New Delhi, 13 May 2020 : आजकल हममें से अधिकतर लोग विज्ञान की भाषा पसंद करते हैं।वैज्ञानिक कसौटी पर तौले बिना न तो हमें कोई बात जंचती है; नही उसकी सार्थकता समझ में आती है। इसीलिए हम आपको आजब्रह्मज्ञान की ध्यान-साधना के महत्त्व को भी इसी लैंस से दिखाते हैं।
वैज्ञानिकों ने अपने शोध द्वारा यह प्रमाणित किया है-
• जब साधना के दौरान रीढ़ की हड्डी सीधी रखी जाती है, तो माँसपेशीयगतिविधियों में हमारी बहुत कम, बल्कि न के बराबर ऊर्जा खर्च होती है!इससे कॉर्बन-डाइऑक्साइड कम मात्रा में बनती है, जो कि हमारे लिएनिःसंदेह लाभकारी है।
• हमारे फेफड़ों की गति कॉर्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा पर निर्भर करती है।जब कॉर्बन-डाइऑक्साइड का स्तर घट जाता है, तो फेफड़ों की गतिविधिभी धीमी पड़ जाती है। इसी के साथ हृदय की गति भी मद्धम हो जाती है।कारण, हृदय फेफड़ों के साथ सामंजस्य बिठा कर काम करता है। हृदय औरफेफड़ों की गति धीमी होने का मतलब है- साँसों की गति में गिरावट यानीलम्बी और गहरी श्वाँसें- जो हर प्रकार से हमारे लिए लाभदायक हैं।
शारीरिक फायदों के साथ-साथ साधना द्वार मानसिक और बौद्धिक स्तरके भी लाभ शामिल हैं। सन् 2011 में, यूनिवर्सिटी ऑफ मैसेच्यूस्ट्स मेडिकलस्कूल ने एक शोध किया। इसके अंतर्गत 16 लोग चुने गए, जिन्होंने 8 हफ्तोंतक हर रोज़30 मिनट ध्यान किया। जब इनके दिमाग के MRIस्कैन देखेगए, तो उनमें एक कमाल का परिवर्तन देखने को मिला। इन सबमें हिप्पोकैम्पस(दिमाग का वह हिस्सा जो याद करने की क्षमता, एकाग्रता इत्यादि के लिए ज़िम्मेदार होता है) के ग्रे मैटर की मात्रा बढ़ी हुई पाई गई। यहीं एमिग्डला (जोडर, तनाव, बेचैनी जैसे कारणों का केन्द्र माना जाता है) के ग्रे मैटर की मात्रा मेंगिरावट देखी गई। इसी तरह जानी-मानी येल यूनिवर्सिटी ने अनुसंधानों द्वारा यहप्रमाणित किया कि ध्यान द्वारा व्यक्ति की एकाग्रता में वृद्धि होती है।
इन सब पहलुओं के अतिरिक्त साधना का एक और लाभ भी पाया गया है,जो हम जैसे तार्किक लोगों की सोच को ज़रूर लुभाएगा। वह यह कि ध्यानद्वारा लोगों के डॉक्टरों के पास लगने वाले चक्करों में भारी कमी आती है।पाया गया है कि ध्यान करने वालों को डॉक्टरों के पास ध्यान न करने वालों केमुकाबले 50 प्रतिशत कम जाना पड़ता है। डॉक्टरों के पास कम चक्कर लगनेका असर सीधा-सीधा आपकी जेब और स्वास्थ्य से जुड़ा है। जी हाँ, ध्यान करनेवाले हज़ारों रुपये प्रतिवर्ष बचा लेते हैं- जो अन्यथा उनकी जेब से निकलकरडॉक्टरों की जेबों में चले जाया करते थे।इतने शोध और प्रमाण इस बात को समझने के लिए पर्याप्त हैं कि हमेंध्यान-साधना ज़रूर करनी चाहिए।