Hisar News, 01 March 2019 : श्री महादेव सिंह सोलंकी और श्रीमती अल्पा सोलंकी दोनों थैलेसीमिया से पीडि़त हैं, और वे 7 साल की बेटी और 5 साल के बेटे के माता-पिता हैं। बेटा थैलेसीमिया मेजर से पीडि़त था और उसे फ्रीक्वेंट कीलेटन के साथ हर महीने ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती थी। इसी दौरान उसे बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन की सलाह दी गई।
हालांकि ट्रांसप्लांटेशन के लिए मिलान किए गए एचएलए दाताओं की अनुपलब्धता को देखते हुए, युगल ने प्री-जेनेटिक डायग्नोसिस एंड स्क्रीनिंग टेस्ट (पीजीडी और पीजीएस) के साथ एचएलए मिलान के माध्यम से आईवीएफ का चयन करने का फैसला किया। इससे उन्हें गर्भधारण करने की अनुमति मिलेगी, जिसके बाद वे एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकेंगे, जिसका ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (एचएलए) सिस्टम प्रभावित बच्चे के साथ मेल खाएगा। एचएलए-समरूप दाता से अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण थैलेसीमिया मेजर रोगियों के लिए सबसे अच्छा चिकित्सकीय विकल्प है।
इस दंपति ने अहमदाबाद के नोवा आईवीआई फर्टिलिटी केंद्र में संपर्क किया, जहां शुरुआती सलाह-मशविरे के बाद एक विस्तृत उपचार योजना तैयार की गई। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए नोवा में मेडिकल डायरेक्टर डॉ मनीष बैंकर के नेतृत्व में चिकित्सा विशेषज्ञों की पूरी टीम ने सबसे अच्छा संभव समाधान तलाशने का प्रयास किया। उनके सुझाव के आधार पर यह जोड़ा परीक्षण के लिहाज से भ्रूणों का एक पूल बनाने के लिए कई आईवीएफ चक्रों से गुजरने के लिए राजी हो गया।
इन चक्रों में से श्रीमती सोलंकी ने 18 भ्रूणों को बायोप्सी किया था, जिनमें से केवल एक भ्रूण में एचएलए का मिलान पाया गया था, जो पीजीडी परीक्षण पर सामान्य था, और इस प्रकार इसे स्थानांतरित कर दिया गया था। भ्रूण का स्थानांतरण अपने पहले चक्र में सफल रहा और एक सफल गर्भावस्था के परिणामस्वरूप, एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया गया। बच्चे में अपने भाई-बहन की तुलना में 10/10 एचएलए मेल हो रहा था और इस तरह पीडि़त भाई-बहन के उपचार के लिए भविष्य में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की योजना बनाई गई।
इस मेडिकल चमत्कार को हकीकत में बदलने के अपने अनुभवों की चर्चा करते हुए डॉ मनीष बैंकर ने आज यहां आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में कहा, चूंकि थैलेसीमिया एक आनुवंशिक विकार है, इसलिए इसे रोकने का कोई तरीका नहीं है। हालांकि, यदि दोनों साथी वाहक हैं या थैलेसीमिया माइनर है, तो गर्भावस्था में इसका जल्द परीक्षण किया जा सकता है और अगर भ्रूण थैलेसीमिया मेजर से पीडि़त है, तो दंपति गर्भपात का रास्ता चुन सकते हैं। एक अन्य विकल्प पीजीडी (प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस) परीक्षण के साथ एक आईवीएफ चक्र का विकल्प चुनना है। ऐसे मामलों में, माता-पिता को उनके विशिष्ट आनुवंशिक दोष के लिए परीक्षण किया जाता है और लक्षित पीजीडी जांच बनाई जाती है। आईवीएफ उपचार के बाद, भ्रूण को बच्चेदानी में प्रत्यारोपित करने से पहले विशेष थैलेसीमिया जीन दोष के लिए परीक्षण किया जाता है। इस तरह गर्भधारण के लिए ऐसे भू्रण को प्रत्यारोपित करना संभव होता है, जो सामान्य या मामूली रूप वाली बीमारी से पीडित है। सीबीसी (कंपलीट ब्लड काउंट) परीक्षण और हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफोरेसिस टैस्ट जैसे सरल रक्त परीक्षणों से थैलेसीमिया का पता लगाया जा सकता है। यदि आप गर्भवती हैं या बच्चा पैदा करने की कोशिश कर रही हैं, तो ऐसे परीक्षण हैं जो जन्म से पहले किए जा सकते हैं ताकि यह पता चल सके कि बच्चे की क्या स्थिति है। थैलेसीमिया माइनर वाले लोगों को शादी/गर्भावस्था की योजना बनाने से पहले अपने साथी की स्थिति की जांच करा लेनी चाहिए।”
थैलेसीमिया में जागरूकता की प्रमुख भूमिका है। अज्ञानता के कारण, रोगी अक्सर निदान का विकल्प नहीं चुनते हैं और अपने बच्चों के शरीर में दोषपूर्ण जीन स्थानांतरित करते हैं। जब कैंसर, मधुमेह, हृदय रोगों आदि जैसी सबसे अधिक चर्चा की गई बीमारियों के बारे में जागरूकता की तुलना की जाती है, तो अधिकांश औसत भारतीय थैरासीमिया से अनजान ही नजर आते हैं। भारत आज 100,000 थैलेसीमिया रोगियों के साथ इस बीमारी से जूझ रहा है। अनुमानों के मुताबिक, दंपतियों में जागरूकता की कमी के कारण भारत में हर साल 8,000-10,000 बच्चे थैलेसीमिया के साथ पैदा होते हैं। थैलेसीमिया वाले बच्चे को थैलेसीमिया मेजर कहा जाता है और उसे नियमित अंतराल पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता होती है।
थैलेसीमिया जीन के लिए वाहक दर दक्षिणी भारत में 1 से 3 प्रतिशत और उत्तरी भारत में 3 से 15 प्रतिशत तक भिन्न होती है। सीबीसी (कंपलीट ब्लड काउंट) परीक्षण और हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफोरेसिस टैस्ट जैसे सरल रक्त परीक्षणों से थैलेसीमिया का पता लगाया जा सकता है।