February 21, 2025

महाशिवरात्रि विशेष: शिवत्व की करें आंतरिक साधना : आशुतोष महाराज

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Shri Ashutosh Maharaj Ji (1)
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New Delhi News, 24 Feb 2022 : महाशिवरात्रि- फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी की अंधकारमयी रात! इस माह यह महारात्रि फिर से आएगी। मनीषी बताते हैं कि यह रात साधारण नहीं, विशेषातिविशेष है। यही कारण है कि हर साल इस बेला पर भारतीय जनता में भक्ति-भावनाओं का ज्वार उमड़ उठता है। अर्चना-आराधना के स्वर गुँजायमान होते हैं। शिवालय धूप-नैवेद्य से सुगंधित हो जाते हैं। शिव उपासना का यह ढंग- ‘कौलाचार’कहलाता है। यह बहिर्पूजा होती है। इसमें बाहरी साधनों से महादेव की बाहरी मूरत या लिंग का बाहरी पूजन किया जाता है। महापुरुषों के अनुसार मात्र यह पूजन करना पर्याप्त नहीं है। यह तो उपासना की प्रथम सीढ़ी है। भगवान शिव का वास्तविक पूजन तो अंतर्जगत में सम्पन्न होता है, जिसे शैव ग्रन्थों में ‘समयाचार’कहा जाता है। इसमें ‘आत्मा (समय)’‘आचार’ अर्थात्‌ आराधना करती है। यह आराधना भीतर सहस्रदल कमल में विराजमान सदाशिव की पारलौकिक साधनासे होती है।
वास्तव में, महाशिवरात्रि का पर्व हमें हर वर्ष इसी ‘आंतरिक पूजन’की प्रेरणा देने आता है। महाशिवरात्रि हैही हमारे अंतर्जगत का आह्वान! इसका अमावस्या से एक रात पूर्व निश्चित होना कोई साधारण संयोगनहीं है। अमावस्या का सन्धिविच्छेद करो- ‘अमा+वस्या’ अर्थात्‌ एक साथ वास करना। इस अंधकारमय रात्रि की यह विशेषता है कि इसमें सूर्य और चन्द्र, एक दूसरे में वास करते हैं। यह अंतःस्थित शिव औरजीव के मिलन की प्रतीक है। इसलिए शिवरात्रि संकेत देती है कि हम भी अपने भीतरी शिवत्व में वासकरें। हमारी आत्मा उससे एकत्व स्थापित करे।

प्रश्न है कि अपने भीतर स्थित शिवत्व का साक्षात्कार किस प्रकार किया जाए! इसकी एक मात्रयुक्त है- ब्रह्मज्ञान! ब्रह्मज्ञान प्रदान करना केवल एक पूर्ण गुरु के सामर्थ्य में ही है। एक तत्त्वदर्शी सद्गुरु जब ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हैं, तो हमें अपने अंतर्जगत में भगवान शिव के ज्योतिर्मय स्वरूपका साक्षात्‌ दर्शन प्राप्त होता है। दरअसल, ब्रह्मज्ञान द्वारा न केवल शिव का प्रकाश-तत्त्व प्रकट होता है,बल्कि उसका दर्शन करने के लिए साधक का ‘ज्ञाननेत्र’भी जागृत हो जाता है। ‘ज्ञाननेत्र’ को आप ‘शिवनेत्र’, ‘तृतीय नेत्र’, ‘तीसरी आँख’, ‘दिव्य दृष्टि’ आदि किसी भी नाम से सम्बोधित कर सकते हैं।यह ज्ञाननेत्र भगवान शिव के मस्तक पर स्थित तीसरे नेत्र की तरह हर साधक के माथे पर होता है,लेकिन सूक्ष्म रूप में। ब्रह्मज्ञान द्वारा इस नेत्र के खुलते ही भगवान शिव का प्रत्यक्ष दर्शन भीतर प्राप्तहोता है। महादेव के ‘ललाटाक्ष:’, ‘भालनेत्र:’, ‘त्रयम्बक:’आदि नाम भी हमें ब्रह्मज्ञान द्वारा इसीज्ञाननेत्र को प्राप्त करने का संदेश देते हैं।दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान कीओर से सभी पाठकों को महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई। आप ‘शवत्व’ नहीं, ‘शिवत्व’की ओर यात्रा करें- यही हमारी शुभकामना है।

 

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