आत्मा और परमात्मा का मिलन गुरु कृपा द्वारा ही संभव : साध्वी आस्था भारती

0
569
Spread the love
Spread the love

New Delhi  : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 12 से 18 सितंबर 2022 तक डीडीए ग्राउंड, ब्लॉक A, बंसल भवन के सामने, पेट्रोल पंप के पीछे, सेक्टर 16, रोहिणी, दिल्ली में ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ का भव्य आयोजन किया जा रहा है। गुरुदेव आशुतोष महाराज (संस्थापक एवं संचालक, डीजेजेएस) की शिष्या भागवताचार्या महा मनस्विनी विदुषी सुश्री आस्था भारती ने कथा के द्वितीय दिवस नन्हे भक्त ध्रुव की संकल्प यात्रा को बड़े ही मार्मिक ढंग से सुनाया। भगवान तो भाव के भूखे हैं। जो भी उन्हें भावों से पुकारता है, वे शीघ्र ही वहाँ पहुँच जाते हैं। साध्वी ने बताया कि भक्त ध्रुव की संकल्प यात्रा प्रतीक है- आत्मा और परमात्मा के मिलन की। यह यात्रा केवल सद्गुरु के सान्निध्य से ही पूर्ण होती है। यही सृष्टि का अटल और शाश्वत नियम है। ध्रुव ने यदि प्रभु की गोद को प्राप्त किया तो देवर्षि नारद जी के द्वारा। अर्जुन ने विराट स्वरूप का साक्षात्कार किया तो जगद्गुरु भगवान श्री कृष्ण की महती कृपा से। राजा जनक जीवन की सत्यता को समझ पाए लेकिन गुरु अष्टावक्र जी के माध्यम से। मुण्ड को पनिषद्भी कहता है-तद्विज्ञानार्थं सगुरु मेवा भिगच्छेत्। समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्म निष्ठम्।। अर्थात् उस पर ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए हाथ में जिज्ञासा रूपी समिधा लेकर वेद को भली-भांति जानने वाले पर ब्रह्म परमात्मा में स्थित गुरु के पास विनय पूर्वक जाएं। आपको अवश्य ही ईश्वर का साक्षात्कार मिलेगा। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने मंच से सभी श्रोताओं को ईश्वर दर्शन के लिए आमंत्रित किया। आज कथा की दिव्य सभा में गंगा दशहरा पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया गया।गंगा अवतरण प्रसंग के अंतर्गत उन्होंने संस्थान के प्रकृति संरक्षण कार्यक्रम ‘संरक्षण’ की चर्चा करते हुए बताया कि विकास की अंधी दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के फलस्वरूप आज सम्पूर्ण धरा विनाश के कगार पर आ खड़ी हुई है। इस बढ़ते प्राकृतिक असंतुलन को नियंत्रित करने व मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य पुनःस्थापित कर पर्यावरण के संवर्धन हेतु संस्थान द्वारा ‘संरक्षण कार्यक्रम’ को संचालित किया जा रहा है।गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी का कथन है- जब मनुष्य आत्मिक रूप से जागृत हो जाता है तो प्रकृति का दोहन नहीं, उसका पूजन करता है। और फिरयही जागृत आत्माएं ध्यान के द्वारा प्रकृति को अपनी दिव्य-तरंगों से संपोषित करती हैं।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here