February 22, 2025

आत्मज्ञान द्वारा चेतना की उच्चावस्था को प्राप्त करें : आशुतोष महाराज

0
Shri Ashutosh Maharaj
Spread the love

New Delhi News, 26 April 2019 : अधिकांश लोग कहते हैं कि मैं सुखी हूँ, क्योंकि मेरे पास परिवार है, मित्र हैं, ऊँचा पद है, प्रतिष्ठा है, धन एवं सुरक्षा है। पर सुखी होने के लिए ये सब कारण तुच्छ हैं, हेय हैं। ये हवा की तरह आते हैं और चले जाते हैं। इनसे मिलने वाला सुख जब चला जाता है, तो हम व्यसनों में सुख ढ़ूँढ़ने लगते हैं। इसी आशा में कि उनमें सुख मिलेगा। परन्तु बाह्य कारणों से कभी भी सुख निर्मित नहीं हो सकता।

वस्तुतः सुख तो चेतना की आंतरिक अवस्था है, जो निर्णय करती है कि हम संसार को कैसे देखते हैं। उसे कैसे महसूस करते हैं? सुख का आंतरिक स्रोत हमारी आत्मा है। वही उसका मूल स्रोत है, वही मूल कारण है। सुख आत्मा का ही कार्य अर्थात् उससे होने वाला प्रभाव है।

आनंद के अपने इस आंतरिक स्रोत से संपर्क खोकर, जो सुख आप बाह्य परिस्थितियों में महसूस करते हैं- वह सदा भ्रमात्मक होता है। आप उनकी दया पर निर्भर रहते हैं। वेदांत कहता है कि इस प्रकार का, कारण पर निर्भर रहने वाला सुख, दुःख का ही दूसरा रूप है। क्योंकि ये भौतिक कारण तो कभी भी हम से छीने जा सकते हैं। अतः बिना कारण सुखी रहना हमारी आंतरिक आकांक्षा है।

दरअसल, आनन्द चेतना की हमारे साथ सदा रहने वाली अवस्था है। लेकिन यह अक्सर सभी प्रकार के चित्त विक्षेपों द्वारा आवृत्त रहती है। जिस प्रकार सूर्योदय का सुंदर दृश्य बादलों के द्वारा छिपा लिया जाता है, उसी प्रकार हमारा आंतरिक सुख भी हमारी दैनिक चिंताओं से ढक लिया जाता है। सामाजिक बन्धन तथा संकीर्ण बोध हमारे ह्रदय की गहराइयों में छिपे हुए इस स्वर्ग के साम्राज्य की झलक पाने से हमें वंचित रखते हैं। जीसस ने कहा है- ‘स्वर्ग के साम्राज्य को खोजो, फिर सब कुछ तुम्हें दे दिया जायेगा।’ यह स्वर्ग का साम्राज्य विश्व में दूर दराज़ स्थित कोई स्थान नहीं है। हमारी चेतना की ही उच्चावस्था है। इस भीतरी साम्राज्य में ही सच्चा सुख है। आप इस आनंद को ही अपना प्राथमिक लक्ष्य बनाइए। फिर सभी कुछ आपकी इच्छानुकूल आपको स्वतः ही प्राप्त होता जाएगा। अतः उच्चतम यानि आत्मा की खोज करो। फिर सब कुछ आपके पास स्वतः चला आयेगा।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *