New Delhi News, 04 Oct 2021: भारत में शक्तिपूजन की कई विद्याएँ हैं, जो श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था केआधार पर निर्मित की हैं। इनमें से एक है, आदिशक्ति के पूजन-दिवसों यानीनवरात्रों में किए जाने वाले व्रत! ‘व्रत’ का सामान्य अर्थ है- संकल्प यादृढ़ निश्चय। नवरात्रों के नौ दिनों में व्रत का मतलब है- तामसिक-राजसिक कोत्यागकर सात्विक आहार-विहार-व्यवहार अपनाकर आदि-शक्ति की आराधना का संकल्प।चूँकि शक्तिपूजन का अवसर वर्ष में दो बार आता है, इसलिए यह सोचने का विषयहै कि क्यों इन्हीं दिनों में अन्न त्याग कर फलाहार या अन्य सात्विक खाद्यपदार्थों को ग्रहण किया जाता है? पहली नवरात्रि चैत्र मास में तथा दूसरीअश्विन मास में आती है। ये दोनों वे बेलाएँ हैं, जब दो ऋतुओं का संधिकालहोता है। ऋतुओं केसंधिकाल में बीमारियाँ होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। यही कारण है किसंधिकाल के दौरान संयमपूर्वक व्रतों को अपनाया जाए, तो इससे बहुत सीबीमारियों से बचाव होता है। यह स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत जरूरी है।
आइए, हम नवरात्रों के व्रत से होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में जानें।
क) शरीर का विषहरण-नवरात्रों में निराहार रहने या फलाहार करने सेशरीर के विषैले तत्त्व बाहर निकल आते हैं और पाचनतंत्र को आराम मिलता है।
ख) बीमारियों से बचाव-कई ऐसे रोग हैं, जिनसे व्रतों में सहज ही रक्षा हो जाती है। जैसे मोटापे परनियंत्रण, दिल की बीमारियों व कैंसर से बचाव, क्योंकि फलाहार, फलों का रसएवं बिना तला-भुना भोजन विष व वसा मुक्त होता है।
ग) मानसिक तनाव पर नियंत्रण-जब व्रतों द्वारा विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं, तोलसिका प्रणाली दुरुस्त होती है। रक्त संचार बेहतर हो जाता है। हृदय कीकार्य प्रणाली में सुधार होता है। इससे मानसिक शक्ति बढ़ती है। तनाव कम होनेलगता है। माने हल्के भोजन से मन भी हल्का बना रहता है।
घ) री-हाइड्रेशन-आंतरिक अंगों का सिंचन-व्रत में खाना कम व पानी ज्यादा पीने से शरीर के भीतरी अंगों का सूखापन दूरहोता है। अंग-प्रत्यंग व त्वचा री-हाइड्रेट यानी उनकी सिंचाई हो जाती है।पाचन तंत्र भी बलिष्ठ होता है।
ङ) शरीर और मन का सौन्दर्यीकरण-नौ दिनों के व्रत में दिनचर्या व खानपान में इतना बदलाव आता है कि उसका असरआपकी त्वचा पर भी पड़ता है। विशेषकर फलों व मेवों के सेवन से। इसका सीधा सम्बन्ध हमारे शरीर में घटती रासायनिक प्रक्रिया (Biochemical Process) से जुड़ता है। इसके अलावा तरल पदार्थों व पानी की अधिकता से औरआँतों के साफ रहने से भी शरीर और त्वचा में सहज ही कांति आती है।शरीर के शुद्धिकरण से मन से उत्पन्न विचारों में भी पवित्रता आतीहै और बुद्धि का भी विकास होता है। सात्विकआहार से सात्विक प्रवृत्ति विकसित होती है, जिससे शुभ विचारों व संकल्पोंकी ओर मन अग्रसर होता है।
उपयुक्त विश्लेषण से हमें पता चलता है कि नवरात्रों एवं अन्य पर्वों मेंव्रत रखना कैसे शारीरिक व मानसिक स्तर पर लाभ प्रदान करता है। इसलिएआप भी अपनी सेहत के अनुसार नवरात्रों में व्रत कर सकते हैं। साथ ही, पूर्ण सतगुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर, ईश्वर की ध्यान-साधनाकरें, ताकि महा-शक्ति की इन विशेषरात्रियों में हमारा आत्मिक उत्थान भी हो सके, हम देवी माँ की शास्वत भक्ति को प्राप्त कर अपने जीवन को सफ़ल बना सके,जो इन पर्वों का मुख्यलक्ष्य है। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।