February 22, 2025

ध्यान मन की नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित व समाप्त करने का एकमात्र साधन

0
102
Spread the love

New Delhi News, 02 March 2020 : भक्तों में शिष्यत्व गुणों को भरने हेतुदिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिव्य धाम आश्रम, दिल्ली में मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम भक्तों का भक्ति पथ पर मार्गदर्शन करते हैं। गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में संस्थान समाज में आध्यात्मिक क्रांति की गहनता का अनुभव करवाने के लिए विश्व भर में विश्व शांति स्थापना हेतु निरंतर कार्यरत है। श्रद्धा और समर्पण भाव से गाए गए भक्तिमय भजनों की श्रृंखला ने दिव्य स्वरों का सृजन किया, जिसके द्वारा वहां उपस्थित श्रद्धालुगण मंत्रमुग्ध हो गए व उन्होंने अपार सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव भी किया। विद्वत संत समाज ने गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य विचारों को प्रेरक प्रवचनों के माध्यम से भक्तों के समक्ष रखा।

हमारा मन एक महासागर की तरह है जिसमेनिरंतर विचारों की अटूट लहरें उठती व गिरती रहती है। मन ही मानव के उत्थान व पतन का कारण है। यदि मन नियंत्रित है तो यह बारहमासी आनंद और स्वर्ग का धाम है। जिसके द्वारा मानव व समाज सुख, शांति व आनंद के सम्राज्य में प्रवेश कर सकता है। वर्तमान में मन, माया में लीन हो पृथ्वी पर कलह, हिंसा और अत्याचार का कारण बन गया है। मन में आरोपित नकारात्मकता के बीज संसार के परिवेश में सहजता से पनप जाते है इसलिए समाज में हर ओर नकारात्मकता व्याप्त है। दूसरी ओर, पूर्ण गुरु मानव के अन्तःकरण में ब्रह्मज्ञान का बीज आरोपित करते हैं, जो शाश्वत सकारात्मकता का स्रोत है। ब्रह्मज्ञान द्वारा प्राप्तशाश्वत नाम आत्मिक उत्थान का आधार बनता करता है। ब्रह्मज्ञान द्वारा मन को नियंत्रित करने हेतु यही एकमात्र सटीक मार्ग है।

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्यों नेप्रवचनों के माध्यम से समझाया कि गलत प्रवृत्ति और आसुरी प्रवृतियों के प्रभाव के कारण मानव बार-बार गलती करते हैं लेकिन पवित्र नाम रूपी तलवार और आंतरिक प्रकाश के साथ आध्यात्मिक आकांक्षी अपने विचारों और मानसिक पूर्वाग्रहों के दायरे से मुक्त हो जागृत चेतना की ओर बढ़ने लगता है। “सुमिरन” यानी प्रत्येक सांस के साथ पवित्र नाम से जुड़ा होना, मन की नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित व समाप्त करने का एकमात्र मार्ग है। हमारे सभी कार्यों और ऊर्जाओं को पवित्र नाम के स्मरण की ओर उन्मुख होना चाहिए और मन को आदि स्पंदन में लीन रहना चाहिए। इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए उपदेशकों ने इतिहास से विभिन्न भक्तों व साधकों के उदाहरणों को रखा। दिव्य ज्ञान से विभूषित भक्त हनुमान को कई वर्षों तक भगवान श्री राम से दूर रहना पड़ा था और उस समय उन्होंने केवल ध्यान किया और पवित्र नाम में इतने डूबे कि वे प्रकृति में हर कण मेंभगवान का प्रतिरूप ही देखते थे। जब वह भगवान राम की सेना में शामिल हुए, तो उनके जीवन का लक्ष्य मात्र तन को भगवान राम की सेवा में लगाए रखना व मन को सदैव प्रभु नाम में निमग्न रखना ही था।

वे मानव बुद्धिमान हैं जो प्रबुद्ध लोगों के संदेश को समझते हैं और उनके लक्ष्य में सहयोगी बन जाते है। इस प्रकार उनकी आत्मा दिव्य संग के अमृत आनंद से पोषित हो सर्वोच्च भाग्यशाली बन जाती है। कार्यक्रम में उपस्थित प्रत्येक आत्मा भक्ति से समृद्ध हुई और आध्यात्मिक उत्थान हेतु सामूहिक ध्यान और प्रार्थना द्वारा कार्यक्रम का समापन किया गया।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *