New Delhi News, 24 May 2019 : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से रामलीला मैदान, पुलिस स्टेशन के सामने, प्रह्लादपुर, नई दिल्ली में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ का अनुष्ठान किया जा रहा है। कथा के द्वितीय दिवस में परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी कालिंदी भारती जी ने प्रथम स्कंध के अंर्तगत बताया कि महर्षि वेदव्यास जी ने लिखा ‘‘सत्यम् परम धीमहि’’ उन्होंने परमात्मा को सत्य शब्द से सम्बोध्ति किया। वह हमें समझा रहे हैं कि परमात्मा एक ही है जिसके विषय में संतों, महापुरूषों ने कहा- ‘एकं सद्विप्राः बहुधा वदन्ति’ वह एक ही शक्ति है जिसे विद्वानों ने अलग-अलग नामों से संबोधित किया है। आज परमात्मा को अनेकों नामों से पुकारा जाता है परंतु वास्तव में वह एक ही तो शक्ति है। वही शक्ति सब में प्रकाश रूप में विद्यामान है। एक शक्ति परमात्मा जो सत्य है सब में प्रकाश रूप में विद्यमान है और उस प्रकाश स्वरूप परमात्मा का प्राक्ट्य जब भीतर होता है तो आंतरिक अंधकार दूर हो जाता है। यह पांच विकार, दुःख-क्लेश, अशांति, अधीरता, चौरासी का भव-बंधन ये सब इसी अंधेरे की ही दी हुई सौगातें हैं। ईश्वर अंतर्जगत का भुवनभास्कार है। ऋषियों ने कहा- ‘आदित्यवणं तमसः परस्तात्।’ ज्योति की ज्योति परम-ज्योति है। वहाँ न तो चक्षु पहुँच सकते हैं, न ही वाणी, न मन ही, न तो बुद्धि से जान सकते हैं, न ही दूसरों को सुना सकते हैं। उस प्रकाश स्वरूप परमात्मा का दर्शन तो मात्र दिव्य दृष्टि के माध्यम से ही किया जा सकता है। जैसे इस लौकिक संसार को देखने के लिए भगवान ने दो आंखें दी हैं वैसे ही इस संसार के रचनाकार को देखने के लिए भी अलौकिक आंख दी है। हमारे मस्तक पर, भौहों के ठीक बीचोंबीच। जिस प्रकार से आप अपनी चर्म चक्षु के द्वारा दर्पण के माध्यम से अपने आप को निहारते हैं वैसे ही अपने अंतःस्थ ईश्वरीय प्रकाश और उसके अनंत वैभव का दर्शन दिव्य-दृष्टि के द्वारा कर सकते हैं। समस्त ग्रंथों व महापुरूषों ने उस सत्य स्वरूप परमात्मा को, ईश्वरीय प्रकाश को देखने का सशक्त साधन दिव्य-दृष्टि ही माना है। यह दिव्य-दृष्टि आध्यात्मिक व अति सूक्ष्म दृष्टि है इसे खोलने के लिए स्थूल साधनों या बाहरी ऑपरेशनों से जागृत नहीं हो सकती। यह मात्र शुद्ध आध्यात्मिक उर्जा से ही खुल सकती है। इस अलौकिक उर्जा के स्रोत केवल और केवल एक पूर्ण गुरु, एक तत्त्ववेत्ता महापुरूष ही होते हैं। मात्र उनमें ही इसके उन्मीलन की सामर्थ्य है।
साध्वी जी ने बताया कि परीक्षित कलयुग के प्रभाव के कारण ऋषि से शापित हो जाते हैं। उसी के पश्चाताप में वह शुकदेव जी के पास जाते हैं। आज परीक्षित भी शुकदेव जी के श्री चरणों में बैठकर उस जगदीश्वर को जान लेना चाहते हैं। परीक्षित जी के मन में आज अनेकों ही प्रश्न हैं किन्तु जितने प्रश्न उनके मन में थे उतने ही नारद जी के मन में थे। नारद जी को समाधान मिला ब्रह्मा जी से और परीक्षित की जिज्ञासा शुकदेव जी से शान्त हुई। गुरु और शिष्य की परम्परा शुरु से ही चलती आ रही है। सुश्री साध्वी कालिंदी भारती जी ने कहा कि अगर आप भी उस परमात्मा को जानना चाहते हैं तो आप को भी ऐसा ही मार्गदर्शक चाहिए। यह तो सर्वविदित है कि सूर्य प्रकाशमय तत्त्व है और चन्द्रमा भी प्रकाशमय है, किन्तु चन्द्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है। जब सूर्य सुबह प्रकाशित होता है तब उसी के ही प्रकाश से ही चन्द्रमा तपता रहता है और रात को वो ही ताप शीतल होकर शीतलता प्रदान करता है। ऐसे ही गुरु भी सूर्य के समान हैं तथा चन्द्रमा एक शिष्य के समान। गुरु रूपी सूर्य के प्रकाश में तप कर ही शिष्य दुनिया को शीतलता प्रदान करने वाला ज्ञान आगे फैलाता है। कबीर जी को प्रकाशित करने वाले सूर्य रूपी गुरु रामानंद जी थे, नरेन्द्र को विवेकानंद बनाने वाले श्रेष्ठ गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी थे, शिवा जी मराठा के अपरिमित बल के पीछे समर्थ गुरु रामदास जी की असीम शक्ति व प्रेरणा कार्यरत थी। अतः गुरु के बिना हम भी उस परमात्मा तक कदापि नहीं पहुँच सकते। यही सन्देश स्वयं प्रकृति भी हमें देती है।
इस कथा के आयोजन में मंच पर उपस्थित साधु समाज द्वारा गायन किए गए भजनों को श्रवण कर उपस्थित श्रद्धालुगण झूम उठे। प्रथम दिवस से ही कथा स्थल भक्तों की अपार संख्या के साथ खचाखच भर रहा है। पूरे पंडाल की अतुलनीय शोभा, कुशल प्रबंधन व व्यवस्था को देखकर पंडाल में बैठे प्रभु प्रेमी दंग हैं।