New Delhi News, 08 April 2019 : जहाँ एक ओर पूरी दुनिया वैज्ञानिकता से रहित कुछ पूर्व अनुमानों पर आधारित ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार नए साल को मनाती है, वहीँ दूसरी ओर भारतीय संस्कृति, भारतीय पौराणिक कथाओं और भारत की समृद्ध संस्कृति व वैज्ञानिकता पर आधारित नववर्ष विक्रम संवत या चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को स्वीकार करती है। इस वर्ष6 अप्रैल को हमारे भारतीय नववर्ष “विक्रम संवत 2076” का शुभारम्भ हुआ। भारतीय नववर्ष की तर्कसंगतता और दार्शनिक महत्व के विषय में समाज को जागरूक करने हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थानद्वारा दिल्ली स्थित दिव्य धाम आश्रम भारतीय नववर्ष के उपलक्ष में मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के भक्त श्रद्धालुगणों, स्वयंसेवकों, संस्थान के प्रचारक शिष्यों एवं कई गणमान्य अतिथिगणों ने इस विशाल भक्तिमयकार्यक्रम में भाग लेकर विक्रमी संवत 2076 के आगमन का स्वागत किया।
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के प्रचारक शिष्यों एवं शिष्याओं ने विक्रमी संवत को भारतीय नववर्ष के रूप में स्वीकारते हुए, इसकी वैज्ञानिक और धार्मिक प्रासंगिकताविषय पर विचारों को प्रस्ततु किया। भारतीय पौराणिक कथाओं और अनेक प्राचीन धर्मग्रंथों में भारतीय नववर्ष के महत्व का वर्णन किया गया है। प्रवचनकर्ता ने बताया कि भारतीय गणना के अनुसार इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की शुरुआत की थी। यह सार्वभौमिक पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि यह वह दिन है जब ब्रह्मांड का निर्माण शुरू हुआ था। महाराजा विक्रमादित्य ने इसनववर्ष को शुरू किया ताकि हम अपनी भारतीय तारीखों, महीनों और वर्षों से परिचित रहें। भारतीय कैलेंडर के अनुसार, जिस दिन सृष्टि शुरू हुई थी; उसी दिवस को नए साल के पहले दिन के रूप में स्वीकार किया गया है। इस दिन नवरात्रि की शुरुआत भी होती है और पूरे भारत में माँ जगदम्बा की महिमा का गुणगान किया जाता है। कार्यक्रम में महर्षि अरविन्द घोष के जीवन चरित्र पर एक नाट्य मंचन भी प्रस्तुत किया गया! जिसमें मानवता को यह सन्देश दिया गया कि किस प्रकार महर्षि अरविन्द घोष ने ब्रह्मज्ञान की ध्यान साधना द्वारा देश निर्माण हेतु अपना सहयोग दिया था! आज हमें भी उनके जीवन से प्रेरणा लेकर विश्व कल्याण हेतु साधना करनी होगी और अपनी सेवायों को गुरु चरणों में अर्पित कर समाज कल्याण हेतु अपना सहयोग देना होगा!भक्तिमय भजनों और सुविचारित व्याख्याओं द्वारा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष के रूप में स्वीकार करने के लिए इसमें निहित वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रासंगिकता को भी स्पष्ट किया गया। सत्संग विचारों के माध्यम से बताया गया कि इसी दिन नक्षत्रों से पृथ्वी पर चार प्रकार की तरंगें गिरती हैं। ये सूक्ष्म तरंगें शारीरिक और मानसिक संरचना पर सकारात्मक प्रभाव डालते हुए आध्यात्मिक रूप से हमारे उत्थान हेतु सहयोगी होती हैं।
विचारों के माध्यम से इस तथ्य पर ज़ोर दिया गया कि हमें गर्व से विक्रमी संवत को अपने नए साल के रूप में स्वीकार करना चाहिए क्योंकि यह केवल अनुमानों पर आधारित नहीं है बल्कि आध्यात्मिक और तार्किक रूप से निर्मित है। साथ हीउपस्थित भक्तों ने वर्तमान के पूर्ण सतगुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य चरणों में भक्ति, नि:स्वार्थ-सेवा, ध्यान और नित्य समर्पण की भावना और उत्साह को बढ़ाने का संकल्प लिया। हमें शाश्वत मार्ग पर बढ़ते हुए व ब्रह्मज्ञान की ध्यान पद्धति का अभ्यास करते हुएभारतीय नववर्ष की नवीनता और दिव्यता का सच्चा प्रतिबिंब बनाना चाहिए। कार्यक्रम में उपस्थित सभी भक्त श्रद्धालुओंने प्रेरणादायक विचारों से प्रभावित हो कर भारतीय नववर्ष को अपनाने का प्रण भी लिया।