कबीर दास जयंती विशेष: जानिए संत कबीर दास जी ने समाज को क्या सन्देश दिया : आशुतोष महाराज

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New Delhi News, 14 June 2022 : अध्यात्म, धर्म, ईश्वर, ज्ञान आदिविषयों पर गूढ़ व सारगर्भितअनेक ग्रंथों, शास्त्रों, वेद-उपनिषदों कीरचना हुई। पर इनमें प्रयुक्त भाषा व शैलीअति कठिन, परिष्कृत और विद्वत थी।इसलिए हमारेसंत-महापुरुषों ने इनग्रंथों के गूढ़ रहस्योंको जन साधारण तकसरल शैली में पहुँचानेका बीड़ा उठाया।ऐसे ही एक प्रसिद्धमध्यकालीन संत हुए- कबीर साहब।इनकी शैली काफी सरल, सुबोध, स्पष्टऔर सुगम थी। आज केलेखक, पत्रकार,उपदेशक जिस वैचारिक स्वातंत्र्य केसमर्थक हैं, उसके अग्रदूत कबीर साहबही थे।उनकी वाणी में अद्भुत ओजथा, एक ऐसी प्रखर प्रज्वलता थी किलोग उससे अनछुए न रह सके। उन्होंने अत्यन्त व्यावहारिकउपमाएँ व उदाहरण देकर शास्त्रीय विषयों को साधारण जनताके समक्ष रखा। इसीलिए शिक्षित-अशिक्षित, युवा-प्रौढ़, सभीजन इन आध्यात्मिक रहस्यों को हृदयंगम कर सके। आइए,हम भी आज कबीर साहब के रत्नकोष से अपने लिए कुछरत्न चुनें। पंछि खोज मीन को मारग। कहैं कबीर दोउ भारी।अपरमपार पार परसोतिम। मूरति की बलिहारी॥
अर्थात्‌ प्रकृति से परे आत्मा है,परमात्मा का स्वरूप है। उसस्वरूप पर मैं बलिहार जाता हूँ। उसे पाने के कई मार्गों मेंसे, दो मार्ग हैं-विहंगम और मीन मार्ग। ये दोनों मार्ग हरअन्य मार्ग से श्रेष्ठ हैं।

मीन मार्ग- मीन मार्ग काअनुसरण करने वाले साधकों की सुरत प्रकृति-प्रवाहसे उलट जाती है। यूँतो साधारणतया हम संसारी मनुष्यों की सुरतआज्ञाचक्र से मूलाधारचक्र की ओर चलती है। पर जब हमें पूर्ण सतगुरु से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हो जाती है, तो हमारी सुरतकी दिशा उलट जातीहै। हमारी प्राणधारा काप्रवाह मूलाधार सेआज्ञाचक्र की तरफहो जाता है। यानीहमऊर्ध्वमुखीयात्रा करते हैं। हम प्रकृति से परे परमात्म-स्वरूपकी ओर अग्रसर होते हैं। फिर एक दिन परमात्मा से अपनेसहस्र चक्र में इकमिक हो जाते हैं।

विहंग मार्ग- विहंग मार्ग के साधक शरीर, मन, बुद्धि आदिप्राकृतिकआधारों को त्यागकर ऊँची उड़ान भरते हैं। पूर्ण सद्गुरुसे ब्रह्मज्ञान पाने के बाद, साधकों कीचेतना गगनमंडलयानी शरीर में ही स्थित आकाशीय तत्त्व में विहार करतीहै। परमात्म-स्वरूप का दर्शनकर निहाल होती है।सद्गुरु कबीर साहब समझाते हैं कि ब्रह्मज्ञानी साधकों द्वारमीन या विहंगम मार्गका अनुसरण करपरमात्म-दर्शनकरना ही श्रेष्ठ है।ब्रह्मज्ञान हृदय में ‘ब्रह्म’ के प्रकाश-स्वरूपकाप्रत्यक्ष दर्शन करना है। हर युग में पूर्ण गुरुओं नेजिज्ञासुओं को इसी ज्ञान में दीक्षित किया है। इस प्रक्रियामें वे शिष्य की दिव्य दृष्टि खोलकर उसे अंतर्मुखी बनादेते हैं। शिष्य अपने अंतर्जगत में ही अलौकिक प्रकाशका दर्शन और अनेक दिव्य-अनुभूतियाँ प्राप्त करता है।वर्तमान में, दिव्य ज्योतिजाग्रति संस्थान भी गुरुदेवश्री आशुतोष महाराज जी की कृपा से समाज को इसीब्रह्मज्ञानसे दीक्षितकर रहा है। नितांत निःशुल्क रूप से!आप भी यदि इस महान ज्ञान को पाने के इच्छुक हैं, तोसंस्थानके किसी भी नज़दीकी आश्रम में सम्पर्क करें।दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को कबीरदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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