New Delhi News, 21 April 2021 : अभी भी महीने में कुछ दिन बचे हैं और अप्रैल-2021 का महीना भारत के लिए गेमचेंजर बन गया है। वित्तीय बाजारों में अस्थिरता बनी रही, जिससे भारतीय रुपए में 1.5% की कमजोरी देखी गईं। इस महीने में सेंसेक्स और निफ्टी भी क्रमशः 4.5 से 3.3% तक लुढ़के। इसके विपरीत यूएस डॉलर इंडेक्स लगभग 2 प्रतिशत गिर गया, जबकि एसएंडपी 500 ने इस महीने में 4 प्रतिशत से अधिक लाभ अर्जित किया। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि भारतीय इक्विटी और मुद्रा में गिरावट मुख्य रूप से घरेलू कारणों से हुई।
जाहिर तौर पर कोरोनावायरस का एक नया वैरिएंट, जिसमें तथाकथित डबल म्यूटेशन हुआ है, ने भारत में नए मामलों में सुनामी ला दी है और नंबर तेजी से बढ़ रहे हैं। अब भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रभावित देश बन चुका है। पिछले सप्ताहांत में देशभर में कुल 260,813 नए मामले सामने आए, जिन्हें मिलाकर कुल संक्रमितों की संख्या बढ़कर 14.78 मिलियन हो गई। डब्ल्यूएचओ के अनुसार पांच राज्यों महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश ने नए केसेस में कुल केसेस का 55% से अधिक का योगदान दिया। प्रकोप का यह विनाशकारी विस्तार देश के अधिकांश राज्यों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे, श्मशान और कब्रिस्तानों पर भारी पड़ रहा है। इसके कारण तकरीबन सभी राज्यों में सख्त प्रतिबंध और लॉकडाउन लगाए गए हैं, जिसकी वजह से निवेशकों ने भारी मात्रा में बिकवाली की। रिपोर्ट के अनुसार, एफपीआई ने अप्रैल में अब तक भारतीय बाजारों से कुल 4,615 करोड़ रुपए निकाल लिए हैं।
उपरोक्त कारण के अलावा, बाजारों को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण फेक्टर आरबीआई का पॉलिसी स्टेटमेंट था। समिति ने रेपो दर को 4 प्रतिशत पर कायम रखने का फैसला किया और विकास को कायम बनाए रखने के लिए आवश्यक ‘नीतिगत’ रुख बरकरार रखा। केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में 1 लाख करोड़ रुपए तक के बॉन्ड्स की खरीद का खर्च उठाने और अर्थव्यवस्था की रिकवरी के लिए सॉवरेन डेट मार्केट के जरिए राहत देने का भी वादा किया। पॉलिसी की बैठक से एक दिन पहले यानी 6 अप्रैल 2021 को 10-वर्षीय भारतीय बेंचमार्क यील्ड 6.12 प्रतिशत पर कारोबार कर रही थी। आरबीआई ने पॉलिसी पर बैठक के बाद ऋण खरीद का स्पष्ट आश्वासन दिया, जिससे 10-वर्षीय बेंचमार्क यील्ड दो दिनों के भीतर 6.01 प्रतिशत तक गिर गई। इसके विपरीत, भारतीय रुपया 75.00 के स्तर को पार करते हुए तेजी से कमजोर हुआ क्योंकि आरबीआई द्वारा किए गए कटाव का लाभ तुर्की, रूस और ब्राजील जैसे अन्य उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंकों ने उठाया। बहुत से व्यापारी रुपए में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे थे, उन्होंने बहुत सारे कैरी ट्रेड्स किए थे, लेकिन पॉलिसी जारी करने के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इनमें से कुछ पोजिशन छोड़ी दी, जिससे मुद्रा में गिरावट हो गई।
उपरोक्त सभी फेक्टरों ने स्थानीय इकाई को अप्रैल-21 में एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन वाली मुद्रा में से एक बना दिया है। इस बात की संभावना है कि यह कमजोरी कुछ और समय जारी रहेगी और मुद्रा जल्द ही निकट अवधि में 76 के स्तर को पार कर जाएगी। 1 मई से 18 वर्ष से ऊपर के सभी नागरिकों को टीकाकरण प्रदान करके बढ़ते कोरोनावायरस मामलों को नियंत्रित करने का भारत सरकार का प्रयास कुछ प्रारंभिक राहत प्रदान कर सकता है। लेकिन किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस प्रक्रिया से तुरंत मामले नियंत्रित नहीं होंगे। महामारी को नियंत्रित करने में सप्ताह और महीने लगेंगे। इसके अलावा, नए प्रतिबंध और लॉकडाउन ने पहले से ही आर्थिक गतिविधियों को कमजोर कर दिया है और इससे और अधिक बहिर्वाह होगा और यह खराब होता जाएगा। दूसरी ओर, आरबीआई, सरकारी बैंकों के माध्यम से लगातार हस्तक्षेप करके रुपए में इस भारी अस्थिरता को दबाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उनकी अपनी सीमाएं हैं।
कई शीर्ष बैंक और ब्रोकरेज हाउस वित्त वर्ष 22 के लिए भारत के जीडीपी पूर्वानुमानों को डाउनग्रेड कर रहे हैं, ऐसे में देश के लिए यह महत्वपूर्ण है कि आगे के संशोधनों से बचने के लिए कोविड-19 मामलों को काबू में लाया