भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को ब्रह्मज्ञान प्रदान कर शाश्वत भक्ति प्रदान की थी : आशुतोष महाराज

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New Delhi, 08 Aug 2020 : ‘हाथी-घोड़ा-पालकी! जय कन्हैय्या लाल की!’हवाओं में यह नटखट सी गूँज लेकर इसमाह जन्माष्टमी आई है। कन्हैय्या लाल का यह जन्मोत्सव मनों के भीतर मधुर रस घोल देता है। कान्हा याद आता है, तो गोप-गोपियाँ याद आती हैं। गोप-गोपियों का स्मरण होते ही सरसता अपने आप आती है। परन्तु क्या जन्माष्टमी का पर्व केवल रसभीनी व अलमस्ती भरी लीलाओं का समुच्चय है? गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान) बताया करते हैं कि लीलाधारी की सभी लीलाओं में परम कोटि का तत्त्वज्ञान छिपा है।

निःसन्देह, गोप-गोपियों और श्री कृष्ण का प्रेम संसार के समस्त सम्बन्धों से बहुत ऊँचा, शुद्ध, परम पुनीत एवं पारलौकिक था। श्री कृष्ण गोप-गोपियों के केवल प्राणसखा या प्रियतम ही नहीं थे, अपितु वे उन सभी के आध्यात्मिक गुरु भी थे। उन्होंने ब्रज की गोपिकाओं को शाश्वत ब्रह्मज्ञान प्रदान किया था। श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कन्ध में इस तथ्य का सुस्पष्ट उल्लेख है-अध्यात्मशिक्षया गोप्य एवं कृष्णेन शिक्षिता:। तदनुस्मरणध्वस्तजीवकोशास्तमध्यगन्‌।।- गोपियों को भगवान श्री कृष्ण ने अध्यात्म शिक्षाअर्थात्‌ ब्रह्मज्ञान प्रदान किया। उन्हें उनके भीतर हीसब कुछ दिखाया। गोपियाँ साधना-सुमिरन का अभ्यासकरते-करते ब्रह्म में लीन हो गईं। जितने भी जीव-कोषहैं, स्थूल,सूक्ष्म व कारण, उन सबसे ऊपर उठकर वेकृष्णमयी हो गईं।

केवल गोपियाँ ही नहीं, प्रभु कृष्ण ने ब्रज केगोप-ग्वालों को भी यह ब्रह्मज्ञान प्रदान किया था।दशमस्कन्ध में शुकदेव जी राजा परीक्षित को बताते हुए कहते हैं किभगवान श्री कृष्ण ने गोपों को उनके अंतस् मेंब्रह्म का साक्षात्कार कराया, जिसका स्वरूप सत्य,ज्ञान, अनन्त, सनातन तथा ज्योतिस्वरूप है। प्रभुउन्हें ब्रह्मस्वरूप (आंतरिक) ब्रह्मलोक में ले गए।फिर वहाँ से निकाल कर उन्हें माया रूप अन्धकारसे अतीत अपने परमधाम का दर्शन कराया, जिसेदेखकर गोपजन आनंदमग्न हो गए। यहविवरणश्री कृष्ण के जगद्गुरु पक्ष को स्पष्टतः दर्शाता है।अतः भगवान श्री कृष्ण ने केवल कुरुभूमि परअर्जुन को ही परम ज्ञान- ‘ब्रह्मज्ञान’नहीं दिया;अपितु गोकुल व वृंदावन में, बाल-लीलाओं केबीच भी, इसी परम ज्ञान की दीक्षा दी। वास्तव में,अवतारी युगपुरुषों के अवतरण का यही मुख्य ध्येयहुआ करता है। शेष सभी लीलाएँ इस मुख्य लक्ष्यकी पूर्ति में सहायक हुआ करती हैं।

इसलिए पाठकगणों, श्री कृष्णजन्माष्टमी के इस पावनपर्व पर आप सभी भक्तजनोंके लिए यही संदेशहै कि आप कृष्ण-कन्हैय्या की बाहरी झाँकियोंको देखने तक ही सीमित न रहें। प्रभु का गुणगानमात्र बाहरी इन्द्रियों से ही न सुनें। अपितु इस पर्वको सही मायनों में सार्थक करने हेतु इस अवतारीयुगपुरुष को ब्रह्मज्ञान द्वारा तत्त्व से जानने की चेष्टाकरें। एक तत्त्वज्ञानी गुरु ही आपको ब्रह्मज्ञान प्रदानकर सकते हैं।आप सभी को दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थानकी ओर सेश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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