New Delhi, 19 Oct 2020 : तीनों लोकों की देवी- त्रिभुवनेश्वरी!वरदानों की दात्री- वरदा! चक्र धारण करने वाली- महाचक्रधारिणी! बुरी वृत्तियों का नाश करने वाली- दुर्गति नाशिनी! दुर्ग के समान ढाल बनकर अपने भक्तों की रक्षा करने वाली– माँ दुर्गा!असंख्य संबोधनों से पुकारे जाने वाली माँ दुर्गा का वंदन आदिकाल से किया जा रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता अर्थात् हड़प्पा संस्कृति में भी माँ दुर्गा की स्तुति के प्रमाण मिलते हैं। रावण से युद्ध करने से पूर्व, विजय हेतु प्रभु श्री राम ने भी माँ का ही आह्वान किया था| द्वापर में जब कंस ने देवकी-वसुदेव कीआठवीं संतान समझकर, उस शिशु की हत्या करनी चाही- तब माँ ने ही वृहद रूप धारण कर उसके विनाश का उद्घोष किया था। माँ की घोषणा से कंस थर-थर कांप उठा था।माँ को दश प्रहरणधारिणी की संज्ञा भी दी गई है। कारण कि उनकी दस भुजाओं में दस शस्त्र/वस्तुएँहैं, जो सांकेतिक भी हैं और अर्थपूर्ण भी! माँ दुर्गा के हाथ में शंख- एक ओर, बाहरी जगत में माँ दुर्गा केप्रकटीकरण से बुराई के अंत का उद्घोष है| वहीं, शंख आंतरिक जगत में गूँजतेशाश्वत संगीत का भी प्रतीक है। वह अनहदनाद, जिसे एक ब्रह्मज्ञानी साधक अपने भीतर हीसुन पाता है, जब वह पूर्ण गुरु की ज्ञान-दीक्षासे माँ के वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार करलेता है।कमल आंतरिक जगत में अमृत का द्योतक है। वहीं, बाहरी परिवेश में, माया-रूपीकीचड़ में रहते हुए भी, सूर्य-उन्मुख यानीईश्वरोन्मुख रहने की शिक्षा देता है- कमल।खड्गप्रतीक है विवेक का।
खड्ग की तेज़ धार मूलतः विवेक कीधार की ओर इशारा है, जिससे किसी भी विकटसमस्या अथवा अड़चन से उत्तम ढंग से निबटाजा सकता है।तीर एवं धनुष- दोनों ही ऊर्जा की ओर संकेत करते हैं।वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने पर कहा जा सकता है किधनुष स्थितिज ऊर्जा (potential energy) का सूचकहै और तीर गतिज ऊर्जा (kinetic energy) का। दोनोंकेसमन्वय से, सामूहिक प्रयास से लक्ष्य को भेदा जासकता है। भक्ति पथ पर यह ‘स्थितिज ऊर्जा’ साधना सेअर्जित की गई ऊर्जा की ओर इशारा है। वहीं, सेवा केमाध्यम से मिलने वाली ऊर्जा ‘गतिज ऊर्जा’ है। भक्तिपथ के लक्ष्य यानी ईश्वर तक सेवा-साधना के संगम सेही पहुँचा जा सकता है।त्रिशूलआदिदैविक, आधिभौतिक अथवा आध्यात्मिक- तीन तापों की और संकेत करता है| जीवन-पथ में आने वाले इन तीनों प्रकार के तापों का हरणकरने वाली हैं माँ! जो साधक माँ को तत्त्व से जान लेतेहैं, फिर वो इन तीनों तरह के दुःखों से ऊपर उठकरआनंद में विचरण करते हैं।गदा संहार की सूचक है जो दुर्जनों का नाश करतीहै। साथ ही, आंतरिक क्षेत्र में गदा उस आदिनाम काप्रतीक है, जो इस संपूर्ण सृष्टि की सबसे शक्तिशालीतरंग है। जो व्यक्ति इस आदिनाम से जुड़ जाता है, वहफिरअपने लक्ष्य के मध्य आने वालेसारे दुर्जनों अथवा दुष्प्रवृत्तियों कासफलतापूर्वक संहार कर पाता है।वज्रशक्ति का द्योतकहै। भीतरी जगत में माँ का यह शस्त्रआत्मिक शक्ति की ओर संकेत करता है। जिस प्रकारवज्र का प्रहार खाली नहीं जाता; उसी प्रकार जो व्यक्तिआत्मिक जागृति के उपरान्त, आंतरिक शक्ति से भरपूरहो जाता है- वह भी फिर प्रत्येक चुनौती में विजयीहोकर ही निकलता है।सर्प चेतना के ऊर्ध्वगामी होने को दर्शाता है, जोकुण्डलिनी के रूप में मूलाधार चक्र में स्थित होती है।जब एक व्यक्ति के भीतर आत्मा के प्रकाश (माँ केवास्तविक स्वरूप) का प्रकटीकरण होता है, तब चेतनाका विकास होता है। वह मूलाधार चक्र से सहस्रदलकमल यानी अमृतकुंड तक की यात्रा कर पाती है।अग्निप्रतीक है आत्मा के प्रकाश की, जो माँ कातत्त्व स्वरूप है। आत्मिक जागृति के उपरांत साधक केअंतःकरण से अज्ञानता का अंधकार छटने लगता है। अतःवह भक्ति के नाम पर किए जाने वाले समस्त रूढ़िवादीकर्मकाण्डों, प्रचलित मान्यताओं इत्यादि को तिलांजलि देपाता है। इस प्रकार, भक्ति के शाश्वत मार्ग पर अग्रसरहोकर, वह अपने जीवन का परम कल्याण कर पाता है।
माँ दुर्गा के असली दर्शन वउनका वंदन न तो बाहरी जगत में और न ही कंप्यूटरस्क्रीन पर होता है। यह तो अंतर्जगत में उतरकर कियाजाता है। ऐसा हमारे समस्त धर्म-ग्रंथ कहते हैं। श्रीमद्देवीभागवत के सप्तम स्कंध में भी यह वर्णित है- ‘ब्रह्म शुभ्र, परम प्रकाश ज्योति स्वरूप है, जोहृदयगुहा में निवास करता है। आत्मज्ञान को प्राप्त करनेवाले ज्ञानीजन ही वास्तव में उसे जान पाते हैं।‘यही संदेश माँ का स्वरूप व उनके अस्त्र-शस्त्र भीहमें दे रहे हैं। अतः यदि हम सचमुच माँ के भक्त हैंऔर उनकी प्रसन्नता व कृपा के पात्र बनना चाहतेहैं,तो एक तत्त्ववेता महापुरुष की शरण में जाएँ। उनसेब्रह्मज्ञान प्राप्त कर, अपने भीतर माँ के दिव्य स्वरूपका दर्शन कर, सच्ची दुर्गा पूजा मनाएँ। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!