स्वतंत्रता दिवस विशेष: ताकि हम आज़ाद भारत में साँस ले सकें : आशुतोष महाराज

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New Delhi : प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को, हम भारतीय पूरे जोश व उल्लास से स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। यही वह तारीख है, जब सन् 1947 में अंग्रेजी हुकूमत से हम सभी को आजादी मिली थी। इतिहास की एक ऐसी उज्ज्वल सुबह, जब भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की कड़ी तपस्या रंग लाई थी। तब हर भारतीय के होंठों पर गुंजायमान था, सिर्फ एक ही तराना- ‘अब हम आजाद हैं!’पर हाँ, यह युग सत्य है कि इस आजादी को पाना आसान न था। इसके लिए स्वतंत्रता सेनानियों को शूलों से भरे लम्बे रास्तों पर नंगे पाँव चलना पड़ा था। बेइंतहां जुल्म और पीड़ा के दरिया को पूरी दिलेरी से पार करना पड़ा था। इस स्वतंत्रता के महासंग्राम में कई दिल दहला देने वाली घटनाएँ घटीं… जिनको सुनकर कभी नयन नम, तो कभी मस्तक गौरवान्वित हो उठता है। तो पढ़ते हैं, वीर-रस से ओतप्रोत भारतीय सपूत के एक ऐसे ही बलिदान को!

भारत का सूर्य पुत्र…जिसने आज़ादी का स्वप्न देखा!

सूर्य सेन बंगाल के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। खासकर चटगाँव में जो ‘ब्रिटिश विरोधी आंदोलन’ हुआ, उसके ये मुख्य नायक भी थे। 18 अप्रैल, 1930 को सूर्य सेन के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने चटगाँव में स्थित ब्रिटिश शास्त्रागार को लूट लिया था और चटगाँव कुछ दिनों के लिए अंग्रेजी शासन से मुक्त हो गया था। बंगाल भर में क्रांति की अलख सूर्य ने बड़ी तेजी से जगाई थी।इसी वजह से अंग्रेजी हुकूमत सूर्य को धर दबोचने के लिए लगातार प्रयासरत थी। पर उनसे बचने के लिए सूर्य निरन्तर अपने निवास-स्थान बदलते रहते। एक बार उन्होंने ‘नेत्र सेन’ नामक एक व्यक्ति के घर में शरण ली। सूर्य सेन के ऊपर अंग्रेजों ने 10,000 रुपये का ईनाम रखा हुआ था। इसी लालच में आकर नेत्र सेन विश्वासघात कर बैठा। उसने ब्रिटिश अधिकारियों को सूचना दे दी। इस जानकारी को प्राप्त करते ही उन्होंने सूर्य को नेत्र सेन के घर से गिरफ्तार कर लिया।सूर्य के पकड़े जाने के कुछ दिनों बाद ही एक अज्ञात व्यक्ति नेत्र सेन के घर में घुसा और ‘डा’ (बड़े चाकू) के एक ही वार से उसकी हत्या कर दी। नेत्र सेन की पत्नी ने यह सारी घटना अपनी आँखों के सामने देखी थी। पर जब पुलिस विभाग के लोग उसके घर आए, तो उसने उस हत्यारे का हुलिया व नाम बताने से बिल्कुल इन्कार कर दिया। उसने कहा- ‘मैं यह जानते हुए भी कि वह हत्यारा कौन है, आपको कुछ नहीं बताऊँगी। मेरा मन, मेरी आत्मा इस बात की कतई गवाही नहीं देती। और मुझे इस बात का कोई गम भी नहीं है। है तो बस आत्मग्लानि कि मैं इनके जैसे देशद्रोही, अधर्मी इंसान की पत्नी थी। मेरे पति भारत माता के आँचल के धब्बे थे। धन्य है वह सपूत, जिसने उसे पोंछ डाला! …मैं जानती हूँ कि अब सूर्य दादा (भाई) को फाँसी लग जाएगी। पर इस देश की आजादी के वे अमर सुर बनकर गूँजते रहेंगे। वे चटगाँव के सूर्य-पुत्र बनकर दमकेंगे… हम सबके सूर्य-दादा रहेंगे!’

कहा जाता है, फाँसी देने से पहले सूर्य सेन पर बर्बरतापूर्ण अत्याचार किया गया था। हथौड़े से उनके सारे दाँत तोड़े गए। हाथों और पाँवों के नाखूनों को एक-एक करके उखाड़ा गया। क्रूरता के मनसूबे फिर भी न थमे। अंग्रेजों ने सूर्य के सारे अंगों और जोड़ों को भी तोड़ डाला। फिर अचेत अवस्था में ही उन्हें फाँसी दे दी गई। मृत्यु के बाद उनकी देह का संस्कार तक नहीं किया गया। उनके शव को एक पिंजरे में डालकर बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया।फाँसी से एक दिन पूर्व, 11 जनवरी को, उन्होंने अपने एक मित्र को आखिरी खत में लिखा था-

‘मित्र, मौत मेरे द्वार पर दस्तक दे रही है। मेरा मन अनंत की ओर उड़ान भर रहा है। इन आनंदमयी, गंभीर और महान पलों में… मैं सोच रहा हूँ कि तुम्हारे लिए पीछे क्या छोड़कर जाऊँ!… सिर्फ एक ही वस्तु- वह है मेरा स्वप्न- मेरा स्वर्णिम स्वप्न- भारत की आजादी का स्वप्न!…’

सूर्य सेन द्वारा लिखा गया यह खत उनकी आजादी की तड़प को साफ बयां करता है। उनके जीवन में कितनी ही पीड़ाएँ आईं, यहाँ तक कि उनको अपनों का धोखा भी सहना पड़ा लेकिन फिर भी उन्होंने अपने जज्बे को कभी ठंडा नहीं होने दिया।यह क्रांतिवीर निरन्तर सूर्य के समान धधकता रहा… आजादी की गर्जना करता रहा। ताकि आप और हम आज आजाद भारत में साँस ले सकें। जय हिन्द!दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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