New Delhi News, 11 March 2022 : भारत मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है| शहरीकरण के उदय के बावजूद भी भारत की आधी से अधिक जनसंख्या ग्रामीण है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारत के GDP में लगभग एक चौथाई से अधिक का योगदान करती है। इसलिए आर्थिक विकास और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को पूरा करने के लिए ग्रामीण वित्तीय समावेशन महत्वपूर्ण है।
कोविड -19 महामारी भारतीय वित्तीय क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ है। इस महामारी के कारण घोषित की गईं पाबंदियों ने लोगों की आजीविका और बुनियादी ढांचे पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। शहरों में नौकरियों की कमी, बड़े पैमाने पर छंटनी, राहत उपायों की कमी, कोविड का अधिक प्रभाव इत्यादि , प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण ज्यादातर कुशल श्रमिक एवं कर्मचारी अपने गाँव लौट आये , जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डाला है । अतः ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधारने तथा ग्रामीणों के आय स्रोत एवं क्रय क्षमता को बढ़ाने के लिए पूंजी की अविलम्ब आवश्यकता को पूर्ण करना अत्यंत आवश्यक है| इस जरुरत को पूरा करने के लिए बैंकिंग क्षेत्र के पास सीमित साधन है, उसकी ऋण देने की जटिल प्रक्रियाओं के कारण कई छोटे व्यवसाय एवं निम्न स्तर में जीवन यापन कर रहे लोगों की प्राथिमकता हमेशा ही प्रभावित रहती है|
डिजिटल फाइनेंसिंग सेवाओं में वृद्धि
प्रारंभिक लॉकडाउन ने बैंकिंग सुविधाओं से वंचित क्षेत्र, विशेष रूप से महिलाओं, कम वेतन वाले श्रमिकों, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों (MSMEs) को बुरी तरह प्रभावित किया। हालांकि, डिजिटल फाइनेंसिंग ने आम आदमी तक पहुंच बनाई और सुविधा में सुधार के अवसर पैदा किए, जिससे ग्राहकों को घर बैठे- बैठे लेनदेन करने की सहजता प्राप्त हुई ।
पिछले एक साल में, डिजिटल फाइनेंसिंग सेवाओं को आक्रामक रूप से अपनाने से वित्तीय समावेशन का मार्ग प्रशस्त हुआ है। तेजी से बढ़ती तकनिकी जानकारी रखने वाली आबादी, सरकार की फिनटेक-केंद्रित पहलों के साथ मिलकर वित्तीय समावेशन को सुचारू रूप से चालू रखती है।
डिजीटल फाइनेंसिंग वितरण नेटवर्क का विस्तार
निस्संदेह, ग्रामीण इलाकों में पिछले एक साल में बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण हुआ है, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। भारत में विश्व की दूसरी सबसे बड़ी बैंक रहित आबादी है और फाइनेंशियल इन्क्लूजन इंडेक्स में इसका स्थान 53.9 है। एक बड़ी आबादी अभी भी डिजिटल वित्तीय व्यवस्था की पहुँच से बाहर है, हालाँकि फिनटेक क्षेत्र ने ग्रामीण सेक्टर में बैंकिंग और क्रेडिट से जुडी बाधाओं को कम करने में सहायता की है | इसके अलावा, माइक्रोफाइनेंस संस्थानों और छोटे वित्त बैंकों ने IMPS, UPI और AEPS (आधार सक्षम भुगतान प्रणाली) का उपयोग करके संग्रह प्रक्रिया को डिजिटल कर दिया है।
माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं ग्रामीण और अर्धशहरी परिवेश में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार और आय बढाने के लिए मदद करती हैं I कोविड-19 के कारण वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए, माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं अपने वित्तीय समावेशन कार्यक्रम के माध्यम से लघु और अन्य असंगठित क्षेत्रों में संलग्न लोगों को डिजिटल माध्यम से उनके खातों में सीधे आरबीआई नियमों के अनुसार ऋण उपलब्ध करा रहीं हैं | इसके तहत ये संस्थाएं ग्रामीण और दूर दराज क्षेत्रों में ग्राहक की दहलीज़ तक उनके व्यापार के लिए अतिरिक्त पूंजी या नए व्यवसाय में बड़ी पूंजी की आवश्यकता की पूर्ति कर रहीं हैं | इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करतीं हैं की सभी को आर्थिक विकास का लाभ मिले|
माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं “वोकल फॉर लोकल” और “आत्मनिर्भर भारत” के सपनों को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं | ये संस्थाएं नए या पुराने व्यवसाय जैसे कृषि आधारित, बकरी पालन, डेयरी, मुर्गीपालन, किराना स्टोर, फलों और सब्जी की दुकान, चूड़ी आदि जैसे छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए बिना किसी सिक्योरिटी तथा कम से कम दस्तावेजों पर ऋण प्रदान कर रहीं हैं |
तकनीकी समाधानों का लाभ उठाते हुए, बैंकों और वित्तीय संस्थानों (FI) ने आसान ऋण वितरण और संग्रह के साथ आर्थिक मजबूती प्रदान की है।
कुल मिलाकर, महामारी ने डिजिटल वित्तीय समावेशन की आवश्यकता को बढ़ा दिया है। वित्तीय उद्योग कई क्षेत्रों की विविध आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सबके विकास के लिए डिजिटल भुगतान, लेनदेन, क्रेडिट रिपोर्टिंग और बैंकिंग को कम कर रहा है। बैंकों, फिनटेक और माइक्रोफाइनेंस समाधानों के चल रहे अनुमानों के साथ, ग्रामीण क्षेत्रों में जल्द ही समान वित्तीय पहुंच होगी। एक बार ऐसा हो जाने पर, भारत आर्थिक रूप से समावेशी राष्ट्र बनने से दूर नहीं रहेगा।