उचित साधना नियमित करने पर आपातकाल में दैवी सहायता मिलने से हमारी रक्षा होगी

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New Delhi News, 14 Jan 2019 : प्रत्येक कुछ महीनों के अंतराल से विश्‍व में कहीं-न-कहीं प्राकृतिक आपदा का विस्फोट होता दिखाई देता है । केरल में आई भीषण बाढ तथा कैलिफोर्निया, अमेरिका के जंगलों में लगी भीषण आग, ये निकट भूतकाल की घटनाओं  के दो उदाहरण हैं। जलवायु में अनिष्टकारी परिवर्तन का कारण स्वयं मानव ही है, यह वैज्ञानिकों का मत है। परंतु, यदि मानव उचित साधना आरंभ करेगा और उसे नियमित बढाता रहेगा, तो उसमें तथा आसपास के वातावरण में भी सात्त्विकता बढेगी। तब, वातावरण में अनिष्ट परिवर्तन होने पर भी साधना करनेवालों को आगामी आपातकाल में दैवी सहायता मिलेगी, जिससे उनकी रक्षा होगी, यह विचार महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की संदीप कौर मुंजाल ने शोधनिबंध का वाचन करते समय व्यक्त किया। उन्होंने ‘जलवायु परिवर्तन और उस पर उपाय के विषय में आध्यात्मिक दृष्टिकोण’, के विषय में शोधनिबंध प्रस्तुत किया । 11 से 13 जनवरी 2019 की अवधि में सिलीगुडी, बंगाल में हुए ‘इण्टरनेशनल एण्ड इण्टरडिसिप्लिनरी कॉन्फरेन्स – इनवायरन्मेंट, पीस एण्ड स्पिरिच्युएलिटी’ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के पहले दिन यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया गया। ‘दी इंस्टिट्यूट ऑफ क्रॉस कल्चरल स्टडीज एंड एकॅडमिक एक्सेंज’ एवं ‘द सोसायटी फॉर इंडियन फिलॉसफी एंड रिलीजन’, ये इस परिषद के आयोजक थे । इस शोधनिबंध के लेखक परात्पर गुरु डॉ. आठवले तथा सहलेखक श्रीमती मुंजाल एवं श्री. शॉन क्लार्क हैं।
श्रीमती मुंजाल ने कहा, ‘‘किसी भी घटना की मूलभूत कारणमीमांसा का अध्ययन करते हुए उसका आध्यात्मिक स्तर पर भी अभ्यास होना आवश्यक होता है। जब हवामान में स्वाभाविक अपेक्षा के विपरीत परिवर्तन होते हुए पाए जाते हैं, तब उसके पीछे निश्‍चितरूप से आध्यात्मिक कारण होता है। पृथ्वी पर की सात्त्विकता कम होने पर और तामसिकता की वृद्धि होने पर मानव की अधोगति होती है और पृथ्वी पर साधना करनेवालों की कुल संख्या कम होती है। मानव के स्वभावदोष एवं अहं का प्रमाण बढकर उसका पर्यावरण की अक्षम्य उपेक्षा होती है। संक्षेप में, अधर्म में वृद्धि होती है। सूक्ष्म की शक्तिमान अनिष्ट शक्तियां, नष्ट होते पर्यावरण का अपलाभ लेकर तमोगुण बढाता हैं, इसके साथ ही मानव पर प्रतिकूल परिणाम करती हैं। जिसप्रकार धूल एवं धुएं का स्थूल स्तर पर प्रदूषण होता है, इसलिए हम प्रतिदिन स्वच्छता करते हैं, उसीप्रकार अधर्माचरण के कारण होनेवाले रज-तम में वृद्धि, यह सूक्ष्म स्तर पर प्रदूषण हैं। निसर्ग वातावरण के इस सूक्ष्म रज-तम की स्वच्छता नैसर्गिक आपत्तियों के माध्यम से होती है। इस प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी ‘चरक संहिता’में दी है।
‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ने जगभर के 24 देशों में 204 मिट्टी के नमूनों को लेकर उनके सूक्ष्म स्पंदनों का अभ्यास किया । यह अभ्यास आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण एवं सूक्ष्म परिक्षण के माध्यम से किया गया है । इस अभ्यास में 80 प्रतिशत नमूनों में कष्टदायक स्पंदन दिखाई दिए। केवल क्रोएशिया, श्रीलंका एवं भारत के कुछ मिट्टी के नमूनों में सकारात्मक स्पंदन पाए गए। क्रोएशिया के विविध स्थानों पर मिट्टी के नमूनों में से केवल एक आध्यात्मिक आश्रम के परिसर की मिट्टी में ही सकारात्मकता पाई गई। श्रीलंका में भी केवल रामसेतु भाग की मिट्टी में ही सकारात्मकता मिली ।
अंत में ‘हवामान के इस हानिकारक परिवर्तन के बारे में क्या कर सकते हैं ?’ इसके बार मेें श्रीमती मुंजाल ने बताया, इन समस्याओं का मूलभूत कारण आध्यात्मिक होने से हवामान में सकारात्मक परिवर्तन एवं उनकी रक्षा के लिए उपाययोजना भी मूलतः आध्यात्मिक स्तर पर होना आवश्यक हैं । संपूर्ण समाज योग्य साधना करने लगा, तो हवामान के हानिकारक परिवर्तन और तीसरे महायुद्ध के भीषण संकट का सामना करना संभव होगा। ऐसा होने पर भी प्रत्यक्ष में हम केवल अपनी ही सहायता कर सकते हैं। इसके लिए सर्वोत्तम उपाय है साधना आरंभ करना अथवा जो साधना कर रहे हैं, उसे बढाना। कालमहिमानुसार वर्तमानकाल के लिए नामजप, सरल और प्रभावी उपाय है। संतों ने बताया है कि आध्यात्मिक दृष्टि से ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, सबसे उपयुक्त नामजप है।

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