अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक रीतियों के अनुसार भारतीय नववर्ष मनाएँ : गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज 

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New Delhi : 1 जनवरी, 2024… हमने देखा कि सम्पूर्ण विश्व ने एक नए सफर की तैयारी की।पुराने को अलविदा कहकर नए को पूरी जिंदादिली से ‘सुस्वागतम्’ कहा। चहुँ ओर 1 जनवरी को नववर्ष के आगमन के रूप में जोरों-शोरों और हर्षोल्लास से मनायागया। पर इस सम्बन्ध में हमें;दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान को कुछ पत्रएवं ई-मेल मिले, जिनमें नववर्ष सम्बन्धी अनेक शंकाएँ उठाई गई थीं। प्रमुखतःतो सभी जिज्ञासुओं ने जानना चाहा कि संस्थान की नववर्ष के सम्बन्ध मेंक्या अवधारणा है। क्या भारतीय होने के नाते हमारा अपनी संस्कृति को विस्मृतकर अन्य सभ्यताओं के अनुसार 1 जनवरी को नववर्षोत्सव मनाना उचित है?

इससे पहले कि इन जिज्ञासाओं पर संस्थान अपना कोई मन्तव्य रखता, संस्थानद्वारा एक सर्वे किया गया। इसके अंतर्गत हमने आज की आधुनिक पीढ़ी- स्कूल, कॉलेज के छात्र-छात्राओं से कुछ प्रश्न किए, जैसे- क्या आप जानते हैं कि 1 जनवरी भारतीय संस्कृति के अनुसार नव वर्ष में प्रवेश का सूचक नहीं है? इसके ज्योतिष-ज्ञान के हिसाब से किसी और तिथि पर ही नए साल की शुरुआत मानीजाती है। क्या आप उस तिथि से परिचित हैं? क्या ऐसी ही धूम-धाम से उस तिथिपर भी नववर्ष का उत्सव मनाते हैं?

नववर्ष एक मनोरंजन दिवस भर नहीं!पूछे गए प्रश्नों के उत्तरस्वरूप हमें अनेक विचार मिले। जैसे कि एक भावक नेकहा कि, ‘नववर्ष’ का यह मुद्दा ही महत्त्वहीन है। इसलिए इसे उठाना फिजूलमें बात का बतंगड़ बनाना होगा। परन्तु यह मुद्दा जितना सतही दिखता है, उतना है नहीं। यहाँ सवाल महज Fun-day (मनोरंजन दिवस) या मौज-मस्ती मनाने के लिए एक दिन चुनने का नहींहै। दरअसल इस मुद्दे की जड़ें काफी गहराई में उतरी हुई हैं। इसके तलमें हमारी मौलिक पहचान का सवाल है। हमारी भारतीय संस्कृति की प्रतिष्ठा कासवाल है। यह एक ऐसा यक्षप्रश्न है, जिसका जवाब या तो इस प्राचीनतम संस्कृतिमें नवप्राण फूंक सकता है या उसके धूमिल स्वरूप पर एक और परत चढ़ासकता है। इसलिए भारतीय होने के नाते हमारा इस पर चिंतन करना महत्त्वपूर्णही नहीं, समय की मांग भी है।

देशों की मुद्रा भिन्न, नववर्ष क्यों नहीं?एक अन्य टिप्पणीकार ने नववर्ष की आगमन तिथि को सबके लिए एक ही रहने देने परजोर दिया है। उनके अनुसार जैसे मीटर, सेंटीमीटर आदि गणितीय इकाइयाँ विश्वभर के लिए स्टैंडर्ड हैं, उसी तरह यह दिवस भी होना चाहिए। अन्यथा, अपनीसांस्कृतिक धारणाओं के आधार पर इसे अलग से मनाना दुनिया से हटकर खड़ा होनाहोगा। परन्तु यह दृष्टिकोण भी कितना सुसंगत है? सबसे पहले तो, इस अहम्मुद्दे को गणितीय इकाइयों की श्रेणी में खड़ा करना ही उचित नहीं। दूसरा, कईविषय ऐसे होते हैं, जिन्हें वैश्विक स्तर पर एक समान किया ही नहीं जा सकता।उदाहरण के तौरपर ‘मुद्रा’ (currency) को ही लीजिए। भारत का रुपया है, अमेरिका का डॉलरहै, इंग्लैंड का पाउंड है। प्रत्येक देश की मुद्रा भिन्न-भिन्न है। हालांकिइन देशों में आपसी व्यापारिक लेन-देन भी चलता है। पर तब भी कोई राष्ट्र निजी मुद्रा छोड़कर अन्य को नहीं अपनाता।बताइए, फिर नववर्ष जैसे मुद्दे पर अपनेनिजत्व को खोना कहाँ की बुद्धिमत्ता है? इसे Globally uniform (विश्व मेंएक समान) करने के लिए अपनी सांस्कृतिक पहचान खोकर दूसरे के रंग-ढंग को ओढ़नाकहाँ तक सही है? इसलिए यदि हम अपनी पारंपरिक गणनाओं के हिसाब से चलते हैं, तो यह दुनिया से अलग हटकर खड़ा होनानहीं होगा, बल्कि अपनी पहचान के साथ, पूरे स्वाभिमान से, अपने पैरों परखड़ा होना होगा।

सारांशतः हमारा मानना यही है कि संस्कृति एक राष्ट्र की मौलिक पहचान होतीहै। यदि यह जीवंत रहे, तो वह राष्ट्र विश्व के विराट मंच पर अपना एकविशिष्ट स्थान बनाए रख सकता है। भारत की तो संस्कृति ही इतनी ओजस्वी है, जिसके कारण सदियों से उसकी एक अनोखी छवि रही है। विश्व की आँखों ने उसे सदाप्रशंसनीय दृष्टि से निहारा है।

इसलिए इन सारे छोटे-मोटे तर्क-वितर्कों को एक तरफ रखकर, केवल और केवल इसमहान उद्देश्य के लिए हम सांस्कृतिक गणनाओं के हिसाब से नववर्ष का उत्सवमनाएँ। वह भी अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक रीतियों के अनुसार!

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से भारतीय नववर्ष, विक्रम संवत 2081 की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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