New Delhi News, 30 May 2019 : तम्बाकू एक भयानक नशा है, जिसका सेवन सेहत के लिए हानिकारक है। नशे की कैद में जकड़े आज के समाज को इसकी बुरी लत लग गई है। अधिकतर युवा वर्ग इसका गुलाम हो गया है। भारत भी इसकी मार की चपेट में आ चुका है। बीड़ी या सिगरेट पीना, तम्बाकू चबाना या पीना या फिर उसकी नसवार सूँघना- ये सभी क्रियाएँ कैंसर जैसी नामुराद बीमारी को खुला आमंत्रण देती हैं।
तम्बाकू का वनस्पति विज्ञान में नाम- Nicotiana Tabacum है और इसको American herb (अमरीकन हर्ब) भी कहा जाता है। इसके पीछे भी एक कारण है। इतिहास बताता है कि अमरीका में ही इसका इस्तेमाल सबसे पहले हुआ था। कोलम्बस 1492 में जब अमरीका पहुँचा, तो उसने मल्लाह उस टापू के हालात पता करने भेजे। जब वे वापस आये तो उन्होंने उसको बताया कि वे एक अनोखी बात देखकर आये हैं। यहाँ के लोग अपनी नाक एवं मुंह से धुआं निकालते हैं। उसके बाद जब अन्य सैनानी वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने भी बहुत से लोगों को तम्बाकू पिते देखा। वे बहुत हैरान हुए। तम्बाकू फ्रांस में 1556, पुर्तगाल में 1558 और स्पेन में 1559 में पहुँचा। इंग्लैंड में इसे सर वालटर रेले और सर जॉन हाकि्नस 1556 ई॰ में लेकर आए| भारत में, मुगलों के समय पुर्तगाली व्यापारी तम्बाकू लेकर आए।
तम्बाकू की खेती बहुत तेजी से बढ़ती है। परन्तु पशु भी इसका सेवन नहीं करते। बहुत से भूखे पशुओं के आगे जब इसको रखा गया, तो उन्होंने मुँह फेर लिया| किन्तु हैरानी की बात है कि जिस घास से पशुओं ने मुहँ फेर लिया, उसे मनुष्य दिन-रात खा रहा है। यह आज के मनुष्य के पशुओं से भी बदतर होने के लक्षण नहीं तो और क्या है? जिस वक्त कोई तम्बाकू मिश्रित पदार्थ खरीदता है, तो उस पर लिखी चेतावनी- ‘तम्बाकू का सेवन सेहत के लिए हानिकारक है’- को पढ़ता है, लेकिन फिर भी वह उसका सेवन करने से स्वयं को रोक नहीं पाता।
तम्बाकू का सर्वाधिक सेवन सिगरेट के रूप में होता है। सिगरेट के धुंए में बहुत सारे रासायनिक तत्त्व होते हैं, जिसमें निकोटीन मुख्य होता है। यह सफेद रंग का घातक विष है। चिकित्सकों का मानना है कि यदि इसका शुद्ध कतरा इंजेक्शन से सीधे खून में उतार दिया जाये, तो इंसान की मौत भी संभव है। सिगरेट के धुंए द्वारा जो निकोटीन मनुष्य के भीतर जाती है, वह Cilia अर्थात् श्वांश नाली की भीतरी झिल्ली की कोशिकाओं को नष्ट कर देती है।
निकोटीन के अलावा सिगरेट के धुंए में अनेक हानिकारक गैस व रासायनिक तत्त्व जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन साइनाइड, पाइरीडिन अमोनिया, एलडीहाइड, कैरीनोजियस आदि भी होते हैं। ये सभी कैंसर जैसे दुस्साध्य रोग को जन्म देने वाले ज़हर हैं। आज फेफड़ों का कैंसर तेज़ी से बढ़ रहा है। पिछले 25 सालों में, पश्चिमी देशों में इस रोग से मरने वालों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है। अमरीकन कैंसर सोसाइटी की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका में हर साल तीन लाख से ज़्यादा मौतें कैंसर से होती हैं, जिसका प्रमुख करण सिगरेट का सेवन है। वल्लभ भाई पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट के सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि भारत में भी अब धूम्रपान से मरने वालों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है।
डॉ. सी.एम.फ्लैचर का कहना है कि धूम्रपान करने वाली स्त्रियों की संतानों का स्वास्थ्य स्तर निम्न होता है। वे अक्सरां कम वजन की और कमज़ोर होती हैं। जन्म के एक वर्ष के भीतर ही उनकी मृत्यु का भय रहता है।
सिगरेट इन्सान को दो तरह से नुकसान पहुंचाता है। यह सेवन करने वाले व्यक्ति के लिए तो हानिकारक है ही, साथ ही इसके धुंए के सम्पर्क में आने वाले अन्य लोग भी इसके दुष्प्रभाव से बच नहीं पाते। सेवन करने वाला Active smoker (एक्टिव स्मोकर) कहलाता है एवं दो मीटर की दूरी तक फैले इस धुंए के प्रभाव में आने वाले Passive smokers (पैसिव स्मोकर्स) कहलाता हैं।
तम्बाकू पर पाबंदी- भारत में तम्बाकू मुग़ल काल में आया। उस समय इस लत से लोगों को बचाने हेतु मुग़ल बादशाह ने कई सख्त हुकुम ज़ारी किये थे- जैसे- तम्बाकू सेवन पर जुर्माना। ‘खुलासा अलत वारिख’ में दर्ज़ है कि बादशाह जहाँगीर ने तो ऐलान किया था-‘जो भी तम्बाकू का सेवन करेगा, उसके होंठ काट दिए जाएँगें।’ महारानी एलिज़ाबेथ ने भी तम्बाकू सेवन के विरोध में लिखित हुकुम ज़ारी किये थे।
अन्य देशों में भी लोगों को तम्बाकू सेवन से मुक्त करने हेतु अनेकों कदम उठाए गए। अमरीका के एलेन लैंडर्स ने अपनी जीवन में तम्बाकू का इतना अधिक सेवन किया, कि उनका नाम Mr. Tobacco ही पड़ गया। परन्तु जब उनके फेफड़े गल गए, तो उन्होंने तम्बाकू की हानियों के विषय में लोगों को जाग्रत करने का बीड़ा उठाया। परिणामस्वरूप अमरीका के फ्लोरिडा राज्य में 17 प्रतिशत युवाओं ने तम्बाकू को तिलांजलि दी। तम्बाकू की हानि के विषय में विद्वान एल्डयूस हक्सले ने कहा, ‘तम्बाकू का धुआं गले से नीचे उतरते ही मनुष्य को परमात्मा से विमुख कर देता है।’ तिब्बतियों ने भी युवाओं को इस लात से सचेत करते हुए कहा- ‘यदि तम्बाकू का सेवन किया तो धर्म का पतन होगा व आत्मा कमज़ोर हो जाएगी।’ हर वर्ष U.N.O. 31 मई को ‘तम्बाकू निषेध दिवस’ व 26 जून को ‘नशा निषेध दिवस’ मनाकर विश्वभर को इस विषय में सचेत करता है।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से “बोध” नामक नशा मुक्ति अभियान चलाया गया है| जिसके तहत नशे के विरुद्ध नैतिक शिक्षाओं के साथ-साथ ब्रह्मज्ञान की दीक्षा भी दी जाती है| ब्रह्मज्ञान की ध्यान क्रिया व्यक्ति के प्री फ्रंटल कॉर्टेक्स को अधिक सक्रिय और ओजस्वी बना देती है| यही कारण है कि ध्यान करने वाले साधकों के व्यवहार में हमेशा एक ठहराव, सुंदर समन्वय और विवेक की गरिमा देखने को मिलती है| ऐसा व्यक्ति जिसे ब्रह्मज्ञान द्वारा मनचाहा ‘उल्लास (feeling of high)’ और ‘विवेक-शक्ति’ मिल रही हो, क्या वह कभी नशे के प्रलोभनों के समक्ष झुकेगा? कदापि नहीं! इसीलिए नशे की रोकथाम (Prevention) के लिए ब्रह्मज्ञान से श्रेष्ठ कोई प्रणाली नहीं! सर्व श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक) के दिव्य दिशा-निर्देशन हेतु संस्थान द्वारा चलाया गया “बोध” अभियान इसी नीव पर टिका है कि “शिक्षा एवं दीक्षा (ब्रह्मज्ञान) का समन्वय ही एक नशा-मुक्त समाज के स्वप्न को साकार कर सकता है|”