उत्तर भारत हिन्दू अधिवेशन में एककंठ से गूंजी धर्मनिरपेक्षता की निरर्थकता

0
1456
Spread the love
Spread the love

New Delhi News, 23 Sep 2018 : भारत सेवाश्रम संघ में हो रहे 21से 23 सितंबर को तीन दिवसीय उत्तर भारत हिन्दू अधिवेशन का समापन हिन्दू धर्म की जयजयकार से हुआ । इस अधिवशन हेतु बीकानेर के स्वामी संवित् सोमगिरि महाराजजी द्वारा प्रेषित शुभ संदेश का वाचन श्री. विवेक मित्तल ने किया। सुबह का सत्र परिसंवाद से प्रारंभ हुआ, जिसका विषय था- भारत में क्या चाहिए :  सेक्युलर लोकतंत्र अथवा हिन्दू राष्ट्र ? इस परिसंवाद में सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, ‘स्वराज्य’ के स्तंभलेखक श्री. विकास सारस्वत, ज्ञानम फाऊंडेशन, जयपुर, राजस्थान के श्री दीपक गोस्वामी तथा हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे जी सम्मिलित हुए।

परिसंवाद में बोलते हुए हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे जी ने कहा – धर्मनिरपेक्षता युरोपीय संकल्पना है । राष्ट्र परंपराआें और संस्कृति से बनता है। हमारे यहां देश के संदर्भ में गणतंत्र शब्द का प्रयोग किया जाता है; किंतु  गणराज्य शब्द कहीं बाहर से नहीं आया है, इसका उल्लेख यजुर्वेद में 40 बार और ऋग्वेद में 9 बार आया है। भारत की राज्य व्यवस्था अनादि काल से ही सुयोग्य ढंग से चलती आई है। वर्तमान गणतंत्र व्यवस्था में आज कई सांसद ही आपराधिक पृष्ठभूमि से है, किंतु उन्हें वापस नहीं बुलाया जा सकता ! जबकि हमारे शास्त्रों में तो राजा यदि अयोग्य है तो उसे बदलने का भी प्रावधान था, इसके कई उदाहरण भी हैं । हमारे देश में हिन्दुआें के सर्वोच्च धर्मगुरु शंकराचार्य जी को दिवाली में बंदी बनाया गया; किंतु आर्चबिशप फ्रेंको जिसने कई बलात्कार किए तब भी उसे बंदी बनाने में ३ माह लग गए। यह खोखला सेक्युलर लोकतंत्र है। भारतीय मानस, भारतीय दर्शन सभी से अलग है, हिन्दुआें की परंपरा, संस्कार सभी के प्रति आदर करना सिखाती है। इसकी तुलना भी किसी से नहीं की जा सकती । इसलिए भारत में धर्मनिरपेक्षता का होना विडंबना है।

भारतीय संविधान में सेकुलरवाद के अंतर्भाव का षडयंत्र बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णुशंकर जैन जी ने कहा – 1973 मे सर्वोच्च न्यायालयने केशवानंद भारती याचिका में निर्णय देते हुए कहा था कि, भारत के संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं हो सकता। किंतु उसके उपरांत 1976 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल के समय संविधान की प्रस्तावना में ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द डाल कर संविधान की मूल संरचना को बदल दिया। आज भी इसके विरोध में कोई आवाज नहीं उठाई जाती। आज ‘सेक्युलर’ शब्द का उपयोग हिन्दूविरोध तथा राष्ट्रविरोध के लिए चल रहा है।
ज्ञानम फाऊंडेशन के श्री. दीपक गोस्वामी जी ने कहा- विदेश से आई हर चीज हमारे भारत में हमें हानि पहुंचाने के लिए आयी है। इसके लिए हिंदू राष्ट्र की स्थापना अति आवश्यक है। आजादी से पूर्व देशभक्त पत्रकारिता करते थे। अब यह व्यापार हो गया है। 
 
‘स्वराज्य’ के स्तंभलेखक श्री. विकास सारस्वत जी ने कहा- संविधान सभा में ‘सेक्युलर’ शब्द की चर्चा ही नहीं हुई । हमारे यहां तो शास्त्रों में सभी नियम लिखे हैं, कि राज्यव्यवस्था कैसी हो। भारत का संविधान बनते समय यूरोपीय शक्तियां पीछे लगी थीं कि, किसी भी प्रकार से भारत संविधान में सेक्युलर शब्द आ जाए। आज सभी राजनैतिक दल सेक्युलर हो गए। दु:ख की बात यह है कि, हिन्दू ही अपने आप को अधिक सेक्युलरवादी मान रहे हैं।
  • मध्यप्रदेश के भारत रक्षा मंच के संस्थापक,  श्री. सूर्यकांत केळकर जी ने बांग्लादेश तथा आसाम के घुसपैठियों की घुसपैठ रोकने के लिए भारत रक्षा मंच द्वारा किए गए प्रयासों के बारे में बताया।
  • पनून कश्मीर से जुडे श्री. दिगंबर रैना जी ने ‘कश्मीरी हिन्दुआें का पुनर्वास हेतु संगठित प्रयासों की आवश्यकता’ विषय पर मार्गदर्शन किया।
  • जयपुर, राजस्थान के निमित्तेकम के अध्यक्ष डॉ. ओमेंद्र रत्नू जी ने ‘पाकिस्तान से विस्थापित हिन्दुआें के पुर्नवास की समस्याएं एवं समाधान’ इस विषय पर अपने विचार रखे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here