लिए कॉर्ड ब्लड या हेमेटोपोयटिक स्टेम सेल्स को डोनेट करने में मदद मिल सकती है, जिससे कि प्रभावित सिब्लिंग को बचाया जा सके। संबंधि मैच्ड डोनर्स के हेमेटोपोयटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन (एचएससीटी) से असंबद्ध या बिना बैच वाले डोनर्स की तुलना में संपूर्ण सरवाइवल की संभावना अधिक बढ़ जाती है। चूंकि, संबद्ध मैच्ड-डोनर्स से एचएससीटी 70 प्रतिशत मरीजों के लिए अनुपलब्ध होता है, इसलिए पीजीडी-एचएलए के लिए आईवीएफ एक उपयुक्त चिकित्सकीय विकल्प है। इससे कपल्स को रक्षक सिब्लिंग जन्म देने में मदद मिल सकती है ताकि बीमारी से प्रभावित बड़े बच्चे को बचाया जा सके।
नोवा इवी फर्टिलिटी में, हम नवीनतम चिकित्सा तकनीक को अमल में लाते हैं, ताकि मरीजों को अपने स्वस्थ शिशु के सपने को पूरा करने में मदद मिल सके और उनके बच्चों को पूर्वाभासी बीमारियों से बचाया जा सके।
डॉ. मनीष बैंकर, चिकित्सा निदेशक, नोवा इवी फर्टिलिटी
स्रोत: नेशनल हेल्थ पोर्टल, विश्व स्वास्थ्य संगठन, सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन)