मनुष्य को सदैव ही अपने कार्यों, विचारों एवं दृष्टिकोण के प्रति सजग रहना चाहिए

0
1429
Spread the love
Spread the love

New Delhi News, 02 Dec 2019 : आने वाली चुनौतियों से लड़ने का हमारा दृष्टिकोण यह कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जो कि एक सफल एवं अर्थ पूर्ण जीवन जीने का मार्ग निर्धारित करते हैं। मनुष्यकोसदैवहीअपनेकार्यों, विचारों एवं दृष्टिकोण के प्रति सजग रहना चाहिए एवं जीवन में आने वाले संघर्षों के प्रति सकरात्मक दृष्टिकोण को ही अपनाना चाहिए।किन्तु आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में हम इन गुणों को विकसित करने में अक्सर चूक जाते हैं। भक्त श्रद्धालुगणों में इसी भावना के पुनःसंचार हेतु दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (डीजेजेएस) द्वारा 1 दिसंबर, 2019 को दिल्ली स्तिथ दिव्य धाम आश्रम में मासिक सत्संग समागम का आयोजन किया गया। दैवीय ऊर्जा से स्पंदित इस कार्यक्रम में अनेक भक्त श्रद्धालुगण सम्मिलित हुए। कार्यक्रम की दिव्यता ने भक्तों से भरे पंडाल में दिव्यता का संचार किया। भक्तिभाव से ओतप्रोत भजनों की दिव्यता व आंतरिक परमानंद से हर ओर भक्ति की निर्झरी बह उठी।गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज के समर्पित शिष्य एवं शिष्याओं ने अपने विचारों के माध्यम से समझाया कि यह आवश्यक नहीं कि हम कितने वर्षों तक जीवित रहे अपितु आवश्यक यह है कि हमने अपना जीवन किस प्रकार जिया। अर्थात जीवन जीने के वर्षों से अधिक, जीवन को जीने की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। भौतिक संसाधन हमें क्षणिक सुख अवश्य प्रदान कर सकते हैं, किन्तु ईश्वर मिलन ही हमें वास्तविक आनंद प्रदान कर हमारी आत्मा को पोषित कर सकता है। इस सन्दर्भ में योगानंद परमहंस ने बहुत सुन्दर कहा है कि आज मानव, शान्ति की तलाश में उसतत्व को खोज रहा है जो उसे शाश्वत सुख एवं शांति प्रदान कर पाए। वह भौतिक संसाधनों में आनंद ढूंढता है, किन्तु जो लोग उस तत्व की खोज में परमात्मा तक पहुंच चुके हैं उनकी यह खोज समाप्त हो चुकी है, क्योंकि पमात्मा से मिलन के अतिरिक्त आनंद का कोई अन्यस्त्रोत है ही नहीं। जिस प्रकार एक व्यक्ति नेत्रों के माध्यम से स्वयं को निहार अपने रूप एवं उपस्थिति को निखारकर आकर्षित बना सकता है, ठीक उसी प्रकार भीतर के विकारों को आतंरिक दृष्टि द्वारा देखकर उन्हें सुधारा जा सकता है। परिवर्तन सदैव स्वयं से आरम्भ होता है, हम कभी किसी और को नहीं बदल सकते। परमात्मा की अनुभूति एवं दृढ संकल्प ही आतंरिक परिवर्तन की कुंजी है। मनुष्य जब अपने अंतसमेंस्तिथ शक्तियों के महान पुंज परमात्मा से जुड़ता है तब उसका विवेक जाग्रत होता है और वह ईर्ष्या, द्वेष, लालच, घृणा, जैसे विकारों एवं क्षुद्र विचारों से मुक्त हो पाता है।एक शिष्य को स्वयं को अपने सतगुरु को समर्पित कर बाकि सब उन्हीं पर छोड़ देना चाहिए। उनकी शक्ति असीमित है एवं समय से परे है। उनका सानिध्य एवं मार्ग दर्शन शिष्य का निर्माण करते हैं। जिस प्रकार सूर्य के नभ पर उदित होने से सभी पुष्प स्वतः ही खिल उठते है, ठीक उसी प्रकार एक शिष्य के जीवन में उसके गुरु की उपस्थिति से भी शिष्य का जीवन खिल उठता है। गुरु एवं शिष्य का सम्बन्ध शाश्वत होता है जो इस जीवन के बाद भी चलता है। गुरु की प्रत्येक लीला में शिष्य का कल्याण एवं उसका निर्माण ही छिपा रहता है। गुरु कभी अपने शिष्य को ऐसी गलती नहीं करने देते जो कि शिष्य के लिए नर्क के द्वार खोले किन्तु, यदि शिष्य द्वारा ऐसी कोई गलती होती है गुरु उसे सुधारने के सभी अवसर प्रदान करते हैं। एक शिष्य के लिए भी यह परमावश्यक है कि वह सदैव अपने गुरु की आज्ञा में रहे।आज हम सभी को मन से आत्मा की इस यात्रा को तय करना है। निरंतर अभ्यास एवं त्याग से ही यह संभव है। मधुर भजन संगीत एवं ओजस्वी विचारों ने इस कार्यक्रम को नए आयाम प्रदान किये। मंच से प्रदान किये गए प्रत्येक विचार ने श्रद्धालुओं के भीतर भक्ति एवं गुरु प्रेम रुपी चिंगारी को सुलगाने का कार्य किया एवं सभी हृदयों में एक अमिट छाप छोड़ी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here